त्याग घर का जो करते हो, तभी तो चीजें मिलती हैं। धरी वस्तुएँ चीजें तो त्याग करने से मिलती है। सन् १९६५ की बात है, अमेरिका से भारत अन्न आता था देशवासियों के लिए। सभी देशविायों के लिए कहना है, आप लोग बुरी चीजें त्याग करें अच्छी-अच्छी चीजें ग्रहण करें। उत्तम त्याग अपने जीवन में साकार करने के लिए छोटे-छोटे त्याग करें। महिलाएं आज के दिन असली त्याग करे कि भ्रूण हत्या न करवाएं। माता अपनी ममता को हृदय में लाएं।
पूज्य चारित्रचन्द्रिका गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने उद्बोधन में सर्वप्रथम बताया” आज भाद्रपद शुक्ला द्वादशी है-इसको श्रावण द्वादशी भी कहते हैं। आज वासुपूूज्य भगवान का अभिषेक-पूजन करना आदि। चतुर्थकालीन वाणी इसमें आज क्रम प्राप्त नवमीं अध्याय का वाचन सभी लोग करेंगे।
भगवान महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर हुए हैं। इसमें नवमीं अध्याय है-इच्छामि भंते-इसका अर्थ है-हे भगवन्! सूत्र (आगम) के मूलपदों की और उत्तम पदों की अत्यासादनता (अवहेलना) होने पर जो कोई दोष उत्पन्न हुआ है, उस दोष के निराकरण करने की इच्छा करता हूँ”- आज क्रम प्राप्त उत्तम त्याग धर्म पर माताजी ने कहा कि संयत के योग्य ज्ञान आदि को देना त्याग है। रत्नत्रय का दान देना वह प्रासुक त्याग कहलाता है और तीन प्रकार के पात्रों के लिए चार प्रकार को दान देना भी त्याग है, ऐसा आर्ष ग्रंथों में कहा है।
माताजी ने त्याग की महिमा बताई और सभी भक्तों को प्रेरणा दी कि आज के दिन आप भी कुछ न कुछ अवश्य त्याग करें। सभी के लिए बहुत-बहुत आशीर्वाद है।