विश्वशांति की कामना से चल रहा है ऋषभदेव मंदिर
अयोध्या में विश्वशांति महावीर विधान
‘‘जैसा अपने मन में विचार किया जाए, वैसा ही दूसरों से कहा जाए और वैसा ही
कार्य किया जाए’’ इस प्रकार मन, वचन, काय की सरल प्रवृत्ति का नाम ही आर्जव है।
जहाँ पर कुटिल परिणाम का त्याग कर दिया जाता है वहीं पर आर्जव धर्म प्रगट
होता है। जब मन में सरलता होती है तो अपने दुश्मन का मन भी बदलते देर नहीं
लगती है। जो व्यक्ति अपने मन में कुटिलता रखता है, मन में कुछ और वचन में
कुछ और कहता है तथा काय से कुछ और करता है वह मायाचारी कहलाता है।
शास्त्रों में लिखा है कुटिल परिणाम वाले को पशुगति मिलती है और प्राणी संसार में
भटकता रहता है। जो सरल है उसे स्वर्ग आदि उत्तम गति मिलती है इसलिए सदैव
सरल परिणाम रखना चाहिए’’ उक्त विचार आज दशलक्षण महापर्व के तीसरे दिन
‘‘उत्तम आर्जव धर्म’’ के बारे में बताते हुए जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य
चारित्रचन्द्रिका गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणी श्री ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त किए।
अनेक शास्त्रीय कथाओं के माध्यम से इस धर्म की महिमा का वर्णन करते हुए
उन्होंने कहा कि दुर्योधन ने पांडवों के प्रति मायाचारी करके उन्हें लाख के घर में भेज
दिया, पुन: लालची ब्राह्मण को धन देकर उस मकान में आग लगवा दी। पांडव अपने
पुण्य से महामंत्र के प्रभाव से बच निकले किन्तु दुर्योधन की निन्दा आज तक हो रही
है और अभी भी वे नरक में दुख उठा रहे हैं अत: मायाचारी का त्याग करके सरल
परिणामों द्वारा अपनी आत्मा की उन्नति करना चाहिए।
प्रवचन की शृंखला में सुदूर प्रांतों से पधारे भक्तों को सम्बोधित करते हुए परमपूज्य
प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने कहा कि मायाचारी से अपकीर्ति
होती है और सैकड़ों दुर्व्यसन उत्पन्न हो जाते हैं। आज संसार में जो भी लड़ाई-झगड़े
अथवा अशांति हो रही है उसका सबसे बड़ा कारण व्यक्ति के मन की कुटिलता है,
अगर हमें अपने देश में, समाज में अथवा परिवार में सुख, चैन और शांति चाहिए तो
हमें इन धर्मों को जीवन में अपनाना होगा। जिस प्रकार आग की छोटी सी चिंगारी
सारे घर को जलाकर भस्म कर देती है, छोटे से बिच्छू का डंक सारे शरीर में जलन
पैदा कर देता है उसी प्रकार मायाचारी का थोड़ा सा अंश भी व्रत, संयम, तप के
द्वारा अर्जित पुण्य कर्म को क्षण भर में नष्ट कर देता है।
ज्ञातव्य है कि शाश्वत तीर्थ अयोध्या के रायगंज परिसर में विश्वशांति की पवित्र
भावना से ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ किया जा रहा है और अिंहसा के अवतार
भगवान महावीर की रत्नों से आराधना करके जैन समाज द्वारा सम्पूर्ण विश्व में
होने वालीहसा, युद्ध आदि के समाप्त होने और सर्वत्र अमन, चैन, सुख-शांति की
स्थापना की कामना की जा रही है। वह अनुष्ठान दस दिन तक चलेगा। पर्वराज
दशलक्षण के तृतीय दिवस प्रात: मण्डल पर विराजमान भगवन्तों का अभिषेक पूजा,
पर्वपूजा, विधान पूजा आदि सानन्द सम्पन्न हुए। मध्याह्न में सरस्वती पूजा, तत्त्वार्थ
सूत्र, गौतम गणधर वाणी वाचन के पश्चात् पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री
चंदनामती माताजी ने तत्त्वार्थ सूत्र की तीसरी अध्याय के माध्यम से नरक और वहाँ
प्राप्त होने वाले दुखों का वर्णन किया तथा मनुष्यों का निवास स्थान, उनकी सीमा
आदि के बारे में बताया, साथ ही भगवान महावीर के सत्य, अिंहसा आदि सिद्धांतों को
उनके जीवनवृत्त के माध्यम से समझाया। इस अवसर पर धनकुबेर बनने का सौभाग्य
प्राप्त किया श्रीमती मीना दिलीप जैन-बैंगलोर (कर्नाटक) एवं सरस्वतीस्वरूपा
परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के पाद प्रक्षाल का सौभाग्य सौ.
गुणमाला निशा शिल्पी दीपा- जयपुर (राज.) को प्राप्त हुआ।
रात्रि में जिनेन्द्र भगवान की आरती एवं गुरु आरती के पश्चात् सांस्कृतिक कार्यक्रम
की शृंखला में आज ‘‘महासती मैना सुन्दरी’’ नाटिका का मंचन फलटण की महिलाओं
के द्वारा किया गया। सम्पूर्ण कार्यक्रम स्वस्ति श्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के
निर्देशन में सानन्द सम्पन्न हुए।