एक अक्षर का भी श्रद्धान नहीं करता है तो मिथ्यादृष्टि हो जाता है शिवकोटि आचार्य की यह भी गाथा ध्यान देने योग्य है
पदमक्खरं च एक्वं पि जो ण रोचेदि सुत्तणिद्दिट्ठं।
सेसं रोचंतो विहु मिच्छाइट्ठी मुणेयव्वो।।३९।।
जो जीव सूत्रनिर्दिष्ट समस्त वाङ्मय का श्रद्धान करता हुआ भी यदि एक पद का व एक अक्षर का भी श्रद्धान नहीं करता है तो वह समस्त श्रुत की रुचि करता हुआ भी मिथ्यादृष्टि है। (भगवती आराधना प्र. अ.)