पालवंश के शासकों के लिये प्रसिद्ध है। दसवीं सदी के लगभग इस सम्पूर्ण क्षेत्र में पाल वंश के शासकों का प्रभुत्व था। इस काल के पुरावशेषों से ऐसा भान होता है कि इस क्षेत्र में जैन धर्म अपनी पूर्ण पल्लवित अवस्था में था। यहाँ के शासक व प्रजाजन दोनों जैन मत के अनुयायी रहे होंगे । पिछले वर्षों से यहाँ पर बहुत बड़ी मात्रा में टीलों में दबी हुई जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां प्राप्त होती रहीं हैं । यहां से प्राप्त अधिकांश मूर्तियाँ खण्डित अवस्था में है, किन्तु इनका वैभव अद्वितीय है। इन सभी मूर्तियों का स्थापत्य दसवीं सदी के लगभग का प्रतीत होता है । तीर्थंकरों की प्रतिमाऐं बलूऐ पत्थर से निर्मित है व खड़गासन एवं पद्मासन दोनों मुद्राओं में है। कुछ दशक पूर्व अम्बाह जिला भिण्ड निवासी श्री गुमानीलाल जैन ब्रह्मचारी को स्वप्न में दिखाई दिया कि सिंहोनियां के आस—पास आसन नदी के बीहड़ों के टीलों में जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ दबी हुई हैं । अथक खोज के उपरान्त वर्तमान सिहोनिया ग्राम से थोड़ी दूर पर भगवान शान्तिनाथ (१६ फीट, खड़गासन) भगवान अरहनाथ एवं भगवान कुंथुनाथ (१०—१० फीट, खड़गासन) की पीतवर्णी प्रतिमायें दृष्टिगोचर हुई जिन्हें उसी स्थान पर स्थापित कर दिया गया । प्रभु का चमत्कार ऐसा हुआ कि मूर्तियों के स्थापित होते ही यह क्षेत्र अतिशय क्षेत्र बन गया। व दूर—दूर से भक्तगण अपनी मनोकामनायें लेकर प्रभु दर्शन हेतु आने लगे व उनकी सम्पूर्ण कामनाऐं पूर्ण होने लगी। यह स्थल मुरैना जिला मुख्यालय से ३० कि.मी. भिण्ड रोड़ पर है व प्रसिद्ध ककनमठ मन्दिर से २ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र का व्यापक सर्वेक्षण करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यहीं कहीं किसी टीले में उस काल का विशाल मन्दिर भी दबा हुआ हो सकता है, आक्रान्ताओं के भय से भक्तगणों ने उन मूर्तियों को भंजन से तो सुरक्षित कर लिया था, किन्तु देवालय को काल के हाथों से सुरक्षित नहीं कर सके होंगे। इस सम्पूर्ण क्षेत्र के गहन सर्वेक्षण की महती आवश्यकता है, जिससे इस अंचल में जैन धर्म व संस्कृति के उद्भव एवं वैभव के बारे में सही—सही मूल्यांकन संभव हो सके।