अभिनन्दन प्रभु के शासन की करें सदा सेवा || आरती ० ||
जो सच्चे मन से ध्याता , हर इच्छा पूरी होती |
जिनधर्मपरायण भक्तों की, रक्षा करते नित ही || आरती ० ||
तेरी प्रियकारिणि यक्षी , माँ वज्रश्रंखला मानी |
प्राचीन कई ग्रंथों में, इस नाम से जाती जानी ||आरती ० ||
धन सुख संपत्तिप्रदाता , मंगलमय सब सुखदाता |
सम्यक्द्रष्टी कहलाए , तव महिमा यह जग गाता || आरती ० ||
जिनधर्म सदा उर में हो , प्रभु भक्ति सदा हो जीवन में |
बस एक यही अभिलाषा , ”इंदू” है सबके मन में || आरती ० ||
हे देव तुम्हें हम जजते , यह इच्छा पूरण करना |
सम्यग्दर्शन में दृढता , हर भक्त के मन में रखना || आरती ० ||