तर्ज-फूलों सा चेहरा……….
दीक्षा का पावन दिवस, मंगलमयी आज है।
निज-पर कल्याण करें, चिंतन दिन-रात करें, चन्दनामती मात हैं।।
ग्यारह बरस की छोटी उमर में, घरबार के मोह को छोड़ा है।
खाने-खेलने की ही आयु में, संसार से तुमने मुख मोड़ा है।।
मात मोहिनी की, सन्तान बारवीं, बचपन में तुम नाम था माधुरी,
वाणी के माधुर्य से, जन-जन में आल्हाद है।
निज-पर कल्याण करें, चिंतन दिन-रात करें, चन्दनामती मात हैं।।१।।
साहित्य लेखन की शैली हैं जितनी, सब पे तुम्हारा अधिकार है।
कहती हैं इसमें मेरा न कुछ भी, यह तो गुरु का चमत्कार है।।
ज्ञान तो भरा है, मान नहिं जरा है, वात्सल्यवर्षा सदा करती हैं,
कुछ रज कण मुझको मिलें, मन में यही भाव है,
निज-पर कल्याण करें, चिंतन दिन-रात करें, चन्दनामती मात हैं।।२।।
हम सब बहुत ही सौभाग्यशाली, कलियुग में ऐसी माता मिलीं।
दर्शन से ऐसा लगता है मानों, सतयुग की ब्राह्मी औ सुन्दरी।।
इनकी ज्ञानगरिमा, चारित्र महिमा, बढ़ती रहे ‘‘सारिका’’ चाहती,
लम्बी हो, इनकी उमर, हम सबके अरमान हैं।
निज-पर कल्याण करें, चिंतन दिन-रात करें, चन्दनामती मात हैं।।३।।