अर्थ:- देवों,मनुष्यों एवं उरगों के मुकुट मणियों की किरणों से सुशोभित चरणों वाली, श्रेष्ठ जिनेश्वरों के मुखकमल में निवास करने वाली,दुखरूपी साधन बन के विषयरूपी वृक्ष समूह के काटने वाले परशु (कुठार) स्वरूप वाली, वर एवं श्रेष्ठ आगम के निष्कर्ष के उत्स स्वरूप शरीर वाली हे सरस्वती तुम्हारी (जय हो)
सारनि: सारसुविचारपरभाषणे,भूमिवरसारगुणमणिभूषणे।
मारसूरेशकरशरवारिरोषणे, नारीजनाकरानीतधिषणे।।३।।
जयमंगलं……..
अर्थ:- सार तत्त्व एवं नि:सार पर भलीभाँति विचार कर व्याख्यान करने वाली, श्रेष्ठ सार गुणों एवं मणियों से विभूषित,भगवान् सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी कामदेव के बाणों की वर्षा को प्रभावहीन कर देने वाली,स्त्री रूप धारण करने वाली साक्षात् बुद्धि की देवी (सरस्वती तुम्हारी जय हो)
अर्थ:-कमलवत् चरणों वाली, पद्मपत्र के समान सुन्दर आँखों वाली, कमलनाभि वाली, सुन्दर शरीर वाली, कमल के समान सुंदर हाथों वाली, कमल के सौरभ के समान सुगंधित, उत्पुल्ल कमलदल के समान मुखमण्डल वाली, कमलपुर विहार करने वाली, सुरभित कमल पर आसीन होने वाली (सरस्वती तुम्हारी जय हो)।
अर्थ:-पावन चारित्र वाले भाव मुनियों की शरण में रहने वाली, अनुभव एवं विचारबुद्धि स्वरूप, भावोत्पन्न सुभामिनि के रूप जनित अहंकार को नष्ट करने वाली, अनेकानेक भावों से शुभ भावों को पैदा करने वाली (सरस्वती तुम्हारी जय हो)।
अर्थ:— मंगलों अंगो वाली, श्रेष्ठ मंगलों के लिए उत्तम आधारस्वरूप मंगल आकारवाली , मंगल आभूषण, वाली मंगल सुधा सूक्ति रस के प्रवाह से परिपूर्ण , मंगल चिदानंद की संगति करने वाली (सरस्वती तुम्हारी जय हो)।