यह अटल सत्य है कि अंत में ‘विजय सच्चाई की ही होती है’। भ्रांतियों के बादल कितने भी घने क्यों न हो, सत्य का सूर्य चमकते हुए अपनी आभा से सम्पूर्ण अंधकार को नष्ट कर देता है। इसके एक नहीं अनेकों उदाहरण हमें शास्त्र-पुराणों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दिखायी पड़ते हैं, जिसका जीता जागता उदाहरण ‘भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा-बिहार)’ में मात्र डेढ़ वर्ष में हुए नवनिर्माण एवं कुण्डलपुर महोत्सव आदि कार्यक्रमों की निर्विघ्न सफलता है, जिसने इस सर्वकालिक सिद्धान्त को और भी दृढ़ता से स्थापित कर दिया है। आज समस्त बिहार प्रदेश में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत में यह चर्चा है कि इतना सुव्यवस्थित कार्य, इतने भव्य एवं अनुकरणीय तीर्थ का निर्माण इतने अल्प समय में ‘‘न भूतो न भविष्यति’’ जैसा है। प्राचीन काल से मान्य भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर के विकास का संकल्प पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के मन में ‘भगवान महावीर २६००वाँ जन्मकल्याणक महोत्सव वर्ष’ में विशेष रूप से प्रभावी हो उठा, शायद पूज्य माताजी को ये कदापि स्वीकार नहीं था कि भगवान महावीर के जन्म महोत्सव को पूरे वर्ष मनाया जाये और तीर्थंकर महावीर की अपनी परम पावन जन्मभूमि को उपेक्षित छोड़ दिया जाये और इसीलिए उन्होंने जन्मभूमि कुण्डलपुर को उसका वैभव लौटाने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली, उनकी यह प्रतिज्ञा आज साकार रूप में जन-जन के लिए श्रद्धा का केन्द्र बनी हुई है क्योंकि दृढ़संकल्प की धनी पूज्य माताजी के लिए कोई भी कार्य कठिन नहीं है। सच्चे मन से भायी जाने वाली भावना फलीभूत होती ही है। फिर जब वह तीर्थंकर भगवन्तों की जन्मभूमियों का उद्धार करने की भावना हो, तो उसे साकार होना ही था। मेरा तो सभी से ये कहना है कि जो लोग इस विषय में अनर्गल प्रलाप करते हैं, वह एक बार स्वयं आकर इस तीर्थ के दर्शन कर लें, तो जिस प्रकार समवसरण में मानस्तंभ को देखकर मिथ्यात्वियों का मान गलन हो जाता है, उसी प्रकार भगवान महावीर की अतिशयकारी प्रतिमा के दर्शन कर उनकी सभी शंकाओं का समाधान हो जायेगा और वह भी सही दिशा प्राप्त कर अपने जीवन का उद्धार कर सकेगे। यह तीर्थ सदैव सत्य, अहिंसा एवं भगवान महावीर की वाणी का संदेश जन-जन में फैलाता रहे, यही शुभेच्छा है।