आकाशगामी ऋद्धिधारी, अवधिज्ञानी आदि मुनियों के लिये ही क्षेत्र शुद्धि होने से पिछली रात्रि में सिद्धान्त ग्रन्थों की वाचना मानी गई है। यही बात धवला पुस्तक ६ में भी पृष्ठ २५४ पर कही गई है। अतः आचारसार, मुलाचार, समाधिशतक, आप्तमीमांसा, स्वयंभूस्तोत्र आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय करें। कदाचित् प्रकाश की व्यवस्था न हो तो जो रत्नकरण्ड-श्रावकाचार, तत्त्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह आदि पाठ मौखिक यदि हों उन्हें ही पढ़ लेवें । अनन्तर स्वाध्याय की निष्ठापना करें। सूर्योदय से दो घड़ी (४८ मिनट) पूर्व तक पिछली रात्रि के स्वाध्याय का काल है।