क्षमा आत्मा का स्वभाव है उत्तम क्षमा
क्षमा वीरस्य भूषणम् : क्षमावाणी पर्व
श्री भगवान ऋषभदेव दिगम्बर जैन मंदिर बडी मूर्ति रायगंज में दशलक्षण पर्व
के समापन के अवसर पर भगवान ऋषभदेव की बड़ी मूर्ति का १००८ कलशों से
महामस्तकाभिषेक किया गया एवं सारे विश्व में अिंहसा और शांति की कामना
से महाशांतिधारा सम्पन्न की गई। आचार्यों ने कहा कि वर्ष भर में हुई समस्त
भूल एवं वैर को भुलाकर के आपस में परस्पर एक दूसरे से क्षमा माँगते हुए
एक दूसरे को गले लगाकर के मिच्छामि दुक्कडम् अर्थात् उत्तम क्षमा एक दूसरे
को करते हैं। इस पर्व को सारे देश में जैन समाज के समस्त श्रद्धालुगण आपस
में समस्त वैर विरोध को भूलकर एक दूसरे को क्षमा करते हुए इस पर्व को
मनाते हैं।
श्री विजय कुमार जैन मंत्री अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी ने बताया कि क्षमावाणी के
पर्व सारे देश के आए हुए श्रद्धालुओं ने भगवान ऋषभदेव की बडी मूर्ति का
पंचामृत महामस्तकाभिषेक दूध, जल, दही, घी, सर्वोषधि, हरिद्रा आदि भगवान के
मस्तक पर महाभिषेक सम्पन्न किया। इस अवसर पर जैन समाज की वरिष्ठ
साध्वी भारत गौर गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने इस पर्व के प्रवचन देते
हुए कहा कि सबसे क्षमा सबको क्षमा का सूत्र जीवन में सदैव ऊँचाइयों के पद
पर ले जाता है एवं अिंहसा व शांति की स्थापना का सबसे बड़ा सूत्र है कि सभी
को क्षमा करें और सबसे परस्पर में क्षमा माँगे क्षमा आत्मा का गुण है स्वभाव
है एवं विश्वशांति का सबसे बड़ा सूत्र है।
‘‘दशलक्षण पर्व का प्रारम्भ भी क्षमाधर्म से होता है और समापन भी क्षमावाणी
पर्व से किया जाता है। दस दिन धर्मों की पूजा करके, जाप्य करके जो परिणाम
निर्मल किए जाते हैं और क्षमा, मार्दव आदि दस धर्मों का उपदेश श्रवण कर जो
आत्मशोधन होता है उसी के फलस्वरूप सभी श्रावक-श्राविकाएँ किसी भी निमित्त
परस्पर में होने वाली कटुता को दूर कर आपस में क्षमा कराते हैं क्योंकि यह
क्रोध कषाय प्रत्यक्ष में ही अग्नि के समान भयंकर है।’’ उक्त विचार आज
दशलक्षण पर्व के समापन और क्षमावाणी पर्व के मांगलिक अवसर पर जैन
समाज की सर्वोच्च साध्वी परपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त
किए।
उन्होंने कहा कि महामुनि पूर्ण क्षमा के अवतार होते हैं। शांत भाव का आश्रय
लेने वाले उन महामुनियों को देखकर जन्मजात वैरी हरिणी-व्याघ्र, मोर-सर्प,
बिल्ली-हंस आदि क्रूर पशुगण भी क्रूरता छोड़ देते हैं। क्षमा और शांति के सागर
चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज आदि साधुओं ने इस युग में भी
उपसर्ग करने वालों पर क्षमाभाव धारण करके सदैव आदर्श प्रस्तुत किया है।
हृदय से क्षमा करना तथा दूसरों से क्षमा कराना ही क्षमावाणी पर्व है।
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने आज के पावन पर्व
पर अपने उद्बोधन में कहा क्षमा प्रेम का एक नाम है, क्षमा धरती का एक नाम
है, क्षमा कषायों की उपशमता का नाम है, क्षमा अपनत्व का एक सहज रूप है,
क्षमा आत्मा का स्वाभाविक गुण है, क्षमा समर्पण का एक नाम है, क्षमा भगवान
का जीता-जागता स्वरूप है। जब वह क्षमा मानव में अवतरित हो जाती है तो
उसकी वाणी भी क्षमास्वरूप हो जाती है। आज भाई-भाई में, सरकार में, देश में,
समाज में अथवा विश्व में जो अशांति का वातवरण है, परस्पर वैराग्य है, एक
दूसरे को खत्म कर देने की क्रूर भावना है वह क्षमा धर्म के अभाव में है, कषायों
के कारण है, अगर हम अपने अंदर कषायों को जीतकर क्षमा गुण को अवतरित
कर लेंगे तो सर्वत्र शांति का वातावरण तो होगा ही एक दिन भारत ही नहीं सारा
विश्व सोने की चिड़िया कहलाएगा।
स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी ने कहा कि क्रोध आते ही मनुष्य को
चेहरा लाल हो जाता है, होंठ काँपने लगते हैं, मुखमुद्रा विकृत और भयंकर हो
जाती है किन्तु प्रसन्नता में मुखमुद्रा सौम्य सुन्दर दिखती है, चेहरे पर शांति
दिखती है। इस क्रोध को छोड़कर हृदय में क्षमा धारण करना और अपने शत्रु को
हृदय से क्षमा कर देना बहुत विशाल हृदय का परिचायक है। हमें क्रोध कषाय
को दूरकर इस क्षमाभाव को हृदय में धारण करने के लिए भगवान पार्श्वनाथ के
जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए जिन्होंने एक नहीं दस-दस भवों तक अपने दुष्ट
भाई को क्षमा किया और अंत में उपसर्गों को सहनकर भगवान पार्श्वनाथ बन
गए। हमें क्षमाशील साधु पुरुषों का आदर्श जीवन देखना चाहिए।२१
ज्ञातव्य है कि ऋषभदेव जैन मंदिर, रायगंज अयोध्या में विगत दस दिनों से
विश्वशांति, युद्ध की विभीषिका की शांति, पर्यावरण शुद्धि, अिंहसाधर्म की
स्थापना आदि पवित्र भावों की मंगल कामना के साथ ‘‘विश्वशांति महावीर
विधान’’ का महाअनुष्ठान भारत के विभिन्न अंचलों से पधारे भक्तगणों द्वारा
किया जा रहा था जिसका समापन आज क्षमावणी पर्व मनाकर किया गया। इस
अवसर पर सभी ने विगत वर्षों में अपने द्वारा हुई किसी भी प्रकार की गलती
के लिए एक-दूसरे से क्षमायाचना की। यह जैनधर्म की विशेषता है कि यहाँ
साधुगण प्रतिदिन दिन में तीन बार अपनी अपनी चर्या में सभी से ‘‘मिच्छा में
दुक्कडं’’ करते हैं और श्रावक भी यथाशक्ति इस क्षमा धर्म को स्वयं में अवतीर्ण
करने की भावना करते हैं।
श्री विजय कुमार जैन (मंत्री)
शाश्वत तीर्थ क्षेत्र कमेटी (अयोध्या) उ.प्र.)
मो. नं.-९७१७३३१००८