अभिनन्दनीय १०५ गणिनी आर्यिका परमपूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के आदर्श जीवन से चयनित बिंदु-
१. आपका शरीर भले ही शिथिल और वृद्ध हो चला हो परन्तु वाणी का ओज, चेहरे का तेज और ज्ञान की उत्कर्ष लालिमा गुलाब के फूल की तरह ताजे दिखाई पड़ते हैं।
२. आपने अपनी विवेकशीलता और श्रद्धा के सहारे ही आगम परंपरा और गुरु परंपरा की रक्षा में अपूर्व सफलता अर्जित की है।
३. आपकी चर्या में सादगी, चरित्र में सच्चाई और श्रद्धा में आगमिक दृष्टिकोण पग-पग पर झलकते हैं।
४. आपके अपूर्व साहसी त्याग, धर्म वात्सल्य और सहृदयता ने लाखों लोगों का विश्वास जागृत किया।
५. धर्म के लिए जिंदगी भर संघर्ष करने वालीं, अपने परिवार भर को धर्म में खपाने वालीं, धन को सदा तुच्छ समझने वालीं किन्तु स्वस्थ, शालीन और निर्मल ज्ञान-दर्शन-चारित्र वाली आर्यिका आपसे बढ़कर दूसरी नहीं है।
६. आपकी जिंदगी एक मशाल की तरह है जिससे सारी समाज को रोशनी मिल रही है।
७. लोग कहते हैं माताजी ने क्या किया और क्या नहीं किया? मैं उनसे कहता हूँ, माताजी ने आगम, तीर्थ और संस्कारों का सृजन तो किया है। किन्तु विध्वंस नहीं किया।
८. मैं माताजी की विद्वत्ता उनकी आदर्शवादिता और माँ जिनवाणी की आजीवन सेवा में प्राचीन आचार्यों जैसी अचल निष्ठा के आगे नतशीष हूँ।