-श्री ऋषभदेव-भरत-बाहुबलि स्वामी का अर्घ्य-
वारि गंध अक्षत कुसुमादिक उसमें बहु रत्नादि मिले ।
अर्घ्य चढ़ाकर तुम गुण गाऊँ सम्यग्यान प्रसून खिले ।।
श्री वृषभेश भरत बाहूबलि तीनों के पद कमल जजूँ ।
निज के तीन रतन को पाकर भव भव दुख से शीघ्र बचूँ ।।१।।