सात व्यसनों में दूसरे नम्बर का व्यसन है—मांसाहार। यह जहां नैतिकता एवं आध्यात्मिकता का पतन करता है वहीं मानव के अन्दर निर्दयता को पनपाकर उसे पशु से भी निम्न श्रेणी में पहुंचा देता है। मांसाहार से मस्तिष्क की सहनशीलता नष्ट होकर वासना व उत्तेजना वाली प्रवृत्ति बढ़ती है। जब किसी बालक को शुरू से ही मांसाहार कराया जाता है तब वह अपने स्वार्थ के लिए दूसरे जीवों को मारने-कष्ट देने में कभी गलती का अहसास ही नहीं करता है जबकि मानव को स्वभावतः अहिंसक प्राणी माना गया है। यूं तो प्राचीनकाल से ही शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के मनुष्य इस धरती पर हुए हैं किन्तु वर्तमान में मांसाहार का जो खुला और वीभत्स रूप हमारे देश में पनप रहा है इसे कलियुग का अभिशाप ही कहना होगा। भारतीय संस्कृति खोखली होकर अपने भाग्य पर आंसू बहाने को मजबूर हो गई है। जहां रक्षक ही भक्षक बना हुआ है अर्थात् सरकार स्वयं पशुओं का मांस निर्यात कर पाश्चात्य देशों की श्रेणी में अपना नाम दर्ज करा रही है तब मानवता भला किसके दरवाजे भीख मांगने जाएगी ? वह कराह-कराह कर एक दिन पंगु हो जाएगी और मानव की शक्ल के पशु देश का राज्य संचालित कर अपनी स्वार्थपूर्ति करके धरती पर ही नरकों के दृश्य उपस्थित कर देंगे। पुराण ग्रन्थ हमें बताते हैं कि यदि राजा भी मांसाहारी बन गया तो नीतिप्रिय जनता ने उसे राजिंसहासन से अपदस्थ कर जंगल का राजा बना दिया।
एक लघु कथानक है— श्रुतपुर नामक एक नगर में राजा बक राज्य करता था, वह मांसाहारी था, एक दिन उसके रसोइए को किसी कारणवश पशु का मांस न मिला तो उसने एक मरे हुए बालक का मांस पकाकर राजा को खिला दिया। राजा को वह मांस बड़ा स्वादिष्ट लगा अतः उसने रसोइये से प्रतिदिन मनुष्य का ही मांस तैयार करने को कहा। अब रसोइया गांव की गलियों में जाकर रोज बच्चों को मिठाई आदि का प्रलोभन देकर लाने लगा और राजा की भोजनपूर्ति करने लगा। इस तरह नगर में बच्चों की संख्या घटते देख जब पता लगाया तो राजा को जबरदस्ती जंगल में भगा दिया। किन्तु जंगल में भी वह आते-जाते निरपराधी मनुष्यों को मार-मारकर खाने लगा और वह सचमुच में भेषधारी राक्षस ही बन गया था। गांव वालों ने पुनः इस पर विचार करके प्रतिदिन एक-एक मनुष्य को बक राक्षस के भोजन हेतु भेजना स्वीकार किया। फिर एक बार पांचों पांडव सहित माता कुन्ती वनवास के मध्य उस नगर में आए। वे लोग एक वैश्य के घर में ठहर गए, संध्या होते ही घर की स्त्री जोर-जोर से रोने लगी। कुन्ती के पूछने पर उसने सारा वृत्तान्त सुनाते हुए कहा कि कल प्रातः मेरा पुत्र उस राक्षस का भोजन बनकर जाएगा। अपने इकलौते पुत्र को मरने हेतु भेजने के नाम से ही मेरा कलेजा फटा जा रहा है। एक माँ की करुण व्यथा कुन्ती को समझते देर न लगी और उसने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि तुम्हारे पुत्र की जगह कल मेरा भीम उस राक्षस के पास जाएगा और उसे समाप्त कर समस्त ग्रामवासियों को भयमुक्त करेगा। पुनः कुन्ती ने भीम को सारी बात बताई और अगले दिन उसे बक राक्षस के पास भेज दिया। वहां पहुंचकर भीम ने अपने बाहुबल से राक्षस को समाप्त कर दिया तथा समस्त नगरवासियों के समक्ष वीरत्व दिखाया। इस प्रकार से उस नरभक्षी राक्षस का आतंक नगर से दूर हो गया और वे लोग सुखपूर्वक रहने लगे। देखो! मांसाहार करने वाला राजा भी राक्षस बन गया एवं जिह्वालोलुपता के कारण उसे कितना दुःख, अपमान सहना पड़ा। वर्तमान में मांसाहार आधुनिक फैशन का एक अंग-सा बन गया है अतः मांसाहारियों को दूसरों के सुख-दुख का कोई अनुभव ही नहीं होता है। प्रकृति ने हमें इतनी सारी सब्जियां, अनाज, फल, मेवा प्रदान किए हैं कि मांसाहार के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती है फिर भी न जाने क्यों मानव मांसाहार की ओर बढ़ रहा है ? मांसाहार के त्यागने में केवल मन के दृढ़ निश्चय की आवश्यकता है। इसको छोड़ने में कोई भी असुविधा नहीं होती है प्रत्युत् छोड़ने वालों को मानसिक शान्ति का ही अनुभव होता है। नित्यप्रति मांसाहार करने वालों ने भी एक क्षण के सत्संग से जीवन भर के लिए मांसाहार का त्याग किया है। इसके जीवन्त उदाहरण प्रत्यक्ष में देखे जाते हैं। परमपूज्य गणिनीप्रमुख आयिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी अप्रैल १९९५ में अयोध्या से हस्तिनापुर की ओर विहार कर रही थीं उस मध्य सैकड़ों भव्य प्राणियों ने आजीवन मांसाहार का त्याग किया। अंडा, शराब, मछली आदि का सेवन करना तो मांसाहार है ही, केक-पेस्टी, चाकलेट तथा उच्चकोटि की आइसक्रीम आदि भी मांसाहार की ही कोटि में आते हैं। वर्तमान वैज्ञानिक युग में मानव भौतिक पदार्थों की चकाचौंध में फंसकर सामाजिक, आर्थिक, नैतिक जीवन मूल्यों में परिवर्तन करता जा रहा है। अहिंसा को मानने वाले भी आज अपने आपको दूसरों से कुछ पृथक् सा दिखाने के लिए प्रयासरत रहते हैं और इसी होड़ में वे विवाह, जन्मदिन आदि की पार्टियो में ऐसे कुछ खाद्य पदार्थ बनवाते हैं जिनसे मांसाहार का दोष लगता है। आपको ज्ञान कराने के लिए ऐसे ही कुछ खाद्य पदार्थ जो मांसाहारियों की नकल करके बनाए जा रहे हैं यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं। शाकाहारी नर—नारी इन पर ध्यान दें और संकल्पी हिंसा के पाप से अपने का बचाएं। जैसे— शाकाहारी अण्डे—मावे (खोये) को भूनकर हल्का पीला रंग लगाकर पीला कर लेते हैं तथा गोल करके चारों ओर मावे की सफेत पर्त चढ़ाकर तथा तलकर चाशनी में पका लेते हैं। खाते समय अण्डे के स्वाद का आभास करते हैं। यह है अहिंसक धर्मावलम्बियों का शाकाहारी अण्डा जो राजा यशोधर के द्वारा किये गए आटे के मुर्गे की बलि के समान ही संकल्पी हिन्सा है। इसी प्रकार शाकाहारी सींक कबाब, शाकाहारी मुर्गा आदि अनेक भोज्य पदार्थ शाकाहारी वस्तुओं से तैयार करने पर भी मांसाहार का दोष उत्पन्न कराते हैं इसलिए अहिंसक समाज को अपने बच्चों में भी संकल्पी हिन्सा के त्याग के संस्कार डालकर उन्हें इस पाप से दूर रखना चाहिए, फलों से बनने वाली सलाद और बर्थडे केक पर भी कई बार लोग विभिन्न पशुओं की आकृतियाँ बना कर खाते हैं। दीपावली की मिठाइयों में भी पशुओं के आकार बनाने की परम्परा है यह सब संकल्पी हिंसा के द्योतक हैं अतः हिन्साजनित पापों से बचने के लिए इन्हें दूर से ही त्याग कर देना चाहिए। भारत की इस शस्यश्यामला भूमि के इतिहास को पढ़कर हृदय प्रसन्नता से फूला नहीं समाता परन्तु जब इस देश की वर्तमान दुर्दशा को देखते हैं तो दिल पीड़ा से व्यथित हो उठता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त ने देश की इस दशा का वर्णन करते हुए लिखा है— हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी। आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी।। यद्यपि हमें इतिहास अपना प्राप्त पूरा है नहीं। हम कौन थे इस ज्ञान से फिर भी अधूरे हैं नहीं।। राम-कृष्ण, महावीर, कबीर, गौतम और गांधी के इस देश में सूर्य की प्रथम किरण उगते ही २५ लाख मुर्गों को, ५ लाख बकरों को और २५ गोवंश को मौत के घाट उतार दिया जाता है। बम्बई, दिल्ली, हैदराबाद, कलकत्ता तथा मद्रास में बड़े-बड़े यांत्रिक कत्लखाने प्रतिदिन हजारों मूक प्राणियों का खून कर रहे हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि अहिंसा प्रधान हमारे देश में स्वतंत्रता के पश्चात् हिन्सा का तांडव नृत्य चरम सीमा तक पहुंच गया है। जिसे आंकड़े बताते हैं कि अंग्रेजों के राज्य में यहां ३०० कत्लखाने थे, वर्तमान में ३६०० बड़े एवं ३६००० छोटे-बड़े कत्लखाने दिन-रात बेजुबान प्राणियों का खून बहा रहे हैं। विश्व में कुल ५३० करोड़ लोग हैं, जिनमें से ८० प्रतिशत लोग मांसाहार करते हैं। भारत जैसे अहिंसा प्रधान देश में ६५ प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं। इनमें से ५ प्रतिशत लोग रोजाना मांसाहार करते हैं, २५ प्रतिशत लोग सप्ताह में एक बार करते हैं, २५ प्रतिशत महीने में एक बार तथा १० प्रतिशत कभी-कभी होटल आदि में मांस खाते हैं। राजस्थान में २० प्रतिशत, मध्यप्रदेश में २५ प्रतिशत, महाराष्ट्र में ६५ प्रतिशत, तमिलनाडु में ८५ प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में ३५ प्रतिशत तथा बिहार में ४० प्रतिशत लोग मांसाहार करते हैं।’ जिस शरीर को हृष्ट-पुष्ट करने के लिए व्यक्ति अनेक पशु-प्राणियों की हिंसा से प्राप्त मांस को खाता है, वास्तव में वह शरीर सबसे बड़ा दगाबाज है। यह हमारा साथ कब देगा इसका कोई पता नहीं है। सब कुछ सोचने के बाद निष्कर्ष यही निकलता है कि शाकाहार पौष्टिकता, बौद्धिकता एवं सभी दृष्टियों से लाभप्रद आहार है अतः इसे ही अपनाना चाहिए। कहा भी है— तुम्हें पालने में असमर्थ, धरती माँ की धूल नहीं है। अतः अन्न फल मेवे रहते, मांस तुम्हें अनुकूल नहीं है।। भगवान महावीर के जिओ और जीने दो सिद्धान्त पर ही हमारा अहिंसा प्रधान देश टिका हुआ है। इस विषय में अंग्रेजी की यह लघु कविता निश्चित ही आपको प्रेरणा प्रदान करेगी— Think Once Live and let live, It is the main principle of lord Mahavira, The soul is in every creatures, and They also feel happiness and suffering O ! holimen of the world ! Think you once, If any body gives pain to you, Then you feel very bad. So that it may be posible for you That give happiness every little or big creature The creatures of forest also want a peacefull life. Let them live into the forest. Think you secondly. You are human, humanity is your necessary work, Voilence is not work, Today, in also India, Where Lord Mahavira, Gautam Buddha, Mahatma Gandhi and many other great souls have borned. The earth is weeping today, seeing the nacked dance of voilence and saying to you. Oh, my child. Why are you doing voilence to your brothers ? The creatures of forest are also your relatives. Because they are saving of Enviroment. O my friend” Listen the instruction of Lord Mahavira— Non-violence is your main principle. Non-violence is the truth of soul. Non-violence is the first aspect of Lord. Non-violence is the very holy love. So that, all of you should accept the nonviolence