वनिता-सुप्रभा जीजी! आज हमें यह बताओ कि जम्बूद्वीप पूज्य है या नंदीश्वर द्वीप ?
सुप्रभा-वनिता ! द्वीप कोई भी न पूज्य है न अपूज्य किन्तु वहां पर होने वाले महापुरुष पांच परमेष्ठी आदि पूज्य होते हैं।
वनिता–तो जीजी! नंदीश्वर द्वीप में कितने परमेष्ठी होते हैं ?
सुप्रभा-वहां पर तो एक भी परमेष्ठी नहीं हैं। तुम्हीं बताओ वनिता! परमेष्ठी किसे कहते हैं ? और वे कितने होते हैं ? तुमने बालविकास चौथा भाग तो पढ़ा ही है।
वनिता-हाँ-हां, याद आ गया, जो परम पद में स्थित हैं वे परमेष्ठी कहलाते हैं, वे पांच होते हैं—अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु।
सुप्रभा-अच्छा,तुमने यह भी तो सुना है कि नंदीश्वर द्वीप में मनुष्य नहीं जा सकते हैं, देव—देवियां ही जाते हैं। सुप्रभा-तो वहाँ मनुष्य जन्म लेते हैं या नहीं ?
वनिता-जीजी! यह सब तो आप ही बता दीजिये, मुझे इतना ज्ञान अभी कहां है ? सुप्रभा-अच्छा सुनो,मैं यह सब बताती हूं, इस जम्बूद्वीप में धातकी खंड में आधे पुष्करद्वीप में ही मनुष्य जन्म लेते हैं। सारे तीन लोक में केवल इस ढाई द्वीप क्षेत्र में ही मनुष्यों का निवास है, अन्यत्र कहीं भी नहीं है। वनिता-तो जीजी! आठवें नन्दीश्वर द्वीप में एक भी परमेष्ठी नहीं हो सकते पुनः आष्टाह्निक पर्व में नन्दीश्वर द्वीप की पूजा क्यों करते हैं ?
सुप्रभा-आपका यह प्रश्न उचित है। सुनो, वहां पर बावन जिनमन्दिर हैं उन सब में १०८-१०८ प्रतिमायें हैं, उनकी पूजा करते है।
वनिता-जीजी! जब वहां मनुष्य नहीं हैं तब फिर जिनमंदिर और जिनप्रतिमायें देवों ने बनवाई होंगी ?
सुप्रभा-नहीं सरिता,वहां के वे जिनमंदिर और उनमें विराजमान जिनप्रतिमायें अकृत्रिम हैं अर्थात् अनादिकाल से स्वयं बनी हुई हैं और अनंत-अनंत काल तक वैसे की वैसी ही बनी रहेंगी, कभी भी नष्ट नहीं होंगी। इसे शास्त्र की भाषा में अनादिनिधन शब्द से कहा जाता है ।
वनिता-अच्छा, यह नंदीश्वर द्वीप की बहुत बड़ी विशेषता है। जीजी! अपने इस जंबूद्वीप में तो ऐसे अकृत्रिम एक भी मन्दिर नहीं हैं।
सुप्रभा-वनिता! तुम गणिनीप्रमुख आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के द्वारा लिखित जंबूद्वीप पुस्तक पढ़ो और हस्तिनापुर में जाकर एक बार जंबूद्वीप के दर्शन करो तो तुम्हें पता चलेगा कि जंबूद्वीप में वैसे अकृत्रिम जिनमन्दिर अठहत्तर हैं और सबमें ही १०८-१०८ जिनप्रतिमायें विराजमान हैं। हस्तिनापुर में तो १०८ प्रतिमाओं के स्थान पर मात्र १-१ प्रतिमाएं विराजमान हैं। जहां पर जम्बूद्वीप मूलरूप में बना है वहां १०८-१०८ प्रतिमाएं रहती हैं।
वनिता-सुप्रभा जीजी! चलो किसी दिन उस असली जम्बूद्वीप को देख तो आएं। नन्दीश्वर द्वीप में मनुष्य नहीं जा सकते लेकिन जम्बूद्वीप में तो जा ही सकते हैं?
सुप्रभा-हां,मनुष्य तो जम्बूद्वीप के हर कोने में जा सकते हैं किन्तु आज के हम तुम जैसे मनुष्यों में इतनी शक्ति नहीं है कि वहां जा सकें । वहां के सुमेरू पर्वत पर, विजयार्ध पर्वतों पर, विदेह आदि क्षेत्रों में विद्याधर मनुष्य और ऋद्धिधारी मुनि ही जा सकते हैं।
वनिता-हमने तो यही सुना है कि जम्बूद्वीप में पांचों परमेष्ठी होते हैं वे कहां पर हैं ?
सुप्रभा-हमारे इस भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में ही आज तीन परमेष्ठी विद्यमान हैं—आचार्य, उपाध्याय और साधु। जिनके दर्शन हम सभी को सुलभतया प्राप्त हो रहे हैं। इसी प्रकार से अरहंत परमेष्ठी भी यहीं से मोक्ष प्राप्त करके सिद्ध परमेष्ठी बनते थे किन्तु आज पंचमकाल में हमारे इस आर्यखण्ड से अरहंत, सिद्ध की साक्षात् परम्परा चालू नहीं है। विदेह क्षेत्रों में अभी भी सीमंधर,युगमंधर आदि विद्यमान बीस तीर्थंकर बिहार कर रहे हैं जो जम्बूद्वीप में ही हैं।
वनिता-तो जीजी! नंदीश्वर द्वीप से जीव मोक्ष तो जाते ही होंगे ?
सुप्रभा-अरे वाह वनिता! तुम भी खूब रहीं। जब मनुष्य की गमन सीमा ही ढाई द्वीप से आगे मानुषोत्तर पर्वत के बाद नहीं है और नन्दीश्वर द्वीप में जब मनुष्य जाते नहीं तो मोक्ष कौन प्राप्त करेगा ? वहां तो पांचों परमेष्ठी में कोई भी नहीं है। ये सभी जम्बूद्वीप में ही हैं।
वनिता-नंदीश्वर द्वीप के बावन जिनालयो की पूजा आष्टान्हिक पर्व में खूब ठाट—बाट से की जाती है। इसका मतलब वहां जिनधर्म और जिनवाणी तो हैं ही ?
सुप्रभा-पूजा तो देवगण वहाँ जाकर कर आते हैं । जिनधर्म का प्रवर्तन करने वाले मनुष्य वहाँ न होने से धर्म कहाँ रहा ? ‘ न धर्मो धार्मिकै र्बिना ’अर्थात् धर्मात्माओं के बिना धर्म कहाँ रह सकता है। जिनवाणी को भी लिखने—पढ़ने वाला ही कोई नहीं हैं। देव तो अपने दिव्य वचनों से ही भगवान् की स्तुति करते हैं।
वनिता—इसका मतलब तो यह रहा कि नंदीश्वर द्वीप में नव देवताओं में से कोई भी देवता नहीं हैं ?
सुप्रभा-बावन जिनालय के प्रतीक में जिनचैत्य और चैत्यालय ये दो देवता तो हैं ही, बाकी तुम्हीं देख लो कि जब वहां मनुष्य ही नहीं हैं तो पांचों परमेष्ठी और जिनधर्म, जिनागम ये सात देवता होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
वनिता-सुप्रभा जीजी तुम्हारे कथन से तो यही प्रतिभासित होता है कि नन्दीश्वर द्वीप में कोई महत्व नहीं है, किन्तु जम्बूद्वीप में ही सारी विशेषताएं हैं।
सुप्रभा-इसमें बुरा मानने की क्या बात है ? जो—जो चीजें करणानुयोग के ग्रन्थों में नंदीश्वर द्वीप के बारे में बताई गई हैं सो मैंने तुम्हें बताया है। इसके अतिरिक्त जम्बूद्वीप की रचना भी मैंने आचार्य उमास्वामी कृत तत्वार्थसूत्र की तृतीय अध्याय के अनुसार ही बताया है। रही पूज्यता की बात, तो जहाँ भगवान् की प्रतिमा हैं वह द्वीप पूज्य तो होगा ही। इस प्रकार से जम्बूद्वीप और नन्दीश्वर द्वीप दोनों ही पूज्य हैं क्योंकि पूज्यता द्वीप की नहीं वरन् द्वीप में स्थित पंचपरमेष्ठी एवं जिनप्रतिमाओं की है।
वनिता-अच्छा जी! यह तो मैंने समझ लिया कि नन्दीश्वर द्वीप में न तो मनुष्य जन्म लेते हैं और न वहाँ दर्शन करने जा सकते हैं इसलिए वहाँ से मोक्ष प्राप्ति भी संभव नहीं है। अब यह बताओ कि जम्बूद्वीप में और क्या विशेषताएँ हैं ?
सुप्रभा-सुनो वनिता ! सबसे पहले तो यह ज्ञात कर लेना आवश्यक होगा कि इस मध्यलोक में असंख्यात द्वीप—समुद्र हैं जिनमें सबसे पहला द्वीप जम्बूद्वीप है जो थाली के समान गोलाकार है। इस जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में १ लाख योजन (४० करोड़ मील) ऊँचा सुमेरू पर्वत है उसमें १६ चैत्यालय हैं और हाँ ! इस द्वीप की पूज्यता सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि यहाँ इस सुमेरूपर्वत के ऊपर अनंत तीर्थंकर का जन्माभिषेक होता है।
तुम भी पंचमेरू की पूजा में पढ़ती होगी ‘‘तीर्थंकरों के न्हवन जल तें भये तीरथ शर्मदा। इस प्रकार पहले मैं जम्बूद्वीप के ७८ अकृत्रिम जिनमंदिर की गणना बताऊंगी सो तुम ध्यान रखना। सुमेरू पर्वत के १६,गजदंतों के ४,जम्बू शाल्मलि वृक्षों के २,वक्षार पर्वतों के १६,विजयार्ध पर्वतों के ३४,हिमवान आदि ६ पर्वतों के ६, इस प्रकार १६ +४+२+१६+३४+६=७८। तुम हस्तिनापुर जाकर देखना वहाँ सब कुछ प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। ये ७८ चैत्यालय सफेद संगमरमर पत्थर से बने हुए साक्षात् सिद्ध प्रतिमाओं से युक्त हैं।
जम्बूद्वीप के दक्षिण भाग में भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में जहां हम तुम सभी निवास करते हैं वहां षट्काल का परिवर्तन होता रहता है और आर्यखण्ड में चतुर्थकाल आने पर मोक्ष परम्परा चालू हो जाती है अतः यहां का तो कण-कण पूज्य है, जहां न जाने कितने महापुरुषों ने जन्म लिया और मोक्ष प्राप्त किया है। यहां तो धर्म की परम्परा चलती रहती है। पंचपरमेष्ठी,नवदेवता सभी यहाँ विद्यमान रहते हैं इसलिए इस द्वीप की जितनी पूजा,अर्चना की जावे वह पापों का क्षय करेगी।
वनिता- जीजी! ये तो आपने जम्बूद्वीप के अकृत्रिम मंदिरों की बात बताई, यहां तो कितने सारे कृत्रिम जिनमन्दिर भी हैं, वे भी तो पूज्य हैं।
सुप्रभा- हाँ ! अकृत्रिम और कृत्रिम समस्त जिनप्रतिमाएं पूज्य हैं, उन सबको हमारा नमस्कार होवे। वनिता! धवला ग्रंथ में आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने कहा है कि इन प्रतिमाओं के दर्शन से जन्म—जन्म के निधत्त और निकाचित कर्म भी नष्ट हो जाते हैं।