दसवी अध्याय (१०)
शालिनी छंद
दिग्वासा’ हो वस्त्र दिश् ही तुम्हारे।
ऐसी मुद्रा हो कभी नाथ मेरी।।
द्धा से मैं नित नमूं नाम मंत्रं।
दीजे शक्ती आत्म संपत्ति पाऊँ।।९०१।।
स्वामी सुन्दर ‘वातरशना’ तुम्हीं हो।
धारी वायू करधनी है कटी में।।श्रद्धा.।।९०२।।
स्वामी ‘निग्र्रंथेश’ हो बाह्य अंत:।
चौबीसों ही ग्रन्थ से मुक्त मानें।।श्रद्धा.।।९०३।।
स्वामी भूमी पे ‘दिगम्बर’ तुम्हीं हो।
धारा अम्बर दिक्मयी शील पूरे।।श्रद्धा.।।९०४।।
‘निष्कचन’ हो नाथ सर्वस्व त्यागा।
आत्मानंते सद्गुणों से भरी है।।श्रद्धा.।।९०५।।
इच्छा त्यागी हो ‘निराशंस’ स्वामी।
आशा मेरी पूरिये सिद्धि पाऊँ।।श्रद्धा.।।९०६।।
केवलज्ञानी ज्ञान ही नेत्र पाया।
स्वामी मेरे ‘ज्ञानचक्षू’ तुम्हीं हो।।श्रद्धा.।।९०७।।
नाशा मोहारी ’अमोमुह’ कहाये।
स्वामी मेरे मोह रागादि नाशो।।
श्रद्धा से मैं नित नमूं नाम मंत्रं।
दीजे शक्ती आत्म संपत्ति पाऊँ।।९०८।।
‘तेजोराशी’ तेज के पुंज स्वामी।
चंदा से भी सौम्य शीतल भये हो।।श्रद्धा.।।९०९।।
नंते ओजस्वी ‘अनंतौज’ स्वामी।
मेरी शक्ती को बढ़ा दो सभी ही।।श्रद्धा.।।९१०।।
हो ‘ज्ञानाब्धी’ ज्ञान के सिंधु स्वामी।
स्वामी मेरे ज्ञान को पूर्ण कीजे।।श्रद्धा.।।९११।।
शीलों से भृत ‘शीलसागर’ तुम्हीं हो।
अठरा साहस्र शील को पूरिये भी।।श्रद्धा.।।९१२।।
‘तेजोमय’ हो नाथ! तेज: स्वरूपी।
आत्मा तेजोरूप मेरी करो भी।।श्रद्धा.।।९१३।।
‘अमितज्योती’ आप ज्योती अनंती।
मेरी आत्मा ज्योति से पूर दीजे।।श्रद्धा.।।९१४।।
‘ज्योतिर्मूर्ती’ ज्योतिमय देह धारा।
मेरे घट में ज्ञान ज्योती भरीजे।।श्रद्धा.।।९१५।।
मोहारी हन के ‘तमोपह’ तुम्हीं हो।
मेरे चित का सर्व अज्ञान नाशो।।श्रद्धा.।।९१६।।
सकल ‘जगच्चूड़ामणी’ आप ही हो।
तीनो लोकों के शिखारत्न स्वामी।।श्रद्धा.।।९१७।।
देदीप्यात्मा ‘दीप्त’ स्वामी तुम्हीं हो।
मेरी आत्मा दीप्त कीजे गुणों से।।श्रद्धा.।।९१८।।
‘शंवान्’ स्वामी सौख्य शांती तुम्हीं में।
मेरी आत्मा सौख्य से पूर्ण कीजे।।श्रद्धा.।।९१९।।
स्वामी मेरे ‘विघ्नवीनायका’ हो।
मेरे विघ्नों को हरो नाथ! जल्दी।।श्रद्धा.।।९२०।।
तीनों लोकों में ‘कलिघ्ना’ तुम्हीं हो।
मेरे कलिमल नाश के सौख्य दीजे।।
श्रद्धा से मैं नित नमूं नाम मंत्र।
दीजे शक्ती आत्म संपत्ति पाऊँ।।९२१।।
मेरे स्वामी ‘कर्मशत्रुघ्न’ ही हो।
दुष्कर्मों को नष्ट कीजे प्रभू जी।।श्रद्धा.।।९२२।।
हो ‘लोकालोक प्रकाशक’ जिनेशा।
देखा तीनों लोक अलोक भी तो।।श्रद्धा.।।९२३।।
जागे आत्मा में ‘अनिद्रालु’ स्वामी।
मेरी आत्म मोह निद्रा तजे भी।।श्रद्धा.।।९२४।।
आलस नाशा हो ‘अतन्द्रालु’ स्वामी।
मेरी आत्मा ज्ञान से स्वस्थ होवे।
श्रद्धा से मैं निम नमूं नाम मंत्र।
दीजे शक्ती आत्म संपत्ति पाऊँ।।९२५।।