सारांश ईस्वी सन् २०११ के वर्षायोग में साधनारत ज्ञात समस्त दि. जैन आचार्यों की गुरुपम्परा का संकलन कर दिगम्बरत्व के इतिहास के संरक्षण का एक लघु प्रयास इस आलेख में किया गया है। संभव है कि कुछ नाम छूट गये हो इन्हें समाहित कर पूर्ण सूची तैयार करने हेतु यह आलेख प्रस्तुत है।
इतिहास साक्षी है कि भगवान ऋषभदेव से महावीर पर्यन्त २४ तीर्थंकरों की परम्परा के अनुयायी महान दिगम्बर जैनाचार्यों की प्रवृत्ति स्वयं को प्रतिस्थातिप करने, संघ या परम्परा के प्रचार—प्रसार या इतिहास के सृजन में कभी नहीं रही। पारम्परिक ज्ञान के संरक्षण अथवा स्व—पर कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर आपने जिन ग्रंथों का सृजन किया उनको आगमों से नि:सृत ज्ञान या पूर्वाचार्यों के ज्ञान पर आधारित लिखकर अपनी लघुता प्रर्दिशत की। अहंकार का भाव लेशमात्र भी न रहा। अनेक ग्रंथों में तो प्रशस्तियाँ भी नहीं लिखी हैं। ग्रंथ में समकालीन सामाजिक, र्आिथक एवं राजनैतिक जीवन की झलक तो मिल जाती है किन्तु व्यक्तिगत जीवन, जन्मतिथि, जन्म स्थान, माता, पिता, परिवार, अन्य कृतियो, गुरु परम्परा के बारे में जानकारी शून्य रहती है। इससे अनेकश: काल एवं कृतित्व के निर्धारण में बहुत दिक्कत आती है। बीसवीं/इक्कीसवीं सदी ईस्वी में दिगम्बर जैन परम्परा का इतिहास लिखने वालों को सही तथ्य मिल सके एवं इसका समीचीन इतिहास लिख जा सके इस दृष्टि से मैंने सन् २००० में तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा दिगम्बर जैन साधुओं की वर्षायोग सूची का प्रकाशन किया था। २००० में ८१८ साधु (मयूर पिच्छीधारी) साधनारत थे। २००१, २०००२, २००३ तक यह क्रम विद्वत् महासंघ के माध्यम से चला किन्तु इसी के मध्य संस्कार सागर पत्रिका ने इस कार्य को रुचिपूर्वक, तत्परता सहित करना प्रारम्भ किया एवं मुझे लगा कि मेरी भावना की र्पूित हो रही है तो संसाधनों को बचाने की दृष्टि से यह कार्य रोक दिया। २००० से पूर्व के भी अनेक दशकों से जैनमित्र, जैन गजट, सम्यग्ज्ञान, आदित्य आदेश जैसी पत्रिकाएँ उपलब्ध वर्षायोग सूची प्रकाशित करती रही किन्तु वे पूर्ण नहीं रहती थी। उनका उद्देश्य श्रावकों को जानकारी देना रहता था एवं इस उद्देश्य से पत्रिकायें आज भी जानकारी प्रकाशित करती हैं किन्तु वे इतिहास नहीं बन सकती। संस्कार सागर पत्रिका का कार्य प्रशंसनीय है।
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा दीक्षित मुनि/आर्यिकाओं/ऐलक/क्षुल्लक आदि की जितनी व्यवस्थित जानकारी इसमें आती है, वह आदर्श है किन्तु शेष परम्पराओं के बारे में संकलन अधिक व्यवस्थित जानकारी इसमें आती है, वह आदर्श है किन्तु शेष परम्पराओं के बारे में संकलन अधिक व्यवस्थित नहीं है। मेरी तो भावना है कि वर्तमान शताब्दी में साधनारत सभी दि. जैन मुनि/ आर्यिका संघों के बारे में इतनी ही व्यवस्थित जानकारी प्रकाशित हो, तभी दिगम्बरत्व के इतिहास की रक्षा हो सकेगी। पूज्य मुनि श्री अभयसागर जी महाराज प्रतिवर्ष समाधिस्थ/दीक्षित साधुओं की पूर्ण सूची बनाकर प्रकाशित कराते हैं। यह इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। संस्कार सागर की इस वर्ष की सूची में भी शताधिक साधुओं के वर्षायोग स्थल की पता नहीं चले ? सूचना एवं संचार क्रांति के युग में हम अपने गुरुओं की वर्षायोग में भी स्थिति पता नहीं लगा पा रहे, इससे ज्यादा दु:खद क्या होगा ? वर्तमान में साधनारत अनेक मुनियों की गुरु परम्परा ही पता नहीं चलती। कुछ वर्षों से मेरे मन में यह विचार था कि वर्तमान में साधनारत संतों की गुरु परम्परा के बारे में जानकारी संकलित की जाये। प्रथम चरण में वर्तमान आचार्यों की जानकारी संकलित करने का वर्ष २००८ में महावीर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित अ.भा.दि. जैन मन्दिर निर्देशिका में एक प्रयास किया था। अब पुन: उसे परिर्मािजत कर प्रस्तुत कर रहा हूँ संभव है कि कुछ त्रुटि रह गई हो। सुधी पाठक पूज्य गुरुजन एवं वरिष्ठ श्रावक इस ओर ध्यान अवश्य दिलावे जिससे इस ऐतिहासिक जानकारी को निर्दोष बनाकर सुरक्षित किया जा सके। सिद्धांतत: वर्तमान के सभी दि. मुनि भगवान महावीर, गौतम गणधर एवं आचार्य कुन्दकुन्द की परम्परा के हैं तथापि बीसवीं सदी में विशृंखलित मुनि परम्परा को पुनर्व्यवस्थित करने एवं दि. मुनियों के दक्षिण से उत्तर तक निर्बाध विहार को सुनिश्चित करने में बीसवीं सदी के प्रारम्भ में ३ आचार्यों का विशेष योगदान है।
१.चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी (दक्षिण)
२.आचार्य श्री आदिसागरजी ‘अंकलीकर’
३.आचार्य श्री शांतिसागरजी (छाणी) वर्तमान में साधनारत सभी साधु इन्हीं ३ की शिष्य प्रशिष्य परम्पराओं से सम्बद्ध हैं।
इनको चार्ट के माध्यम से आगामी पृष्ठों पर अंकित किया गया है। यदि किसी वर्तमान या दिवंगत आचार्य का नाम छूट गया हो तो हमें अवश्य सूचित करने का कष्ट करें। वर्तमान आचार्यों के नामों को बोल्ड अक्षरों में लिखा है। शेष आचार्य संभवत: समाधिस्थ हो चुके हैं या उनकी जानकारी हमें नहीं हो सकी है। त्रुटि के लिए अग्रिम क्षमायाचना। कतिपय आचार्य अपने को महावीर की परम्परा का बताकर बात को घुमा देते हैं। वस्तुत: उनके दीक्षा गुरु जिस परम्परा के है हमने उन्हें उसी परम्परा का माना है। हमारा प्रयास है कि इस सूची के माध्यम से वर्तमान के सभी आचार्यों का विवरण संकलित हो जाये एवं आगामी २०१२ के वर्षायोग में सभी आचार्यों से सघन सम्पर्क कर उनकी परम्परा के साधनारत समस्त मुनियों/ आर्यिकाओं क्षुल्लक/क्षुल्लिकाओं का विवरण संकलित किया जाये। फिलहाल भट्टारक स्वामी जी महाराजों को इस सूची में नहीं लिया है। दि. मुनि परम्परा का व्यवस्थित विवरण संकलित करना हमारा प्राथमिक नैतिक कत्र्तव्य है यदि हम इसमें विफल रहे तो इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा। आशा है कि सभी का सहयोग हमें प्राप्त होगा। आगामी पृष्ठों पर आचार्य परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है।