भगवान ऋषभदेव जैन मंदिर में संयम पर प्रवचन
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी
मन और इन्द्रियों पर अनुशासन करना संयम कहलाता है। चंचल घोड़े के समान
इन्द्रियाँ अत्यन्त चंचल हैं, इनके ऊपर यदि संयम रूपी लगाम का बन्धन न हो तो
वह उस पर बैठने वाले को नरकरूपी गड्ढे में गिरा दे। बड़े-बड़े राजा, चक्रवर्ती आदि
भी इन्द्रियों के दास बनकर इधर उधर भटक जाते हैं। जब आत्मा में संयम जागृत
होता है तब मानव मन की सारी इच्छाएँ अपने आप शांत हो जाती है। मानव
जनम पाना, उत्तम कुल पाना, धन-सम्पत्ति पाना, उत्तम शरीर, निरोगी शरीर, उत्तम
संगति पाना बहुत कठिन है और उसमें भी सबसे कठिन है उत्तम गुरु को पाकर
संयम धारण करना। संयम वह पवित्र धर्म है जो संसार के बंधनों से छुटकारा
दिलाकर मोक्ष की प्राप्ति कराता है। उक्त विचार आज ऋषभदेव मंदिर के रायगंज
परिसर में दशलक्षण पर्व के अन्तर्गत उत्तम संयम धर्म के बारे में व्याख्यान देते हुए
सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त किए।
विश्वशांति, सदाचार, प्रेम, मैत्री, परस्पर भाईचारे की पवित्र भावनाओं सहित किए जा
रहे विश्वशांति महावीर विधान के छठे दिन आज सारे विश्व में क्षेम, शांति का
आशीर्वाद देते हुए पूज्य माताजी ने कहा कि आज के विनाशकारी युग में जब
व्यक्ति एक-दूसरे को नीचा दिखाने और अनेक वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग कर
मार-काट में लगा है, एक देश दूसरे देश को समाप्त करने में ही अपनी शक्ति
बर्बाद कर रहे हैं, ऐसे में भगवान महावीर के बताए हुए सर्वोदयी-कल्याणकारी
सिद्धांतों से ही विश्व में शांति सम्भव है।
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने इस अवसर पर अपने
वक्तव्य में कहा कि आज का मनुष्य इच्छाओं का दास हो गया है। न उसके रहन-
सहन में विवेक रह गया है, न ही खान-पान में भक्ष्य अभक्ष्य का विचार रहा है।
स्त्री-पुरुषों की वेशभूषा ऐसी हो गई है कि कुलीन और अकुलीन का अन्तर ही नहीं
रह गया है। आज के प्राणी जिह्वा इन्द्रिय के इतने दास हो गए हैं कि वह खाते
समय भक्ष्य-अभक्ष्य, रात्रि-दिन का कुछ भी भेद नहीं रखते, हित-अहित का विवेक
नहीं रखते और अकारण ही जीविंहसा करके कर्मबन्ध तो करते ही हैं, रोगों से भी
ग्रसित हो जाते हैं। आज विश्व में चोरी, डवैâती, मारकाट, खूनखराबा, बलात्कार,
हसा आदि का जो बोलबाला है वह असंयमित जीवन के ही कारण है, ‘‘जैसा खाने
अन्न वैसा होवे मन, जैसा पीवे पानी वैसी होवे वाणी’’ अतएव अपने जीवन में हमें
संयम धर्म को अवश्य ही अपनाना चाहिए।
प्रात:काल नित्य नियम की भाँति जिनाभिषेक, शांतिधारा एवं पूजादि के कार्यक्रम
सम्पन्न हुए। मध्याह्न में सरस्वती पूजा, तत्त्वार्थ सूत्र वाचन के साथ ही पूज्य
प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने तत्त्वार्थ सूत्र की छठी अध्याय के
माध्यम से आस्रव तत्त्व का वर्णन करते हुए कर्मबन्ध से बचने के उपाय बताए
और भगवान महावीर के आदर्श जीवन को काव्यमयी झांकी के रूप में बताकर
सभी को उनके जीवन से प्रेरणा लेने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि आज
सुगंधदशमी पर्व है जिस दिन मैंने संयम रूपी अनमोल रत्न को पूज्य माताजी से
प्राप्त किया था अर्थात् ब्रह्मचर्य व्रत लेकर अपने मानव जीवन को सफल किया
था।
आज पूज्य माताजी के पादप्रक्षाल का सौभाग्य श्रीमती वर्षा वर्धमान बाकलीवाल
गुणमाला, प्रमोद बोहरा, जयमाला महावीर काला, राजमल कासलीवाल-औरंगाबाद
(महा.) ने प्राप्त किया एवं धनकुबेर बनने का सौभाग्य श्री विमल जैन कीर्ति जैन-
डालीगंज (लखनऊ) उ.प्र.ने प्राप्त करके सभी को रत्नों का वितरण किया।
रात्रि में आरती के पश्चात् ‘‘प्रथमाचार्य शांतिसागर काव्य कथानक’’ की फिल्म
दिखाई गयी जिसके द्वारा सभी ने गुरु महिमा और उनके उपकारों के बारे में
जाना, सम्पूर्ण विधि विधान पं. विजय जैन, पं. अकलंक जैन एवं पं. सत्येन्द्र जैन
द्वारा सम्पन्न कराए जा रहे हैं एवं स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के
कुशल निर्देशन में सम्पन्न हो रहे हैं। ज्ञातव्य है युद्ध की विभीषिका से जल रहे
सम्पूर्ण विश्व में शांति की कामना से आयोजित इस महाअनुष्ठान का आज छठा
दिन है, यह अनुष्ठान सारे विश्व में क्षेम और शांति की स्थापना करें ऐसी भावना
सभी भक्तों ने मिलकर व्यक्त की।