निर्धन गोपाल दरिद्रता के शिकंजे में भलीभांति जकड़ चुका था। लगातार तीन वर्ष की फसलें अनाज खाकर निरा-केवल भूसा उगल रहीं थी। साहूकार का सूद मूल-धन से दूना हों रहा था और इधर तीन-तीन अविवाहित लड़कियाँ थीं जो निर्दय-निर्मम साहूकार के सूद से भी अधिक घास-पूâस की तरह बढ़ रही थी। किसानी धंधा जब मंहगा पड़ा तो राजा के यहाँ चरवाहे का काम शुरू किया पर थोड़ी सी आमदानी के कारण हफ्तों उपवास का पुण्य-लाभ उसे लेना ही पड़ता था। उपवास क्या ?…रपट परे की हरिगंगा’! धनिक को अपने धन और कृषक मेघराज पर अटूट विश्वास रहता है,पर बेचारा निर्धन व्यक्ति किस पर अपनी आस्था रखे? ज्योतिषी, पंडे, पीर, पुरोहित और पुजारी में से प्रत्येक के दरवाजे खटखटाये, उनकी मनौती की तथा शेष धन से भली भाँति आराधना की-अर्चना की; किन्तु उससे दूसरे भव में चाहे जो पुण्य-फल मिले, प्रत्यक्षत: तो फायदा दिखाई नहीं दिया। गरीब का विश्वास साधु, संत, महात्मा और सिन्दूर पुते पत्थर के देवी देवताओं पर अधिक होता है। गोपाल ग्वाला भी इन सब की बहुत दिनों तक पूजा-अर्चना करने के उपरान्त एक दिन नग्न दिगम्बर समदर्शी मुनि श्री धर्मकीर्ति महाराज के आश्रय में पहुँचा।भक्ति पूर्वक मुनिराज की वैयावृत्ति की तत्पश्चात् निवेदन किया कि ‘‘महाराज! मैं अल्पज्ञ हूँ-अबोध हूँ साथ ही दरिद्रता ने हमारे घर,पैर तोड़ कर डटकर आसन जमा लिया है। दयालु मुनिराज ने आशीर्वाद देते हुए र्धािमक उपदेश दिया-
सततम् जात विनष्टा, बुद्धि-बुद्धि मतामपि। धृत-लवण तैल तण्डुल, कुटुम्ब भर चिन्तया सतनम्।।
नोन तेल लगड़ी की चिन्ता में गरीब ही नहीं अपितु विद्धान् पुरुष तक अपने ज्ञान को रीते ताक पर रखकर चिन्ता में मशगूल रहा करते हैं। धनी और निर्धन का विश्लेषण उसकी पूर्वोपार्जित कृतियों से किया जाता है। इन कृतियों के परिणाम सम्मुख कभी कर्मठ व्यक्ति का पुरुषत्व भी निस्तेज होकर नैराश्य में बदल जाता है और तब निराश होकर वह इस धर्म की मंजिल की ओर पैर बढ़ाता है। मुनिराज ने गोपाल को संबोधित करते हुए कहा-कि ‘‘मूलगुणों को धारण करके महाप्रभावक भक्ताम्बर स्तोत्र का निरन्तर पाठ करके दरिद्रता के अभिशाप से मुक्त हो सकते हो।’’ गोपाल ग्वाल ने वृक्ष की मूल (जड़) तो अवश्य देखी थी, पर धर्म की मूल और उसके गुणों की उसे कल्पना तक न थी। अतएव समदर्शी दयालु मुनिराज ने समझाया कि निम्न वर्णित वस्तुओं का पालन करना ही मूलगुण है-
आप्ते पंच नुतिर्जीव, दया सलिल-गालनं। त्रिनद्यादि निशाहार, दुम्बाराणां च वर्जनं।।
प्रात:काल गोसली के निबट कर, पशुओं के साथ गोपाल ग्वाल जंगल में गया, और एक स्वच्छ शिलाखंड पर बैठ कर भक्तामर महाकाव्य के ३०वें और ३१वें श्लोक को पढ़ना आरम्भ किया। यद्यपि वह नेत्र बन्द करके बैठा था, फिर भी बीच-बीच में आँखे खोलकर देख लेता था कि कहीं कोई देवी तो नहीं आ गई। साथ ही घास चरते हुए पशुओं को भी एक दृष्टि से देख लेता था ताकि कोई भाग न जाये-उजाड़ में न पहँुच जाये। सुबह से रटते हुए सायँकाल आ गया पर गोपाल ग्वाल को कोई लाभ दृष्टिगोचर न हुआ। इतना अवश्य हुआ कि दो चार उजरा जानवर पशु समूह से विलग होकर बहुत आगे निकल गये। जिनको ढूढ़ने तथा स्वामी की फटकार सुनने का भार अनायास सिर पर आ पड़ा। पंडे की पेट पूजा और पीर पैगम्बर की भभूत के समान ही भक्तामर मंत्र को समझकर गोपाल स्थिर चित्त से उस पर विश्वास न कर सका।भक्तामर की सस्वर पद्य रचना उसे मोह अवश्य लेती थी और यही कारण कि वह जब तब इन श्लोकों को कोकिल कंठ से पढ़ता रहता था- गुनगुनाता रहता था। अन्य ग्वाल वृन्द जहाँ कल-कल निनादिनी सरिता के तट पर बैठ कर विरह के लोकगीत अलापा करते थे वहाँ गोपाल ग्वाल अपने बेसुरे गले से भक्तामरस्तोय के श्लोक गुनगुनाया करता था। हरीपुर नरेश की मृत्यु के उपरान्त हाकिम लोग आपस में लड़ झगड़ कर राज्य की सत्ता को हथियाने की भरपूर कोशिश कर रहे थे। नगर के सरपंच ने तब मंत्रणा करके राजा का हाथी सजाया और उसे पुष्प माला दी। हाथी द्वारा माला को ग्रहण करने वाला व्यक्ति ही राज्यगद्दी का सर्वमान्य उत्तराधिकारी होगा-यह घोषणा भी नगर भर में कर दी गई थी। घोषणा को सुनते ही नगरवासी हाथी के साथ-साथ चलने लगे। मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी के आगे सिर कर रहे थे।पिता अपने पुत्र और स्त्री को साथ लेकर घर से निकल रहे थे। माताएँ दो-दो महिने दुधमुह बच्चों उठाकर ला रही थीं। इन सब का ख्याल था शायद हाथी उन्हें ही माल्यार्पण कर कृतार्थ करे। सायंकाल गोपाल ग्वाल जंगल से जानवरों सहित लौट रहा था। नगर में भारी कोलाहल सुनकर श्लोक गुनगुनाता हुआ उत्सुकता वश उसी ओर आ पहुँच तो देखा एक मदोन्मत्त हाथी उसी की ओर दौड़ता हुआ आ रहा है। मुसीबत को निकट जानकर वह ‘कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं।’ तथा ‘छत्रत्रयं तव विभाति शशांककान्त।’’ के गुरु-मंत्र को जोर-जोर से पढ़ने लगा कि तत्काल हाथी ने गोपाल ग्वाल की गर्दन स्पर्श करने की कोशिश की ? गोपाल गर्दन छुड़ाने को भाग रहा था और हाथी गोपाल के गर्दन में माला डाल रहा था। इस खींचातानी के बीच सरपंच ने आकर गोपाल ग्वाल को खूब बधाई दी और राजगद्दी के हेतु राजा की घोषणा की।