मानवीय आहार क्या है और कैसा होना चाहिए ? इस पर प्रस्तुत शोध पत्र में विस्तृत वैज्ञानिक विवेचन किया गया है। समस्त शोध संदर्भ प्रामाणिक पत्र पत्रिकाओं से लिये गये हैं। अधिकांश वैज्ञानिक तथ्य लेखक द्वारा सर्वप्रथम संकलित कर समायोजित किये गये हैं हालाकि अनेक संदर्भों को लेखक द्वारा पूर्व शोधालेखों में भी प्रस्तुत किया जा चुका है परन्तु आहार विषय पर समग्रता से विभिन्न शोध बिन्दुओं को पहली बार मौलिकता के साथ प्रस्तुत कर सर्वांगीण विवेचना की गयी है। अहिंसा प्रेमी शकाहारियों के विरोधाभासों एवं बिखराव को चित्रित करते हुये लेखक का प्रयास है कि आलेख को पढ़ने के पश्चात् सुधी पाठक विचार कर सक्रिय हों।आहार जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। प्रत्येक जीव अपनी प्रकृति के अनुसार अपना आहार ग्रहण करता है। कुछ जीव (पेड़—पौधे) जहाँ हवा, पानी और प्रकाश से अपना भोजन बनाते हैं तो कुछ जीव (शेर,गिद्ध) दूसरे जानवरों के मांस पर निर्भर हैं वही बहुतेरे जीव सड़ी, गली मृत सामग्री से ही अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। मनुष्य जीवन की विकास यात्रा का सिरमौर प्राणी है। स्पष्टतया वह अब अपने आहार में सब कुछ ग्रहण कर रहा है परन्तु उसका मानवीय आहार क्या होना चाहिए ? और इसके सापेक्ष शाकाहार की क्या स्थिति है ? यह आज के विश्व की सर्वाधिक चितनीय, र्चिचत तथा अत्यावश्यक विषय वस्तु है। व्यक्ति क्या कुछ खा रहा है ? और क्या उसे खाना चाहिए यह उसका नितांत वैयक्तिक मामला है और हम किसी के भी ऊपर अपनी निजी विचारधारा नहीं थोप सकते परन्तु तथ्यों एवं तर्कों के द्वारा सत्य को समाने अवश्य रख सकते हैं।