अथ सप्तमः परिच्छेदः
महायागमंडलाराधनाअथांकुरार्पणदिनात् षष्ठे तु दिवसे दिवा।
विदधीत महायागमंडलाराधनां सुधीः।।
गद्य-तद्यथा-अथ सकलविमलकेवलाख्यपरंज्योतिःस्वरूपभगवदर्हत्परमेश्वरगर्भावतरणकल्याणचिकीर्षया स्नानानुस्नान- विशुद्धाश्चैत्यालयमुपेत्य पूजामुखविधिं विधाय, जिनेश्वरस्याष्टविधार्चनं, सिद्धाराधनां, महर्षिपर्युपासनं, स्वस्त्ययनविधिं, यज्ञदीक्षाविधानं, भूमिशुद्धिं, मंडपप्रतिष्ठां, यागमंडलवर्तनविधानं च कुर्वाणा एते वयं गर्भावतरणकल्याणांगभूतां यागमंडलाराधनां यथाविधि विधातुमुत्सहामहे।।
गद्य का अर्थ-यहां महायागमंडल विधान से पूर्व की आराधना विधि कहते हैं। इसमें अंकुरारोपण दिन से छठे दिवस में बुद्धिमान, प्रतिष्ठाचार्य ‘‘महायागमंडल’’ की आराधना विधि करें। उसे ही स्पष्ट करते हैं-सकल-विमल केवलज्ञानमय परंज्योतिस्वरूप अर्हंत परमेश्वर के गर्भावतरण कल्याणक को करने की इच्छा से जलस्नान, मंत्रस्नान और व्रतस्नान से शुद्ध होकर चैत्यालय में आकर पूजामुख विधि करके अर्हंतदेव की अष्टद्रव्य से पूजा, सिद्धों की पूजा, महर्षियों की पूजा, स्वस्तिपाठ विधि, यज्ञदीक्षाविधि, भूमिशोधनविधि, मंडलप्रतिष्ठा और यागमंडल बनाने की विधि को करते हुये हम सभी भगवान के गर्भावतरण कल्याणक के लिये अंगभूत-अवयवरूप ऐसी यागमंडल आराधना को विधिवत् करने के लिये उत्साहित हो रहे हैं।
पुनः स्नानादि-मंत्रस्नान अर्थात् संध्यावंदन विधि से लेकर ‘‘सिद्धभक्तिपर्यंत ‘‘पूजामुखविधि’’ को विधिवत् करके निःश्रेयस-मोक्ष और अभ्युदय-सांसारिक नानाविध सौख्य के लिये कारण ऐसे ‘‘श्रीयंत्र’’ की पूजा के उत्सव को मैं प्रारंभ करता हूँ।
स्नानादिसिद्धस्तवनावसानं, पूजामुखं तद्विधिना विधाय।
निःश्रेयसस्याभ्युदयस्य चांगं, श्रीयंत्रपूजोत्सवमारभेऽहम्।।1।।
प्रस्तावनापुष्पांजलिः।।
अनुष्टुप्छंद-जिनानामपि सिद्धानां, महर्षीणां समर्चनात्।
पाठात्स्वस्त्ययनस्यापि, मनः पूर्वं प्रसादये।।2।।
मनःप्रसत्तिसूचनार्थं अर्चनापीठाग्रतः पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
(मन की प्रसन्नता को सूचित करने के लिये मंडल के सामने थाली में पुष्पांजलि क्षेपण करें) ।। इतो जिनयज्ञविधानम् ।।