तर्ज-जनगणमन……….
जन-जन के हितकारी हो प्रभु, युग के आदि विधाता।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तुम ही, वृषभेश्वर जग त्राता।।
तुमने जन्म लिया जब, कण-कण धन्य हुआ तब।
इन्द्र सिंहासन डोला, मेरु सुदर्शन पांडु शिला पर, सबने जय जय बोला।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।1।।
नाभिराय मरुदेवी के नन्दन, हुए प्रथम अवतारी।
पंचकल्याणक के हो स्वामी, सब जन मंगलकारी।।
सब मिल जय प्रभु बोलो, जग के बंधन खोलो।
गूज उठे जग सारा, मुक्तिमार्ग बतलाते तुमको,
नमन ‘‘चन्दनामति’’ का।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।2।।