गुरु का स्थान सर्वपूज्य है
प्राचीनकाल से कृषि प्रधान इस भारत देश में ऋषियों की परम्परा चली आ रही है। इन्हीं की त्याग तपस्या के बल पर देश का
मस्तक गौरव से ऊँचा उठा हुआ है। आचार्यों ने कहा है कि जिस देश का आश्रय लेकर साधु तपस्या करते हैं उनकी तपस्या का
छठा भाग पुण्य वहाँ के राजा को स्वयमेव मिल जाता है इसलिए सबको हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि स्वयं तपश्चर्या न कर
सकें तो न सही किन्तु तपस्वियों कीनदा कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा महान पाप का बंध होगा। प्रत्येक धर्म ने गुरु को
मान्यता दी है, गुरु ही भगवान तक पहुँचने का मार्ग बताते हैं इसलिए गुरु का स्थान सर्वपूज्य है। उक्त विचार आज ऋषभदेव
जैन मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री
ज्ञानमती माताजी ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि मोक्षमार्ग की गाड़ी सदैव दो पहियों से चलती है एक साधु धर्म और दूसरा गृहस्थ धर्म। अनादिकाल से दोनों ही
धर्म इस पृथ्वी पर चले आ रहे हैं। गृहस्थ श्रावक के बिना साधुओं की चर्या नहीं चल सकती और साधु के बिना गृहस्थी कभी
मोक्षमार्ग पर नहीं चल सकता है।
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने इस अयोध्या तीर्थ की महिमा बताते हुए कहा कि जैनधर्म में दो ही
शाश्वत तीर्थ माने गए हैं-अयोध्या और सम्मेदशिखर। अयोध्या में तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं और सम्मेदशिखर से मोक्षधाम
को प्राप्त करते हैं। इस धरती की महिमा है कि इस तीर्थ की एक बार यात्रा कर लेने वाला मानव नरकगति और पशुगति में
नहीं जाता है, आपने इस तीर्थ की वंदना की तो आपको देवगति का टिकट मिल गया। आप सब संकल्प करें कि हम अपने घर
के प्रत्येक सदस्य को अयोध्या और सम्मेदशिखर का दर्शन अवश्य कराएँगे।
स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने दान की महिमा बताते हुए कहा कि प्रत्येक श्रावक को अपनी योग्यता के अनुसार
दान देने की भावना रखना चाहिए। लोग सोचते हैं कि मैंने इस मंदिर में इतना दान दिया? भला सोचा तुमने किसको दिया ?
किसी को नहीं, जो दिया वह तुम्हारे रिजर्व बैंक में जमा हो गया और बाकी जो खाया पिया या और जगह खर्च किया वह तो
व्यर्थ ही गया। एक छोटे से बालक की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि केवल गुरु के आहारदान को देखकर जय-जय करने से
वह आगे जाकर धन्ना सेठ बना, उसकी नाल गाड़ने के लिए खुदाई करने पर वहाँ रत्नों का घड़ा निकला था, यह दान की
अनुमोदना का फल है।
ज्ञातव्य है कि ऋषभदेव जैन मंदिर में वर्तमान में जैन समाज की सबसे महान साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती
माताजी अपने संघ सहित विराजमान हैं और उनके दर्शनार्थ भारत के कोने-कोने से श्रद्धालुजन पधारकर महान पुण्य का संचय
कर रहे हैं।