बंधुओं! शाश्वत तीर्थंकर जन्मभूमि अयोध्या में आर्यिका दीक्षाएँ होने जा रही हैं, इस बात की खबर पूरे देश में बड़े त्वरित अंदाज में घर-घर तक पहुँची है। यह अवसर ही ऐसा है कि एक तरफ हमारे जैनधर्म की शाश्वत तीर्थभूमि अयोध्या का ऐतिहासिक पुनरुत्थान चल रहा है, पूरे देश की जैन समाज में गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से घर-घर और बच्चे-बच्चे तक अयोध्या में जैनधर्म की प्राचीनता को जगजाहिर किया जा रहा है और दूसरी तरफ ऐसे मौके पर अयोध्या के इस स्वर्णिम उत्कर्ष काल में एक और ऐसा इतिहास जुड़ रहा है, जो हमारी प्राचीन जैन संस्कृति को युग की आदि से लेकर आज तक जीवंत रखे हुए है, वह है – जैनधर्म का पवित्र दीक्षा संस्कार महोत्सव।
जी हाँ! जैन संस्कृति को इस धरती पर अनादिनिधन संस्कृति कहा गया है। इस अनादिनिधनता को यदि आज तक हम सब जान और समझ रहे हैं, तो इसके पीछे मुख्यरूप से ‘‘हमारे जिनमंदिर, तीर्थंकर प्रतिमाएँ, दिगम्बर जैन साधु-साध्वी और शास्त्र’’, ये चार ही मूल आधार हैं। इन्हीं के बल पर हम हमारी जैन संस्कृति को लगातार एक युग से दूसरे युग तक सतत प्रवाहित करते रहते हैं और अनेकों भव्य आत्माएँ इसके सहारे अपने मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करती हैं।
युग की आदि में भगवान ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ, लेकिन यदि इस युग की प्रथम मुनि दीक्षा कहीं हुई है, तो वह प्रयाग नगरी है, जहाँ केशलोंचपूर्वक भगवान ऋषभदेव ने मुनि दीक्षा धारण की थी। यह इस युग में जैनधर्म का एक ऐसा अवसर था कि तब से आज तक हम सभी २४ तीर्थंकरों की परम्परा देखते हुए सतत अनेकानेक बड़े-बड़े महान आचार्यों, मुनियों, आर्यिकाओं आदि की परम्परा को अपने सामने देखते आए हैं और आज भी देख रहे हैं। इसी के साथ इस युग की यदि पहली ‘‘आर्यिका दीक्षा’’ पर दृष्टिपात किया जाये, तो वह भी युग की आदि में सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव जी की पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी के द्वारा प्रयाग-इलाहाबाद में ही ली गयी थी। तभी से आज तक आर्यिकाओं की यह परम्परा हम सबके बीच जीवंत नजर आ रही है।
ऐसी युग की प्राचीन तीर्थभूमि पर दीक्षाओं के हजारों-लाखों उदाहरण बीत गए हैं और वही क्रम आज पुन: हमें अयोध्या में साक्षात् देखने का अवसर मिल रहा है। बंधुओं! वर्तमान में कहां तो इस अयोध्या नगरी को जैनधर्म के परिप्रेक्ष्य में हमने नजर अंदाज किया है और कहां दूसरी तरफ प्रथम बार इसी अयोध्या नगरी में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के पावन करकमलों से उनके महान उपकारस्वरूप हम सभी को जैनधर्म की ऐसी प्राचीन परम्परा का दीक्षा महोत्सव के रूप में दिग्दर्शन होने जा रहा है।
वे आत्माएं भी अत्यन्त भव्य एवं महान हैं, जिन्हें इस अवसर पर आर्यिका दीक्षा से सुसज्जित होने का स्वर्णिम सोपान प्राप्त हो रहा है। इन भव्य आत्माओं में श्रीमती शोभा पहाड़े-श्रीरामपुर (महा.), संघस्थ बाल ब्र. कु. इन्दु जैन (टिकैतनगर), संघस्थ बाल ब्र. कु. अलका जैन (टिकैतनगर), संघस्थ बाल ब्र. कु. श्रेया जैन (फिरोजाबाद), संघस्थ ब्र. मधुबाला जैन (सनावद), ब्र. राजबाला जैन (दिल्ली) एवं सौभाग्यवती रेखा जैन-दिल्ली हैं। इन्हें जैनधर्म की इस अनादिकालीन दीक्षा परम्परा में अपना नाम भी जोड़ने का अवसर मिल रहा है और इसी के साथ वे अपने मोक्षमार्ग के रथ पर सवार होकर आत्मकल्याण की ओर अग्रसर हो रही हैं।
बंधुओं! यह अवसर श्रावण कृ. एकम् (२२ जुलाई २०२४) के दिन आ रहा है, जिसे वीर शासन जयंती पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन इन्द्रभूति गौतम ने भी मुनि दीक्षा ग्रहण करके भगवान महावीर के समवसरण में गणधर का पद प्राप्त किया था और भगवान महावीर की दिव्यध्वनि भी इसी दिन सारे जग में प्रथम बार खिरी थी। ऐसे ऐतिहासिक दिवस पर दीक्षार्थियों को आत्मोन्नयन का यह मार्ग प्राप्त होना उनके अनंत पुण्य का प्रतिफल है। इस अवसर पर समस्त दीक्षार्थियोें के प्रति अनंत अनुमोदनापूर्वक कोटिश: प्रणाम है। हमें भी यही भावनाएँ भानी हैं कि आत्मकल्याण का यह अवसर शीघ्र-अतिशीघ्र अपने जीवन में भी इसी प्रकार अवतरित हो और संसार के इन दु:खमयी बंधनों से छुटकारा मिल सके। पाठकगण भी ऐसे मौके पर प्रत्यक्षदर्शी बनकर अपने जीवन में पवित्रताएँ प्राप्त करें, यही प्रेरणा है।