धरती का तुम्हें नमन है, आकाश का तुम्हें नमन है।
चन्दा सूरज करें आरती, छुटते जनम मरण हैं।। सौ सौ बार नमन है।।
ऋषभदेव जिनवर को युग का, सौ-सौ बार नमन है।। टेक.।।
प्रभु का गर्भकल्याणक उत्सव, इन्द्र मनाया करते।
छः महिने पहले कुबेर, रत्नों की वर्षा करते।।
तीर्थंकर माँ के आँगन में, बरसें खूब रतन हैं, सौ-सौ बार नमन है।। ऋषभदेव…………।।1।।
पिता उन्हीं रत्नों को जनता, में वितरित कर देते।
रत्न प्राप्त कर श्रावक जन, निज भाग्य धन्य कर लेते।।
धरती स्वर्णमयी बन जाती, पुलकित हुआ गगन है। सौ-सौ बार नमन है।। ऋषभदेव…………।।2।।
एक रत्न उनमें से प्रभु यदि, आज मुझे मिल जावे।
तब मेरा भी भाग्य ‘‘चन्दनामती’’, स्वयं खिल जावे।।
तुम सम गर्भागम मेरा भी, होवे यही जतन है। सौ-सौ बार नमन है।। ऋषभदेव…………।।3।।