Jambudweep - 7599289809
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जैन तीर्थ
अयोध्या
जिनागम नवनीत
May 5, 2023
Books Final
jambudweep
जिनागम नवनीत
01. णमोकार महामंत्र
02. चत्तारि मंगल पाठ अनादि निधन है।
03. णमोकार महामंत्र अनादि है, इसके अनेक प्रमाण हैं।
04. ॐ मंत्र में पंचपरमेष्ठी समाविष्ट हैं
05. पंचवर्णी ह्रीं में चौबीस तीर्थंकर विराजमान हैं
06. अर्हं मंत्र की महिमा
07. अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं
08. जिनेन्द्रदेव का लक्षण करते हुये श्रीपूज्यपाद स्वामी स्तुति करते हैं।
09. सम्यक्त्व का लक्षण
10. सम्यग्दृष्टी यदि जिनशास्त्र का एक पद है
11. किन-किन आचार्यों के ग्रंथ प्रमाणीक हैं
12. कषायप्राभृत ग्रंथ परम्परागत भगवान की दिव्यध्वनि से प्राप्त है
13. तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ आप्त-भगवान की वाणी से प्राप्त प्रमाणीक है
14. श्री कुन्दकुन्ददेव-विदेह क्षेत्र में जाकर सीमंधर स्वामी का दर्शन किया है
15. युग की आदि में इंद्र ने अयोध्या में सर्वप्रथम पाँच जिनमंदिर बनाये
16. कैलाशपर्वत पर भरतचक्री द्वारा बनवाये गये मंदिर
17. कैलाशपर्वत पर भरत चक्रवर्ती ने जिनमंदिर बनवाये थे
18. सुलोचना ने जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएँ बनवाई
19. हरिषेण चक्रवर्ती ने अगणित जिनमंदिर बनवाये
20. श्री रामचन्द्रजी ने कुंथलगिरि पर अनेक जिनमंदिर बनवाये
21. धाराशिव नगर में १००८ खम्भों का जिनमंदिर
22. लंका में रावण के महल में विशाल स्वर्णमयी १००० खंभों का शांतिनाथ मंदिर था
23. श्रीरामचन्द्र जी ने लंका में स्वर्णमयी हजार खंभों वाले
24. आकाश में विजय देव के नगर में जिनमंदिर हैं।
25. श्रावकों की त्रेपन क्रियायें श्रीकुन्दकुन्ददेव ने वर्णित की है।
26. बावड़ी के जल में सात भव दिख जाते हैं
27. एक चैत्यवृक्ष के चार मानस्तंभ हैं।
28. केवलज्ञान वृक्ष ही अशोक वृक्ष है।
29. २४ तीर्थंकरों के समय में २४ कामदेव
30. २४ कामदेव के नाम
31. तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि नियम से सिद्ध होते हैं
32. हुंडावसर्पिणी के दोष से होने वाले कार्य
33. अकृत्रिम जिनमंदिर के बावड़ी में जिनमंदिर
34. पाण्डुकवन में मानस्तम्भों का वर्णन
35. भागीरथ महामुनि के पाद प्रक्षाल के क्षीरोदधि के जल से गंगानदी भागीरथी कहलाई है
36. मंदिरों पर श्वेत पताकायें थी
37. जब धर्म का ह्रास होने लगता है तब तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं।
38. दशरथ के पिता राजा अनरण्य ने अपने छोटे पुत्र अनन्तरथ के साथ दीक्षा ली थी
39. विवर्धनकुमार आदि चक्रवर्ती भरत के ९२३ पुत्र थें।
40. भरत चक्रवती द्वारा बनवाए गए जिनमंदिरों का राजा दशरथ ने जीर्णोद्धार कराया है।
41. चक्रवर्ती हरिषेण ने पर्वतों पर जो मंदिर बनवाये थे, उनमें श्वेत पताकायें लहरा रही थीं
42. भगवान महावीर का जन्म कुण्डलपुर में रात्रि में हुआ
43. भगवान महावीर ने देवकृत दिव्य भोगों का अनुभव किया
44. भगवान महावीर विपुलाचल पर्वत पर पहुँचे
45. भगवान महावीर की दिव्यध्वनि श्रावण कृष्णा एकम् को खिरी
46. इन्द्र ने सर्वप्रथम भगवान का ऋषभदेव नाम रखा
47. २४ तीर्थंकरों के प्रथम पारणा के नगर
48. २४ तीर्थंकरों के प्रथम आहार दाता के नाम
49. भगवान महावीर का प्रथम आहार स्थान
50. दान का फल
51. तीर्थंकरों के आहार के समय रत्नवृष्टि
52. समस्त तीर्थंकरों को केवलज्ञान की प्राप्ति कितने उपवास के बाद हुई
53. २४ तीर्थंकरों के केवलज्ञान उत्पत्ति के स्थान
54. कौन से तीर्थंकर किस आसन से मोक्ष गए
55. भीम महामुनि ने भाले के अग्रभाग से दिये जाने रूप वृत्तपरिसंख्यान नियम लिया
57. संक्रांति में जैनेश्वरी दीक्षा का मुहूर्त नहीं है
58. पुण्य की महिमा का वर्णन
59. पुण्य के ४ भेद हैं
60. पुण्य से चार प्रकार की लक्ष्मी मिलती हेै
61. पूजा के चार भेदों में मुनियों को दान देना भी शामिल है
62. श्रावकों की इज्या आदि षट् क्रियाये हैं।
63. हरिवंश पुराण में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों में ही सल्लेखना को कहा है
64. द्वारावती में कुबेर ने सर्वप्रथम एक हजार शिखरों वाला जिनमंदिर बनाया था
65. सबसे अधिक अकालमृत्यु
66. द्रौपदी का स्वयंवर हुआ है न कि भिक्षा में प्राप्त हुई
67. द्रौपदी को पंचभर्तारी मानने वालों के प्रति आचार्यदेव के वचन
68. उमास्वामी श्रावकाचार तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता के द्वारा ही रचित है।
69. अग्नि में हवन के प्रमाण एवं सप्तमप्रतिमाधारी ब्रह्मचारी भी हवन करें
70. सचित्त को अचित्त करने की विधि
71. भगवान को चढ़ाने के लिये पुष्प कैसे हों ?
72. दूध से अभिषेक हेतु गाय, पुष्प चढ़ाने हेतु वाटिका एवं अभिषेक
73. द्विदल कच्चे दूध और कच्चे दूध के जमाये दही में दो दाल वाले धान्य के मिलाने से बनता है।
74. पांच स्थावर के चार-चार भेदों में दो-दो निर्जीव हैं
75. उत्तरपुराण गं्रथ में लिखा है कि मोक्षकल्याणक में इन्द्र भगवान के शरीर का संस्कार करेंगे।
76. दिव्यध्वनि का लक्षण
77. श्रावण मास की प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है
78. षट्खंडागम आदि ग्रन्थ पूर्ण प्रमाण हैं
79 . साधु के २८ मूलगुण भिन्न प्रकार से हैं
80. पुरुष की ७२ कलाओं के नाम
81. भवन,भवनपुर, आवास व्यतंर के कहाँ हैं ?
82. सुमेरु के नंदनवन में वापी के मध्य सौधर्मेन्द्र का प्रासाद है
83. पाण्डुक शिला का वर्णन
84. ऐरावत हाथी का वर्णन
85. चन्द्र सूर्य के विमान का वर्णन
86. सच्चे मित्र से बढ़कर संसार में कोई नहीं है
87. वचन चार प्रकार के होते हैं
88. २४ तीर्थंकरों के साथ मोक्ष प्राप्त मुनियों की संख्या
89. १६ कल्पों में मतभेद-अंतर
90. सौधर्म आदि स्वर्गों में विमानों का वर्णन
91. चतुर्थ गुणस्थान में सम्यक्चारित्र के बिना भी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान होता है।
92. गर्भ कल्याणक में कुबेर माता-पिता का तीर्थ जल से अभिषेक करते हैें, पूजा करते हैं।
93. पृथ्वी के छत्तीस (३६) भेदों का स्पष्टीकरण
94. वर्ग, वर्गणा एवं स्पद्र्धक का लक्षण
95. २८ मूलगुण धारण करना छेदापस्थापना चारित्र है
96. अड़तालीस संस्कारों के नाम
97. जैनशासन के अन्तर्गत नमोऽस्तु शासन है
98. देवों के यान-विमान,वस्त्राभरण नित्य व अनित्य भी हैं।
99. श्री ऋषभदेव के चौरासी गणधर के नाम
100. सभी समुद्रों के जल का स्वाद अपने नाम के अनुरूप है।
101. स्वयंप्रभ पर्वत के बाहर कर्मभूमि है
102. पंचामृत अभिषेक के प्रमाण
103. चंदन लेपन के प्रमाण
104. पुष्प चढ़ाने के प्रमाण
105. सचित्त पूजा निर्दोष है
106. स्त्रियों द्वारा जिनाभिषेक के प्रमाण
107. जनेऊ धारण के प्रमाण
108. शासन देव-देवी आदि के प्रमाण
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