समिति में तत्पर मुनि प्रमाद का परिहार करने के लिए दश धर्म का पालन करते हैं।
उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये दश धर्म हैं।
उत्तमक्षमा- शरीर की स्थिति के कारण आहार के लिए जाते हुए मुनि को दुष्टजन गाली देवें, उपहास करें, तिरस्कार करें, मारें-पीटें आदि तो भी मुनि के मन में कलुषता का न आना उत्तम क्षमा है।
उत्तम मार्दव- जाति आदि मदों के आवेशवश अभिमान न करना।
उत्तम आर्जव- मन, वचन, काय की कुटिलता को न करना।
उत्तम शौच- प्रकर्ष प्राप्त लोभ का त्याग करना।
उत्तम सत्य’- साधु पुरुषों के साथ साधु वचन बोलना।
उत्तम संयम- प्राणी की हिंसा और इन्द्रियों के विषयों का परिहार करना।
उत्तम तप- कर्मक्षय के लिए बारह प्रकार का तप करना।
उत्तम त्याग– संयम के योग्य ज्ञानादि का दान करना।
उत्तम आकिंचन्य– जो शरीर आदि है उनमें भी ‘यह मेरा है’ ऐसे अभिप्राय का त्याग करना।
उत्तम ब्रह्मचर्य- स्त्रीमात्र का त्याग कर देना अथवा स्वतंत्र वृत्ति का त्याग करने के लिए गुरुकुल में निवास करना१ ये दश धर्म संवर के कारण माने गये हैं।