सत्य धर्म सभी धर्मों में प्रमुख है-गणिनी ज्ञानमती माताजी
‘‘सत्य धर्म सभी धर्मों में प्रमुख है, संसार को पार करने के लिए पुल के समान है। सत्य
से पुण्य कर्म का बंध होता है और मनुष्य जन्म शोभा को पाता है अत: नित्य ही हित-
मित-प्रिय वचन बोलना चाहिए, दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले वचन कभी नहीं बोलना
चाहिए।हसा, चुगली, कष्टकारी, कठोर, गाली-गालौज, क्रोध, वैर आदि के वचन को छोड़कर
जो सत्य, प्रिय, हितकर वचन बोलते हैं उनको वचनसिद्धि तक हो जाती है अर्थात् उनकी
जिह्वा पर सरस्वती निवास करती हैं और वह जो बोलते हैं वह सत्य हो जाता है। शास्त्रों
में लिखा है कि ऐसा सत्य जिससे किसी का अहित होता हो वह भी झूठ की श्रेणी में आ
जाता है।’’ उक्त विचार आज अयोध्या में भगवान ऋषभदेव जिनमंदिर के रायगंज परिसर
में दशलक्षण महापर्व के अन्तर्गत ‘‘उत्तम सत्य धर्म’’ की परिभाषा बताते हुए जैन साध्वी
परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त किये।
कुछ कथानकों के माध्यम से सत्य धर्म की महिमा बताते हुए पूज्य माताजी ने कहा कि
इस संसार में विश्वासघात के समान महापाप कोई नहीं है, झूठ बोलने वाले अपने गुरु,
मित्र और बंधुओं के साथ विश्वासघात करके दुर्गति में चले जाते हैं।
सत्य धर्म की व्याख्या करते हुए परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती
माताजी ने कहा कि सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है और झूठ से बढ़कर कोई पाप नहीं
है। सत्य ही धर्म की आधारशिला है। भारतीय करेंसी पर भी एक सूक्ति लिखी होती है
‘‘सत्यमेव जयते’’ अर्थात् सत्य की सदा विजय होती है किन्तु उसी नोट को, उसी धन को
कमाने के लिए व्यक्ति कितने झूठ बोलता है, अपने परिवार को चलाने के लिए, नाम, पद,
प्रतिष्ठा के लिए नाना प्रकार के झूठ बोलता है लेकिन यह नहीं सोचता कि उससे मेरी
आत्मा का अहित हो रहा है। सत्य का आश्रय लेकर व्यापार करने वाले या अन्य कार्यों
में संग्लन व्यक्ति सभी के मध्य विशेष स्थान बनाते हैं और सबके प्रिय बन जाते हैं।
विश्वशांति की कामना औरहसा, दुराचार, अनीति, युद्ध की विभीषिका की शांति, आपसी
भाईचारे, प्रेम, सौहार्द और मैत्रीभाव की पवित्र भावना से आयोजित ‘‘विश्वशांति महावीर
विधान’’ में आज सत्य अिंहसा के अवतार भगवान महावीर से यही मंगल प्रार्थना की गई
कि यह अनुष्ठान सभी के जीवन में शांति करने के साथ सारे विश्व में क्षेम और मंगल
को करे। ज्ञातव्य है कि अयोध्या के ऋषभदेव मंदिर, रायगंज परिसर में दस दिवसीय
विश्वशांति महाअनुष्ठान चल रहा है जिसके पवित्र परमाणु देश-देशांतर में जाकर
विश्वशांति की स्थापना करें यही इसका उद्देश्य है।
आज चतुर्थ दिवस इस अनुष्ठान का प्रारम्भ मंगल अभिषेक एवं शांतिधारापूर्वक हुआ, पुन:
नित्यपूजा, पर्वपूजा एवं विश्वशांति पूजन सम्पन्न हुई। मध्याह्न में प्रतिदिन की भाँति
सरस्वती आराधना आदि हुई तथा पू. प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने
तत्त्वार्थसूत्र वाचन के साथ-साथ भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया
कि किस प्रकार सत्य और अिंहसा का आश्रय लेकर एकसह जैसे पशु ने भी गुरु के
सम्बोधन से धर्म को ग्रहण किया और आगे जाकर तीर्थंकर महावीर बनें।
इस अवसर पर धनकुबेर बनने का सौभाग्य सौ. रेखा रमेश खोबरे-संभाजीनगर (महा.) ने
प्राप्त किया सरस्वतीस्वरूपा परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के पाद प्रक्षाल
का सौभाग्य श्रीमती हेमा सेठी अर्चना कासलीवाल शोभा पाटनी-औरंगाबाद (महा.) ने
प्राप्त किया एवं भगवान पुष्पदंतनाथ के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर निर्वाण लाडू
चढ़ाने का सौभाग्य श्री संजय पापडीवाल-औरंगाबाद (महा.), श्रीमती अर्चना कासलीवाल
भूषण कासलीवाल-(औरंगाबाद) महा, श्री कालाशचंद जैन (सर्राफ), पुत्रवधु श्रीमती वीणा
जैन-लखनऊ (उ.प्र. को प्राप्त हुआ।
रांत्रि में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में ‘‘अंत्याक्षरी प्रतियोगिता’’ का आनंद सभी ने प्राप्त
किया। सम्पूर्ण कार्यक्रम प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी एवं स्वस्तिश्री
पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के कुशल निर्देशन में सानन्द सम्पन्न हुए।