अिंहसा सर्वश्रेष्ठ धर्म है
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी
धर्म एक मिश्री के टुकड़े की भाँति है। जैसे मिश्री को आप चाहें स्वरुचि से खाएं या कोई
जबरदस्ती खिला देवे किन्तु मुँह में जाने के बाद वह मीठी ही लगती है उसी प्रकार से धर्म
को चाहे स्वरुचि से पालें अथवा गुरूप्रेरणा से, वह तो सदैव अचिन्त्य फल को प्राप्त कराता है।
वास्तव में तो धर्म आत्मा का स्वभाव ही है। वर्तमान की युवा पीढ़ी धर्म के नाम से दूर
भागती है क्योंकि इस यांत्रिक युग में मानव मशीन के समान हो गया है, आज लोगों को
मंदिर जाने की भी फुर्सत नहीं है, गुरुओं के पास आने में भी सोचते हैं कि कोई नियम न दे
दें किन्तु धर्म की गाड़ी तो सदैव धक्के से ही चलती है, गुरुओं की प्रेरणा आज भले कटु लगे
किन्तु हाथ पकड़कर मोक्षमार्ग में लगाने वाले सच्चे गुरु ही होते हैं। ‘‘उक्त विचार आज
ऋषभदेव जैन मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए पूज्य गणिनीप्रमुख श्री
ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त किए।
अिंहसा को सर्वश्रेष्ठ धर्म बताते हुए उन्होंने कहा कि जैनधर्म मेंहसा चार प्रकार की बताई
है उसमें से भोजन आदि बनाने के लिए पानी भरना, आग जलाना आदि आरम्भीहसा है,
व्यापार करना उद्योगीहसा है, अपने धर्म, समाज, देश, परिवार पर संकट आने पर जो रक्षा
के लिएहसा की जाती है वह विरोधिनीहसा है जैसे राम ने सीता को रावण से छुड़ाने
के लिए, नारी जाति के ऊपर हो रहे अत्याचार को मिटाने के लिए रावण से युद्ध किया। यह
तीनों प्रकार कीहसा श्रावक कर सकता है किन्तु संकल्पीहसा जैसे जानबूझकर जीव को
मारना आदि इसे जैनधर्म में मनुष्य के लिए त्याज्य बताया है। साधु इन चारों प्रकार की
हसा का त्याग करते हैं।
पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने कहा कि कोई जीव भले हीहसा
नहीं कर रहा है किन्तु उसका मन प्रमाद और कषाय से सहित है तो वहहसक कहलाएगा
और अगर प्राणी में कषाय और आलस्य नहीं है अनजाने में उससे चींटी मर गई या किसी
प्रकार सेहसा हो गई तो वह अिंहसक है क्योंकि प्रधानता भावों की है। कई बार देखा
जाता है कि दो-चार लोग एक पास बैठते हैं और अकारण ही चर्चा करते हैं कि इस व्यक्ति
का अहित हो जावे, वह मर जावे तो अच्छा है तो सामने वाले का अहित हो या न हो सोचने
वाले को मारने का दोष लग जाता है।
स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा जो उत्तम सुख
में ले जाए वह धर्म है। धर्म का पालन करने में जातिवाद का कोई बंधन नहीं होता यदि एक
पशु जैसे तुच्छ प्राणी ने भी धर्म को अपने जीवन में धारण कर लिया तो महान बन गया
और यदि उच्च कुल में जन्म लेकर किसी नेहसा आदि गलत बातों को अपने जीवन में
उतारा तो उसकी कुलीनता व्यर्थ है।
ज्ञातव्य है कि अयोध्या तीर्थ के रायगंज स्थित विशाल ऋषभदेव जैन मंदिर के परिसर में
जम्बूद्वीप हस्तिनापुर, मांगीतुंगी आदि अनेकों तीर्थों का उद्धार करवाने वाली जैन समाज की
सबसे बड़ी महान साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ के साथ
विराजमान हैं जहाँ उनका चातुर्मास चल रहा है। इस चातुर्मास में उनके सानिध्य में अनेक भव्य
कार्यक्रम सम्पन्न हो रहे हैं।