कर्म का सिद्धांत
द्वारा -आर्यिका सुदृष्टिमति माताजी
प्रकृति के नियम अटल हैं। उन नियमों में एक है। ऊर्जा का सिद्धांत। इसके अनुसार एक बार उत्पन्त ऊर्जा को नष्ट नहीं किया जा सकता है। ठीक ऐसे ही कर्म का सिद्धांत भी कार्य करता है। एक बार किया गया कर्म बिना फल दिए कभी नष्ट नहीं होता है। यही कारण है कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने की कोशिश की है कि आप अपना कर्म करें। कर्म के अनुसार फल का मिलना तय है, इसकी चिंता न करें।
हमारे जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है जब हम संशय में पड़ जाते हैं कि अमुक कार्य किया जाना उचित है या नहीं? क्या इसे करते हुए हमारा समय व्यर्थ जा रहा है? क्या किया गया प्रयास या कर्म हमारे लिए व्यर्थ हो गया? हमारे. मन में बहुत तरह की नकारात्मक बातें आने लगती हैं। हमें लगता है कि हमारा समय यूं ही व्यर्थ चला गया। हमने जीवन के उस अंश को बेकार कर दिया। जबकि ऐसा नहीं है। इसे सरल शब्दों में कहा जाए तो अगर आपने कोई कर्म किया है तो आपने अपने हिस्से में शून्य से अधिक अर्जन किया है। जिसका फल आपको मिलना तय है। ऐसा संभव है कि हमें त्वरित फल न दिखे, लेकिन उसका प्रभाव या उसका फल या तो जीवन के किसी दूसरे हिस्से में किसी अन्य तरीके से आपके समक्ष आएगा या आपके व्यवहार में अच्छे-बुरे कर्म के अनुसार आपके अनुभव के तौर पर शामिल हो जाएगा। आपका कोई प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता है। वह बदले में या तो कुछ अच्छे संबंध, कुछ अच्छी सीख या कोई अच्छा विचार दे जाता है।
कर्म भी दो तरीके का होता है-एक पुण्य, दूसरा पाप। यही कारण है कि अपने कर्म के प्रति जागरूक होने की बात पर बल दिया जाता है। पाप हो या पुण्य जीवन की किसी न किसी परिस्थिति में उस कार्य का फल किसी न किसी रूप में आपके पास लौट कर आना तय है और तब शोक या प्रसन्नता के साथ उसे स्वीकार करना ही पड़ता है।