जिनसहस्रनामस्तोत्र- हिन्दी (चतुर्थ अध्याय)
चौपाई (१५ मात्रा)
‘महाशोकध्वज’ आप जिनेश। वृक्ष अशोक चिन्ह परमेश।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०१।।
नाथ! ‘अशोक’ शोक से हीन। आप भक्त हों शोक विहीन।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०२।।
आप ‘क’ नाम आत्म आधार। सब भक्तों को सुखदातार।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०३।।
स्वर्ग मोक्ष की सृष्टि करंत। ‘स्रष्टा’ नाम सुरेन्द्र यजंत।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०४।।
नाथ! ‘पद्मविष्टर’ तुम नाम। आसन स्वर्णकमल तुम स्वामि।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०५।।
प्रभु ‘पद्मेश’ आप विख्यात। लक्ष्मी के स्वामी हो नाथ।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०६।।
आप ‘पद्मसंभूति’ जिनेश। चरण कमल तल कमल हमेश।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०७।।
‘पद्मनाभि’ पंकजसम नाभि। वंदत मिटती सर्व उपाधि।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०८।।
नाथ! ‘अनुत्तर’ तुम सम अन्य। श्रेष्ठ नहीं प्रभु तुमही धन्य।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३०९।।
‘पद्मयोनि’ मात का गर्भ। पद्माकृति से तुम उत्पत्ति।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१०।।
‘जगद्योनि’ धर्ममय जगत्। उसकी उत्पति कारण जिनप।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३११।।
‘इत्य’ आप की प्राप्ती हेतु। भविजन तप तपते बहुभेद।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१२।।
नाथ! ‘स्तुत्य’ इन्द्र मुनि आदि। सबकी स्तुति योग्य अबाधि।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१३।।
प्रभु आप ‘स्तुतीश्वर’ कहे। स्तुति के ईश्वर ही रहें।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१४।।
‘स्तवनार्ह’ स्तुति के योग्य। आप समान न अन्य मनोज्ञ।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१५।।
‘हृषीकेश’ इंद्रिय के ईश। विजितेन्द्रिय हो सर्व अधीश।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१६।।
प्रभो! आप ‘जितजेय’ अनूप। जीता मोह आदि अरि भूप।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१७।।
करने योग्य क्रियायें सर्व। पूर्ण किया ‘कृतक्रिय’ नामार्ह।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३१८।।
बारह गण के स्वामी आप। अत: ‘गणाधिप’ हो निष्पाप।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म ।।३१९।।
सर्वजनों में तुमही श्रेष्ठ। अत: जगत मे हो ‘गणज्येष्ठ’।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३२०।।
गणना योग्य आप ही ‘गण्य१’। चौरासी लख गुण युत धन्य।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३२१।।
पूर्ण पवित्र आप ही ‘पुण्य’। सबको पावन करें सुपुण्य।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३२२।।
सब गण शिवपथ में ले जाव। ‘गणाग्रणी’ प्रभु आप कहाव।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३२३।।
ज्ञानाद्यनंत गुण की खान। नाथ ‘गुणाकर’ आप महान।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३२४।।
लाख चुरासी गुण की वार्धि। ‘गुणाम्भोधि’ हरते भव व्याधि।।
आप नाम सब सुख की खान। वंदत मिलता आत्म निधान।।३२५।।