कुण्डलपुर के राजकुमार महावीर
कुण्डलपुर नगर का दृश्य है। खूब सजी हुई नगरी दिखाएँ। सब तरफ पुष्प, रत्न आदि बिखरे हुए हैं। नगरवासी सब बड़ी प्रसन्नमुद्रा में दिखाई दे रहे हैं। जगह-जगह पर लोग बैठे हंस-हंसकर बातें कर रहे हैं। तभी उस नगर में किसी दूसरी नगरी से एक व्यक्ति आता है और उस नगर की शोभा को देख-देखकर अचम्भित हो रहा है-
व्यक्ति – हे भगवान् ! मैं यह कहाँ आ गया? कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ?
कुण्डलपुरवासी – कहो भाई! तुम कहाँ से आए हो? और इतने आश्चर्यचकित क्यों हो रहे हो?
व्यक्ति – भाई! मैं बहुत दूर से आया हूँ और इस नगर की स्वर्ग जैसी शोभा को देख-देखकर बहुत हैरान हूँ। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि…..
कुण्डलपुरवासी –(बीच में बात काटते हुए) समझाता हूँ, समझाता हूँ, भैया! तुम इतनी चिन्ता काहे को करते हो? चलो, कहीं बैठकर बात करते हैं। (दोनों पास ही एक पेड़ के नीचे बैठकर वार्तालाप करते हैं)-
व्यक्ति – हाँ भाई! अब बताओ, इस नगरी की सुन्दरता का क्या राज है?
कुण्डलपुरवासी – सुनो! यहाँ के राजा सिद्धार्थ हैं न! उनकी महारानी त्रिशला ने जिस दिन से गर्भ धारण किया है उसके छह महीने पहिले से यहाँ रोज खूब रतन बरसते हैं।
व्यक्ति –(आश्चर्य से) अच्छा! तो ये बात है! (तभी कई नर-नारी झूमते-नाचते हुए आते हैं और कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ की जय-जयकार करते हैं-)
सामूहिक स्वर –जय हो, महाराजा सिद्धार्थ की जय हो, महारानी त्रिशला की जय हो, कुण्डलपुर के राजकुमार की जय हो!
व्यक्ति – क्या हुआ! आप लोग ये जय-जयकार क्यों कर रहे हैं?
कुण्डलपुरवासी – भैया! हमें इतने दिनों से इंतजार था, वह रत्न हमें आज मिल गया।
व्यक्ति – तुम्हारा मतलब, रानी त्रिशला ने पुत्र रत्न को जन्म दे दिया है।
(यह सुनते ही सभी लोग पुनः नाचने लगते हैं।)-
आओ रे आओ खुशियां मनाओ, मंगल बेला आई।
कुण्डलपुर के कण कण में, प्रभु जन्म की खुशियाँ छाई।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।
(पुन: सभी लोग जय-जयकार करते हुए राजा सिद्धार्थ के राजदरबार में प्रवेश करते हैं)-
(राजा सिद्धार्थ का राजदरबार दिखाएँ, सब तरफ खुशियाँ मनाई जा रही हैं, सभी को किमिच्छक दान बाँटा जा रहा है।
राजा बहुत ही प्रसन्नमुद्रा में राजसिंहासन पर बैठे हैं)- सामूहिक स्वर -महाराज सिद्धार्थ की जय हो! सिद्धार्थ के दुलारे की जय हो!
व्यक्ति (१)-बधाई हो महाराज, बधाई हो!
व्यक्ति (२)-आज तो बहुत ही खुशी का दिन है महाराज! व्यक्ति
व्यक्ति (३)-महाराज! हम भी भगवान बालक का मुख देखना चाहते हैं।
(यह सुनते ही राजा मंत्री को आदेश देते हैं)-
राजा सिद्धार्थ – मंत्रिवर! इन सभी को ले जाकर महल के स्वागत कक्ष मेें बिठाओ।
मंत्री – जो आज्ञा महाराज! (प्रजाजन की ओर देखकर) आइए आप लोग मेरे साथ आइए। (सभी लोग अन्दर जाकर जिन बालक के दर्शन का इंतजार करते हैं)