भगवान ऋषभदेव दिगम्बर जैनमंदिर दशलक्षण पर्व में अनुष्ठान
‘‘कोमलता का नाम मार्दव है, मृदु का भाव मार्दव है, यह सम्यग्दर्शन का अंग है।
जाति, कुल, बल, ऐश्वर्य, रूप, तप, विद्या और धन यह आठ प्रकार के मद हैं, उनका
अभिमान करना मान है और उनका त्याग करना, विनय गुण धारण करना मार्दव
कहलाता है। विनय के चार भेद हैं-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और उपचार। इनका पूर्णरूपेण
पालन साधु करते हैं और श्रावक इनका आंशिक पालन करते हैं। देव-शास्त्र गुरू की
विनय करना, अपने माता-पिता एवं बड़ों की विनय करना, आपस में जय जिनेन्द्र
करना सब मार्दव धर्म के अन्तर्गत आता है। इस विनय गुण से पुण्य का आस्रव
होता है’’ उक्त विचार आज शाश्वत तीर्थ अयोध्या के रायगंज परिसर में दशलक्षण
महापर्व के अन्तर्गत आयोजित ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ में अपना मंगल
सानिध्य प्रदान कर रहीं जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी, दिव्यशक्ति, परमपूज्य
सरस्वती की प्रतिमूर्ति गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने प्रात:कालीन सभा में
व्यक्त किए। इसके साथ ही उन्होंने एक शास्त्रीय कथानक के माध्यम से बताया
कि किस प्रकार एक गांव में रहने वाले साठ हजार लोगों ने गुरू निन्दा के फल से
अनंत भवों तक दुख भोगे और कालांतर में एक भव में सम्यग्दर्शन प्राप्त कर जब
मुनि बनकर तप किया, इन दशों धर्मों को अपने जीवन में उतारा तब मुक्ति को
प्राप्त कर लिया।
आज के पावन अवसर पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की सुशिष्या
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने वर्तमान पीढ़ी को
शिक्षा देते हुए बताया कि यह धर्म मात्र दस दिनों तक नहीं अपितु प्रतिदिन जीवन
में धारण करने योग्य है। अपमान कहीं भी अच्छा नहीं है, साधुगण प्रतिदिन तीन
बार एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों से क्षमायाचना करते हैं। आज
विज्ञान के युग में मोबाइल आदि के कारण जीवन में अशांति आई है किन्तु यदि
हम उसका सदुपयोग कर लें तो वही हमारे लिए जीवन निर्माण में उपयोगी बन
जाएँगे। हम अगर अपने जीवन में विनय गुण को अपनाते हुए एक दूसरे की
प्रशंसा करें, बड़े-छोटे सभी का सम्मान करें, मिच्छा मे दुक्कडं करें, एडजेस्ट माइंड
रखें तो सामने वाला कितना भी घमण्डी क्यों न हो आपके साथ नम्रता लाएगा, इस
विनय गुण से भारतीय संस्कृति जीवित रहती है। इन धर्मों से यदि आपके स्वभाव
में, परिणामों में परिवर्तन आ गया तो आपका जीवन समुन्नत हो जाएगा।
आज ९ अगस्त २०२४ भाद्रपद शु. षष्ठी को प्रात:काल श्री जिनेन्द्रदेव का अभिषेक
शांतिधारा, पर्व पूजा एवं विधान की पूजा हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुए।
भगवान सुपार्श्वनाथ गर्भकल्याणक के पवित्र दिवस रत्नवृष्टि करने का सौभाग्य
श्रीमती हेमा सेठी-औरंगाबाद ने प्राप्त किया एवं पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती
माताजी के पादप्रक्षाल का सौभाग्य श्री मंगल संतोष राहुल जी बाकलीवाल परिवार-
अहमदनगर (महा.)धनकुबेर श्री निधेश, प्रमेन्द्र, राजू जैन-टिवैâतनगर बाराबंकी ने
प्राप्त किया।
मध्याह्न में सरस्वती पूजा, गौतमगणधर वाणी एवं तत्त्वार्थसूत्र का वाचन हुआ।
पुन: परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने सभी सुदूर प्रांतों से
पधारे भक्तगणों को सामायिक विधि सिखलाई, तत्त्वार्थ सूत्र राज का अर्थ बताकर
धर्म का महत्त्व बतलाया एवं बहुत ही सुन्दर काव्यमय भगवान महावीर की नाटिका
सहित जीवनी के माध्यम से भगवान महावीर के जीवन से परिचित करवाया।
सायंकाल प्रभु आरती, गुरु आरती के साथ रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुन्दर सी
प्रतियोगिता, माता-त्रिशला महावीर संवाद आदि सम्पन्न हुए। इसी क्रम में कल ८
सितम्बर की रात्रि में उत्तम क्षमा धर्म एक रूपक का सुन्दर मंचन हुआ था जिसकी
सभी ने खूब प्रशंसा की।
ज्ञातव्य है कि तीर्थ परिसर में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ सहित विराजमान हैं एवं उनकी
प्रेरणा से, परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी के कुशल
मार्गदर्शन एवं स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के कुशल निर्देशन में तीर्थ
का भव्य निर्माण कार्य चल रहा है तथा समय-समय पर अनेक छोटे-बड़े कार्यक्रमों
का आयोजन भी चल रहा है। उसी क्रम में दशलक्षण पर्व का यह महाआयोजन है
जिसमें भारत के सुदूर प्रांतों से पधारे लगभग ४००-५०० श्रावक-श्राविकाएँ भाग
लेकर महान पुण्य का अर्जन कर रहे हैं और पीठाधीश स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति
स्वामी जी के द्वारा प्राप्त सुविधाओं की भूरि-२ प्रशंसा करते हुए तीर्थ एवं
गुरुभक्ति से स्वयं को धन्य मान रहे हैं।