अनूपपुर जिला मध्य प्रदेश के उत्तर पूर्व में शेहडाले सम्भाग के अन्तर्गत ८०० २८’ से ८२० १२’ उत्तरी अक्षांस एवं २२० २८’ से २४० २०’ पूर्वी देशान्तर के मध्य में स्थित है। प्राकृतिक सौन्दर्य, सधन वन खनिज सम्पदा तथा पुरावशेषों से यह क्षेत्र परिपूर्ण है। इस जिले के आदिवासी जन जीवन में लोक गीत, नृत्य, वेश भूषा तथा र्धािमक परम्परा का विशिष्ट आकर्षण है। ‘संस्कृति के विविध कालों से यहाँ अनेक राजवंशों का उद्भव तथा विकास के साथ—साथ शिल्पकला के प्रचुर अवशेष प्राप्त होते हैं। मेकल सुता, नर्मदा, पोहिता तथा सोन आदि नदियों के उद्भव होने के कारण यह पौराणिक काल से अत्यन्त पवित्र तीर्थ स्थल होने के साथ—साथ प्राचीन पथ पर स्थित स्थल रहा है। ऐतिहासिक काल में तत्कालीन राजवंशों के द्वारा इस जिले के स्थलों में विभिन्न सम्प्रदायों से संबंधित देवालयों का निर्माण करवाया गया। फलस्वरूप यहां विविध कला शैलियों में यथापत्य एवं र्मूितयों के अवशेष भी प्राप्त होते हैं। अनूपपुर जिले में लतार से लगभग १८वीं, १९वीं शती ईस्वी का जैन मंदिर है, जो एक परकोटे के मध्य बना हैं मंदिर का शिखर अलंकृत है, जिनमें आमलक, कलश एवं ऊपर धातु का त्रिशूल है। शिखर के चारों ओर विभिन्न नृत्य करते हुये मानव आकृति बनी है। अनूपपुर जिल के हर्री नामक स्थान से दो मूर्तिका तीर्थंकर एवं बरबसपुर से आदिनाथ, लांछन विहीन तीर्थंकर प्रतिमा एवं यक्षी अम्बिका की प्रतिमा प्राप्त हुई हैं। ये सभी प्रतिमाएं लगभग ११वीं शती ईस्वी की कलचुरिकालीन हैं—
आदिनाथ
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ है जिन्हें ऋषभनाथ भी कहते हैं यह प्रतिमा बरबसपुर से प्राप्त हुई है। तीर्थकर पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे हैं। तीर्थकर के सिर के पीछे अलंकृत प्रभा मण्डल, सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्णचाप, केश कंधे तक फैले हुये हैं। वक्ष पर श्रीवत्स चिन्ह का अंकन है। दोनों पाश्र्व में चँवरधारी खड़े हैं, जो काफी खण्डित अवस्था में हैं। एक हाथ में चँवर लिये दूसरा पैर की पंधा पर है, दोनों मुकुट, कुण्डल, कण्ठहर, केयूर, बलप, मेखला व नूपर पहने हुये हैं। वितान में मालाधारी विद्याधर युगल प्रतिमा, जो केश, कुण्डल, हार, केयूर बलप पहने हुये हैं। हाथों में माला लिये हुये हैं, ऊपर त्रिछत्र एवं दुन्दभिक, दोनों ओर अभिषेक करते गजराज का अंकन है। पादपीठ पर विपरीत दिशा में मुख किये सिंह मध्य में चव्रेश्वरी है, जो दोनों ऊपर के हाथों में चक्र लिये हैं। पादपीठ पर तीर्थकर आदिनाथ का ध्वज लांछन वृषभ (नन्दी) का अंकन है, दाये पाश्र्व में हाथ जोड़े परिचारक खड़े है। प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित होते हुये कलचुरि कालीन क्षेत्रीय कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
अरनाथ मल्लिनाथ
यह द्विमूर्तिका प्रतिमा हर्री से प्राप्त हुई है, इसमें अठारवें तीर्थंकर अरनाथ एवं उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ का अंकन है। दायें प्रथम अरनाथ पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे हैं सिर के पीछे सादा प्रभामण्डल, सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्णचाप, वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है। पादपीठ पर तीर्थकर अरनाथ का ध्वज लांछन, मत्स्य (मछली) का अंकन है। दूसरे तीर्थंकर मल्लिनाथ पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे हैं। तीर्थंकर के सिर के पीछे सादा प्रभामण्डल, सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्णचाप, वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है। पाठपीठ पर तीर्थंकर मल्लिनाथ का ध्वज लांछन कलश अंकित है। लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा ३० ३२ १२ सें.मी आकार की है।
तीर्थंकर
यह तीर्थंकर प्रतिमा बरबसपुर से प्राप्त हुई है। कार्योत्सर्ग मुद्रा में अंकित तीर्थ।कर का सिर एवं पैर नीचे से टूटे हुये है। वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन हैं पादपीठ पर दोनों ओर चवरधारी खड़े हैं, जिनका कमर से नीचे का भाग है। सिर पर करण्ड मुकुट, लम्बे कर्ण चाप हैं। प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित हैं
यक्षी अम्बिका
बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की यह प्रतिमा बरबसपुर से प्राप्त हुई है। यक्षी का कमर से नीचे का भाग है। जो पैरों में नूपर पहने हुये हैं। बांये पैर की जंघा पर लघु पुत्र प्रियंकर का बैठने का नीचे का भाग है, बाँयी ओर ज्येष्ठ पुत्र शुभंकर पैर भाग ही शेष है। नीचे वाहन सिंह बैठा है। इसके अलावा हाथ जोड़े चार परिचारक एवं परिचारिका बैठी है।। प्रतिमा लाल बलुआ पर निर्मित है। अनूपपुर जिला से प्राप्त उपरोक्त जैन प्रतिमाएं हाल में ही प्रकाश में आयी हैं, यहां से इन प्रतिमाओं की उपलब्धि इस जिले में जैन धर्म के प्रसार—प्रचार एवं विकास की अन्य क्षेत्रों से महत्वपूर्ण कड़ी जोड़ने में सहायक होगी। प्राप्त : १५-१०-२००९