श्रावकाचारों में भक्ष्य— अभक्ष्य के बारे में अत्यन्त विस्तार से चर्चा की गई है। भक्ष्य पदार्थों की उपयोग पद्धति एवं उपयोग अवधि (मर्यादा) निधारित है। प्रस्तुत टिप्पणी में मैंने मर्यादा एवं भक्ष्यता के सन्दर्भ में कतिपय प्रश्नों को उठाया है, विज्ञ पाठकों की प्रतिक्रियायें एवं उनके वैज्ञानिक तर्कसंगत सुझाव सादर आमंत्रित हैं।
खाद्य सामग्री परीक्षण— खाद्य सामग्री के परिक्षण हेतु वर्तमान में निम्न पद्धतियाँ प्रमुखता से प्रयोग में लाई जाती हैं—
१. रेफ्रीजरेशन (Refrigeration)
२. फ्रीजिंग (Freezing)
३.ड्राइंग (Drying)
४.केनिंग (Canning )
५. फर्मेन्टेशन व पिकलिंग (Fermentation & Pickling )
६. सुगर कन्सन्ट्रेशन ( Sugar Concentration)
७. केमिकल एडिटिव्स (Chemical Additives)
८. आयोनाइजिंग रेडिएशन (lonizing Radiation) उक्त विद्यियों में से केवल फर्मेन्टेशन व पिकलिंग (Controlled Growth Micro-Organanism) को छोड़कर शेष सभी विधियों में माइक्रोआग्र्रेनिज्म की संख्या को कम किया जाता है एवं उनकी वृद्धिदर को भी नियंत्रित किया जाता है , फलत: खाद्य सामग्री को कई दिनों तक भक्ष्य बनाये रखा जाता है।
किन्तु जहाँ तक मुझे ज्ञात है कि जैन शास्त्रों में उक्त विधियों में किसी का भी वर्णन नहीं है। जल का प्रत्येक खाद्य पदार्थ में अत्यधिक महत्व है। खाद्य पदार्थ में जल की मात्रा कम या ज्यादा होने से माइक्रोआर्गेनिज्म की संख्या का घटना या बढ़ना तथा खाद्य सामग्री का उससे प्रभावित होना निर्भर करता है। ऊपर र्विणत सभी विधियाँ खाद्य सामग्री का जीवन बढ़ाती है अर्थात् उसमें माइक्रोआग्र्रेनिज्म की संख्या नियंत्रित कर उसे खाने योग्य बनाये रखती हैं किन्तु जैन शास्त्रों में केवल गर्म करके परिरक्षण का विधान है। पानी या दूध गर्म करके उसकी मर्यादा बढ़ाई जाती है (अपवाद स्वरूप लौंग आदि को जल में डालकर मर्यादा बढ़ाने का उल्लेख मिलता है)। अब प्रश्न उठता है कि क्या उक्त वर्णित परिरक्षण की विधियों का उपयोग कर खाद्य पदार्थों मर्यादा में वृद्धि नहीं की जा सकती ?
तापमान— खाद्य सामग्री के परिरक्षण में तापमान की महती भूमिका है। हम यहाँ कतिपय विशिष्ट स्थितियों के तापमान अंंकित कर रहे हैं। पानी उबलने का तापमान २१२.००इ. गाय के शरीर का तापमान १०१.००इ. मानव शरीर का तापमान ९८.६०इ. पानी जमने का तापमान ३२.००इ. रेफ्रिजेरतेर् का तापमान ३०.००—३४.००इ. सामान्य कमरे का तापमान ६०.००—१००.००इ. प्रयोजनदेखने का तापमान ००—(-)१०.००इ. खाद्य सामग्री का प्रोविजिंग तापमान (-)२०.००—(-)३०.००इ अब हम विभिन्न तापक्रमों पर बैक्टीरिया की वृद्धिदर अंकित कर रहे हैं— ८०.००इ. -बैक्टीरिया में ३००० गुना वृद्धि १२—२४ घंटे में ७०.००इ. -बैक्टीरिया में ७०० गुना वृद्धि १२—२४ घंटे में ६०.००इ. -बैक्टीरिका में १५ गुना वृद्धि १२—२४ घंटे में ५०.००इ. -बैक्टीरिया में ५ गुना वृद्धि १२—२४ घंटे में ४०.००इ. -बैक्टीरिया में २ गुना वृद्धि १२—२४ घंटे में इस प्रकार हम देखते हैं कि ८०.००इ.से ४०.००इ.तक तापमान घटाने पर बैक्टीरिया की १२—२४ घंटों में वृद्धि ३००० गुना से घटकर २ गुना ही रह जाती है एवं इससे नीचे के तापमान के निरन्तर बनाये रखने पर बैक्टीरिया की वृद्धि को लगभग शून्य बनाया जा सकता है ।
दूध—तापमान— माइक्रोआर्गेनिज्म (प्रति मि.ली.)— समाज में एक अत्यन्त वैज्ञानिक परम्परा दूध के बारे में प्रचलित है । साफ बर्तन में थन धुलवाकर दूध निकलवाना एवं निकालने के बाद ४८ मिनट में उसे गर्म करना।
यह परम्परा अत्यन्त वैज्ञानिक है— तापमान थन एवं बर्तन की स्थिति दूध रखने का समय० घंटे २४ घंटे ४८ घंटे ४०.००इ. गंदे थन+गंदा बर्तन १३६५३३ २८१६४८ ५३८७७५ साफ थन +साफ बर्तन ४२९५ ४१३८ ४५६६ ६०.००इ. गंदे थन+गंदा बर्तन १,३६,५३३ २,४६,७३,५७१ ६३,९८,८४,६१५ साफ थन+साफ बर्तन ४,२९५ १५,८७,३८८ ३,३०,११,१११ स्पष्टत: यदि हम थन धोकर शुद्ध बर्तन में दूध निकालने की पद्धति का अधिकाधिक प्रयोग करें तो दूध की मर्यादा बढ़ाई जा सकती है।
मन्मथ पाटनी प्रोडक्शन मेनेजर , प्रेस्टिज फूड्स, ३०,