दशलक्षण महापर्व के अन्तर्गत
हवन पूर्णाहुति एवं भव्य शोभायात्रा निकाली गई विश्वशांति महाअनुष्ठान
सम्पन्न
ब्रह्मचारी सदा सुखी : उत्तम ब्रह्मचर्य
आत्मा ही ब्रह्म है, उस ब्रह्मस्वरूप आत्मा में चर्या करना ब्रह्मचर्य है अथवा
गुरु के संघ में रहना भी ब्रह्मचर्य है। इस व्रत के प्रभाव से जीव संसार को
पार कर लेता है, इस व्रत के बिना सारे व्रत और तप निष्फल हैं। जिस प्रकार
एक अंक को रखे बिना असंख्य बिन्दु भी रखने से कोई संख्या नहीं बन
सकती उसी प्रकार ब्रह्मचर्य के बिना अन्य व्रतों का फल नहीं मिल सकता,
श्रावक इसका एकदेश रूप पालन कर मात्र अपनी पत्नी के अतिरिक्त सभी को
माता-बहन के समान समझते हैं और साधु इसका पूर्ण रूप से पालन करते हैं’’
उक्त विचार आज दशलक्षण महापर्व के अन्तिम दिवस ‘‘उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म’’
की उपासना कर रहे भक्तगणों को सम्बोधित करते जैन समाज की सर्वोच्च
साध्वी परपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त किए।
श्री विजय कुमार जैन मंत्री दिगम्बर जैन मंदिर कमेटी ने बताया कि दशदक्षण
महापर्व के अंतिम दिवस उत्तम ब्रह्मचर्य के पावन अवसर पर गणिनीप्रमुख श्री
ज्ञानमती माताजी के चरण प्रक्षालन करने का सौभाग्य श्री महावीर, विमला,
शिखर, अरिहंत, मनोज जैन संजय छाबडा-गोरखपुर (उ.प्र.) ने प्राप्त किया एवं
भगवान वासुपूज्यनाथ के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर प्रथम निर्वाण लाडू
चढ़ाने का सौभाग्य श्री पुखराज जी पाण्डया-गोरखपुर (उ.प्र.) द्वितीय निर्वाण
लाडू श्री प्रकाश भारती जी छावडा-बैंगलोर (कर्नाटक) तृतीय निर्वाण लाडू श्री
हेमा सेठी, दिनेश, सतीश, सुनील, संतोष, भागचंद जैन (सेठी परिवार) –
औरंगाबाद (महा.)।
पूज्य माताजी ने कहा यह व्रत तीनों लोकों में पूज्य माना जाता है, भीष्म
पितामह ने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत के प्रसाद से लौकान्तिक देव का पद प्राप्त
कर लिया और महासती सीता ने एकदेश रूप ब्रह्मचर्य का पालन कर देवों
द्वारा पूजा को प्राप्त किया किन्तु जो व्यभिचार की भावना करते हैं वे रावण,
सूर्पनखा, दु:शासन के समान इस लोक में अपयश पाते ही हैं, परलोक में भी
दुर्गति को पाते हैं।
परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने कहा कि कुछ
लोग कहते हैं कि भोगों को भोगकर पुन: त्याग करना चाहिए लेकिन ऐसा
सर्वथा गलत है, अग्नि में लोकप्रमाण भी ईंधन डालते जाओ पर उसकी तृप्ति
कभी नहीं होती, वह जलती ही रहेगी, उसी प्रकार भोगों की लालसा भोगने से
कभी भी शांत न होकर वृिंद्धगत ही होती है। ब्रह्म-आत्मा में चर्या को
ब्रह्मचर्य कहा है। इस ब्रह्मचर्य के पालन से शरीर और आत्मा दोनों बलिष्ठ
होते हैं, इसी के तेज से साधुओं का शरीर दमकता है। ब्रह्मचर्य की जीवन्त
प्रतिमा पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी को देखकर आप इस व्रत की
महिमा को समझ सकते हैं। आज संसार में पाप और अनाचार बहुत अधिक
बढ़ गया है, दो या एक सन्तान को जन्म देने के पैâशन और भ्रूण हत्या जैसे
पाप के कारण आज लड़कियों की संख्या कम हो गई है और बलात्कार की
घटनाएँ इतनी तेजी से बढ़ी हैं कि लोग दो-दो वर्ष की बच्चियों को भी नहीं
छोड़ते, यह देश और समाज पर कलंक है जो ऐसा करते हैं वे इस भव में तो
बदनाम होते ही हैं, आगे भवों मेंनद्य योनियों में भटककर महान दुख
उठाते हैं, ऐसे समय में इस व्रत के महत्त्व को समझकर लोगों को अपने जीवन
को सदाचारी बनाना चाहिए।
पीठाधीश स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने कहा कि विषयों में आसक्त
मनुष्य प्राय: विवेकशून्य हो जाते हैं, अन्धा मनुष्य तो मात्र आँख से नहीं
देखता है किन्तु विषयों में-कामवासना में अंधा मनुष्य किसी भी प्रकार नहीं
देखता है। ८४ लाख योनियों में घूमते-घूमते बहुत कठिनता से मिली मनुष्य
पर्याय को सफल करने के लिए मन में वैराग्य भावना भाते हुए इन पाप
क्रियाओं से सदैव दूर रहना चाहिए।
आज विश्वशांति की पवित्र भावना से चल रहे ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ के
दशवें प्रात: अभिषेक शांतिधारा, नित्य पूजा, विधान पूजा के साथ पूर्णाहुति हवन
की आहुतियों में विश्वशांति की कामना भगवान महावीर से की गई। आज
भगवान वासुपूज्य का निर्वाण कल्याणक होने से निर्वाण लाडू भी चढ़ाया गया
तथा प्रभावना अंग के प्रतीक में भगवान को रथ में विराजमान करके भव्य
शोभायात्रा अयोध्या के मार्गों से निकली, इस अवसर पर दिन में एक बार मात्र
जल लेकर ३२ उपवास करने वाली श्रीमती अनूपबाई, गोरखपुर को बग्गी में
बैठाकर उनकी शोभायात्रा भी निकाली गई। मध्याह्न में सरस्वती पूजादि के
साथ पूज्य चंदनामती माताजी द्वारा तत्त्वार्थ सूत्र की अंतिम अध्याय का
वाचन कर मोक्ष के स्वरूप का वर्णन किया गया तथा रात्रि में आरती के
पश्चात् विधान में पधारकर विश्वशांति की भावना से इस महाअनुष्ठान को
सम्पन्न करने वालों एवं अनुष्ठान को सम्पन्न कराने वाले विद्वानों का
सम्मान भगवान ऋषभदेव अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी के द्वारा किया गया।
विशेष ज्ञातव्य है कि आज अनन्त चतुर्दशी का पवित्र दिवस भी है जिसे पूरे
देश में जैन-जैनेतर सभी अपनी-अपनी आस्था के अनुसार मनाते हैं, आज के
पावन दिन हमारे उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री माननीय श्री योगी
आदित्यनाथ जीे ने सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में मांसाहार की दुकानें बन्द करवाकर
म्ाहान पुण्य का कार्य किया है इस हेतु पूज्य माताजी ने माननीय श्री योगी
जी, माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी, माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू,
देश की सीमा पर जवान वीर सपूतों एवं सम्पूर्ण देश के शासन-प्रशासन को
खूब-खूब आशीर्वाद देते हुए उनके दीर्घ यशस्वी जीवन की भावना व्यक्त की।
श्री विजय कुमार जैन (मंत्री)
शाश्वत तीर्थ क्षेत्र कमेटी (अयोध्या) उ.प्र.)
मो. नं.-९७१७३३१००८