छठी अध्याय(६)
सोरठा
‘महामुनि’ प्रभु आप, मुनियों में उत्तम कहे।
नाममंत्र तुम नाथ! वंदत ही सुखसंपदा।।५०१।।
मुनि हो मौन धरंत, प्रभु ‘महामौनी’ तुम्हीं।
नाम मंत्र वंदंत, रोग शोक संकट टले।।५०२।।
धर्म शुक्लद्वय ध्यान, धार ‘महाध्यानी’२ हुये।
नाममंत्र का ध्यान, करते ही सब सुख मिले।।५०३।।
पूर्ण जितेन्द्रिय आप, नाम ‘महादम’ धारते।
नाममंत्र तुम नाथ! वंदत आतम निधि मिले।।५०४।।
श्रेष्ठ क्षमा के ईश, नाम ‘महाक्षम’ सुर कहें।
नाममंत्र नत शीश, वंदूं मैं अतिभाव से।।५०५।।
अठरह सहस सुशील, ‘महाशील’ तुम नाम है।
पूरण हो गुण शील, नाममंत्र मैं नित नमूं।।५०६।।
तप अग्नी में आप, कर्मेंधन को होमिया३।
‘महायज्ञ’ तुम नाथ, वंदूं भक्ति बढ़ायके।।५०७।।
अतिशय पूज्य जिनेश! नाम ‘महामख’ धारते।
वंदूं भक्ति समेत, नाममंत्र प्रभु सुख मिले।।५०८।।
पाँच महाव्रत ईश, नाम ‘महाव्रतपति’ धरा।
नमूं नमाकर शीश, नाममंत्र प्रभु आपके।।५०९।।
‘मह्य’ आप जगपूज्य, गणधर साधू गण नमें।
मिलें स्वात्मपद पूज्य, नाममंत्र को वंदते।।५१०।।
‘महाकान्तिधर’ आप, अतिशय कांतिनिधान हो।
नाममंत्र तुम जाप, करे अतुल सुखसंपदा।।५११।।
सबके स्वामी इष्ट, अत: ‘अधिप’ सुरगण कहें।
नाशो सर्व अनिष्ट, नाममंत्र तुम पूजहू।।५१२।।
‘महामैत्रिमय’ नाथ! सबसे मैत्रीभाव है।
नाममंत्र तुम जाप, त्रिभुवन को वश में करे।।५१३।।
अनवधि गुण के नाथ, तुम्हें ‘अमेय’ मुनी कहें।
पूजत बनू सनाथ, नाममंत्र प्रभु आपके।।५१४।।
‘महोपाय’ तुम नाथ! शिव के श्रेष्ठ उपाययुत।
नमत सर्व सुखसाथ, नाममंत्र को नित जपूँ।।५१५।।
नाथ!‘महोमय’ आप, अति उत्सव अरु ज्ञानयुत।
नाममंत्र तुम जाप, सर्व उपद्रव नाशता।।५१६।।
‘महाकारुणिक’ आप, दया धर्म उपदेशिया।
नाममंत्र का जाप, करत जन्म मृत्यु टले।।५१७।।
‘मंता’ आप महान, सब पदार्थ को जानते।
नमूं नाम गुणखान, पूर्ण ज्ञान संपति मिले।।५१८।।
सर्व मंत्र के ईश, ‘महामंत्र’ तुम नाम है।
तुम्हें नमें गणधीश, नाममंत्र मैं भी नमूं।।५१९।।
यतिगण में अतिश्रेष्ठ, नाम ‘महायति’ आपका।
वंदत ही पद श्रेष्ठ, नाममंत्र को नित नमूं।।५२०।।
‘महानाद’ प्रभु आप, दिव्यध्वनी गंभीर धर।
नमत बनूँ निष्पाप, नाममंत्र भी मैं नमूं।।५२१।।
दिव्यध्वनी गंभीर, योजन तक सुनते सभी।
नमत मिले भवतीर, ‘महाघोष’ तुम नाम को।।५२२।।
नाथ ‘महेज्य’ सुनाम, महती पूजा पावते।
सौ इन्द्रों से मान्य, नाममंत्र मैं नित नमूं।।५२३।।
‘महसांपति’ प्रभु आप, सर्व तेज के ईश हो।
तुम प्रताप भवताप, हरण करे मैं नित नमूं।।५२४।।
ज्ञान यज्ञ को धार, नाम ‘महाध्वरधर’ प्रभु।
मिले सर्व सुखसार, नाममंत्र मैं नित नमूं।।५२५।।