कृत्तिका , रोहिणी , मृगशीर्षा , आर्द्रा , पुनर्वसू , पुष्य , आश्लेषा , मघा , पूर्वाफाल्गुनी , उत्तराफाल्गुनी , हस्त , चित्रा , स्वाति , विशाखा , अनुराधा , ज्येष्ठा , मूल , पूर्वाषाढ़ा , उत्तराषाढ़ा, अभिजित , श्रवण , घनिष्ठा , शतभिषक , पूर्वाभाद्रपदा , उत्तराभाद्रपदा , रेवती , अश्विनी , भरिणी।
चन्द्रमा की १५ गलियाँ हैं। उनके मध्य में २८ नक्षत्रों की ८ ही गलियाँ हैं।
चन्द्र की प्रथम गली में—अभिजित, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषज्, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, उत्तराभाद्रपदा, अश्विनी, भरिणी, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी एवं उत्तरा फाल्गुनी ये १२ नक्षत्र संचार करते हैं। तृतीय गली में पुनर्वसू एवं मघा संचार करते हैं। छठी गली में — कृत्तिका का गमन होता है। सातवीं गली में — रोहिणी तथा चित्रा का गमन होता है। आठवीं गली में — शाखा, दशमी गली में — अनुराधा, ग्यारहवीं गली में — ज्येष्ठा एवं पन्द्रहवीं गली में — हस्त, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, मृगशीर्षा, आद्र्रा, पुण्य तथा आश्लेषा नामक शेष ८ नक्षत्र संचार करते हैं। ये नक्षत्र क्रमश: अपनी-अपनी गली में ही भ्रमण करते हैं। सूर्य – चन्द्र के समान अन्य-अन्य गलियों में भ्रमण नहीं करते हैं।
ये नक्षत्र अपनी एक गली को ५९ मुहूर्त में पूरी करते हैं। अत: प्रथम परिधि ३१५०८९ में ५९ का भाग देने से १ मुहूर्त के गमन क्षेत्र का प्रमाण आ जाता है। यथा—३१५०८९ ´ ५९ मुहूर्त · ५२६५ योजन पर्यन्त पहली गली में रहने वाले प्रत्येक नक्षत्र १ मुहूर्त में गमन करते हैं। आगे-आगे की गलियों की परिधि में उपर्युक्त इस पूर्ण परिधि के गमन क्षेत्र (५९ मुहूर्त) का भाग देने से मुहूर्त प्रमाण गमन क्षेत्र का प्रमाण आ जाता है।
विशेष—चन्द्र को १ परिधि को पूर्ण करने में ६२ मुहूर्त प्रमाण काल लगता है। उसी वीथी की परिधि को भ्रमण द्वारा पूर्ण करने में सूर्य को ६० मुहूर्त लगते हैं तथा नक्षत्र गणों को उसी परिधि को पूर्ण करने में ५९ मुहूर्त प्रामाण काल लगता है। क्योंकि चन्द्रमा मंदगामी है। चन्द्रमा से तेज गति सूर्य की है। सूर्य से अधिक तीव्र गति ग्रहों की है। ग्रहों से भी तीव्र गति नक्षत्रों की एवं इन सबसे तीव्र गति तारागणों की मानी है।