जिनसहस्रनाम स्तोत्र (हिन्दी)- अध्याय 8
चाल—पूजों पूजों श्री……..
‘वृहद्वृहस्पति’ प्रभु नाम है। सुरपति के गुरु सरनाम हैं।
वंदते ही मिले मोक्षधाम है। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।।
आवो वंदें जिनेश्वर नामा। जिससे पावें निजातम धामा।
सर्व कर्मों का होवे खातमा। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नितही।।७०१।।
प्रभु ‘वाग्मी’ तुम्हीं त्रिभुवन में। शुभवचन द्वादशों गण में।
वंदते पाप नश जाय क्षण में। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।।
आवो वंदें जिनेश्वर नामा। जिससे पावें निजातम धामा।
सर्व कर्मों का होवे खातमा। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नितही।।७०२।।
प्रभु ‘वाचस्पती’ आप जग में। वचनों के स्वामि सहज में।
नाम लेते मिले शांति मन में। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें. ।।७०३।।
तुम नाम ‘उदारधी’ है। ज्ञानदान का मूल वही है।
वंदते आप सुख की मही हैं। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७०४।।
प्रभु आप ‘मनीषी’ कहाये। केवलज्ञान सद्बुुद्धि पाये।
शत इंद्र सदा गुण गायें। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७०५।।
आपको ही ‘धिषण’ साधु कहते। सर्वज्ञानैक बुद्धी धरते।
भक्त वंदन स्वपर ज्ञान लहते। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७०६।।
आप ‘धीमान्’ त्रैलोक्य में हैं। ज्ञान पंचम धरें श्रेष्ठ ही हैं।
भक्त भी स्वात्म ज्ञानी बने हैं। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७०७।।
प्रभु ‘शेमुषीश’ आप ही हैं। सर्व ही ज्ञान के नाथ ही हैं।
दीजिये अब मुझे सुमती है। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७०८।।
प्रभु आप ‘गिरांपति’ जग में। सर्वभाषामयी ध्वनि भवि में।
हो सत्य महाव्रत मुझमें। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७०९।।
आप ‘नैकरूप’ मुनिगण में। विष्णु ब्रह्म महेश्वर सच में।
भक्त नाशें करमरिपु क्षण में। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१०।।
प्रभु आप ‘नयोत्तुंग’ मानें। सब नयों से श्रेष्ठ बखानें।
मन अनेकांत सरधाने। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७११।।
‘नैकात्मा’ तुम्हीं त्रिभुवन में। गुण बहुते धरें प्रभु निज में।
गुणपूर्ण भरूँ मैं निज में। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।।
आवो वंदें जिनेश्वर नामा। जिससे पावें निजातम धामा।
सर्व कर्मों का होवे खातमा। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नितही।।७१२।।
प्रभु ‘नैकधर्मकृत्’ तुम हो। बहुधर्म वस्तु के कहहो।
निजधर्म अनंत मुझे हों। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१३।।
प्रभु आप ‘अविज्ञेय’ ही हो। जन जानन योग्य नहीं हो।
मुझ आत्म स्वभाव प्रगट हो। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१४।।
प्रभु आप ‘अप्रतक्र्यात्मा’ । न तर्कादि गोचर महात्मा।
मुझे कीजे तुरत अंतरात्मा। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१५।।
प्रभु आप ‘कृतज्ञ’ कहे हो। सभी कृत्य तुम्हीं जानते हो।
नाथ! मुझमें यही गुण प्रगट हो। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१६।।
‘कृतलक्षण’आप भुवन में। वस्तु लक्षण कहते हो ध्वनि में।
मैं धारूँ सुलक्षण हृदय में। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१७।।
प्रभु ‘ज्ञानगर्भ’ तुमही हो। सब ज्ञेय सुज्ञान मही हो।
मेरा भी ज्ञान सही हो। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१८।।
प्रभु ‘दयागर्भ’ त्रिभुवन में। तुम दयासिंधु भविजन में।
मैं धरूँ दया निजपर में। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७१९।।
प्रभु ‘रत्नगर्भ’ मुनिनाथा। रत्न वर्षे पंचदश मासा।
मैं नमूँ नमाकर माथा। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७२०।।
प्रभु आप ‘प्रभास्वर’ ही हो। त्रैलोक्य प्रकाशि रवी हो।
मुझ हृदय ज्ञान ज्योति हो।सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७२१।।
प्रभु ‘पद्मगर्भ’ तुम सच में। रहे कमलाकार गरभ मेंं।
लहूँ गर्भ प्रभो! तुम सम मैं। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७२२।।
प्रभु ‘जगद्गर्भ’ तुम भासें। तुम ज्ञान में जग प्रतिभासे।
हो ज्ञान मेरा तम नाशे। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७२३।।
प्रभु ‘हेमगर्भ’ तुम ही हो। गर्भ बसत स्वर्णमय भू हो।
मुझ रोग शोक हर तुम हो। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें. ।।७२४।।
प्रभु आप ‘सुदर्शन’ मानें। तुम दर्शन सुखकर जानें।
वंदन सब संकट हानें। सुनाम मंत्र वंदन करूँ मैं नित ही।। आवो वंदें.।।७२५।।