आचार्यश्री द्वारा लिखाया गया समाज को पत्र –
कुंथलगिरि, ता.-२४.८.५५
स्वस्ति श्री सकल दिगम्बर जैन पंचान, जयपुर!
धर्मस्नेहपूर्वक जुहारू।
अपरंच आज प्रभात में चारित्रचक्रवर्ती १०८ परम पूज्य श्री शांतिसागर जी महाराज ने सहस्रों नर-नारियों के बीच श्री १०८ मुनिराज वीरसागर जी महाराज को आचार्यपद प्रदान करने की घोषणा कर दी है अतः उस आचार्यपद प्रदान करने की नकल साथ में भेज रहे हैं, उसे सकल संघ को एकत्र कर सुना देना। विशेष- आचार्य महाराज ने यह भी आज्ञा दी है कि आज से धार्मिक समाज को इन्हें (श्री वीरसागर जी महाराज को) आचार्य मानकर इनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
लि. गेंदनमल, बम्बई लि. चंदूलाल ज्योतिचंद, बारामती
आचार्यश्री शांतिसागर महाराज की समाधि के पश्चात् जयपुर (खानिया) में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में श्री वीरसागर जी महाराज ने अपने गुरुवियोग से व्यथित ह्रदय के उद्गार श्रद्धांजलि के माध्यम से व्यक्त किये थे। वे श्रद्धांजलि वचन यहाँ प्रस्तुत हैं-
गुरुचरणों की देन
पूज्यपाद गुरुदेव श्री १०८ आचार्यवर्य शांतिसागर जी महाराज को जिन्होंने जीवनकाल में परखा और अपनाया, उन्होंने मानव जीवन को सफल कर लिया है। मेरे द्वारा गुरुदेव का शिष्यत्व स्वीकार करने में वैराग्य के अतिरिक्त उनका परमोच्च और महानतम व्यक्तित्व भी कारण था। मैंने गुरुदेव को बहुत ही निकट से देखा, उनके बराबर अन्य महापुरुष अपनी आयु में दृष्टिगोचर नहीं हुआ। मुझ पर यह सारी देन गुरुदेव के चरणों की है।
मुझे सबसे बड़ी व्यथा यह है कि गुरुदेव की सल्लेखना एवं अन्त बेला में मैं निकट सम्पर्क में न रह सका और न दर्शन प्राप्त कर सका।
मैंने हजारों की संख्या में एकत्रित जनता की प्रार्थना पर भी जिस आचार्यपद को स्वीकार नहीं किया, उसे इस ८१ वर्ष की अवस्था में गुरुदेव का प्रसाद समझकर ही अनिच्छा होते हुए भी स्वीकार करना पड़ा। गुरुदेव की आज्ञा का उल्लंघन वैâसे करता। इस स्वेच्छाचारी युग में मुझ जैसे अपुण्यशाली से इस