
(ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा)
| १. सिद्धभक्ति | २. श्रुतभक्ति |
| ३. चारित्रभक्ति | ४. योगिभक्ति |
| ५. आचार्यभक्ति | ६. निर्वाणभक्ति |
| ७. नंदीश्वरभक्ति |
८. शांतिभक्ति
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| १. प्राकृतसिद्धभक्ति | २. श्रुतभक्ति |
| ३. चारित्रभक्ति | ४. योगिभक्ति |
| ५. आचार्यभक्ति |
| ६. प्राकृत निर्वाणभक्ति | ७. प्राकृत पंचमहागुरुभक्ति |
| ८. प्राकृत चतुर्विंशतितीर्थंकरभक्ति (थोस्सामि हं जिणवरे में अंचलिका जोड़कर) | ९. नंदीश्वर भक्ति (अंचलिका मात्र) |
| १०. शांतिभक्ति |
| १. पृथ्वीकायिक | २. जलकायिक |
| ३. अग्निकायिक | ४. वायुकायिक |
| ५. वनस्पतिकायिक | ६. दो इंद्रिय |
| ७. तीन इंद्रिय | ८. चार इंद्रिय |
| ९. निगोद | १०. असंज्ञीपंचेन्द्रिय |
| ११. कुभोगभूमि | १२. म्लेच्छखंड, मिथ्यात्व के इन बारह स्थानों में उत्पन्न नहीं होता है |
| १३. तिर्यंचों में | १४. नरकों में |
| १५. नपुंसक में | १६. स्त्रीवेद |
