क्यों जैन अनुयायी जैनेतर एवं विदेशी विद्वानों के कथनों का अनुसरण बिना अपना दिमाग लगाये करने लगे? जो जैनेतर व विदेशी जैन धर्म के मर्म को नहीं जानते, जैन शास्त्रों के बारे में जो पूर्णत: अनभिज्ञ हैं वे बताते हैं कि हमारे तीर्थंकरों की जन्मभूमि यहाँ नहीं वहाँ हैं और हमारे जैन नेतागण जो विद्वान् कम लेकिन राजनीतिज्ञ व धनाढ्य अधिक हैं, तुरंत सदियों पुरानी आस्था और विश्वास को खंडित करते हुए नई खोज के नाम पर उसे मानने और प्रचारित करने का कुप्रयास करते हैं। २५५० वर्षों तक जिसे भगवान महावीर का जन्मस्थान माना जाता रहा उसे मात्र ५० वर्ष पूर्व भारत के सर्वोच्च स्थान पर बैठे नेता कुछ जैनेतर व विदेशी विद्वानों की खोज के बहाने बदलने को तैयार हो गये। अब भी उसे मान्य कराने तथा केन्द्र व राज्य सरकार की मुहर लगवा कर जन साधारण को भ्रमित करने का कुप्रयास जारी है। आज एक तरफ सभी प्रकार के तर्क-कुतर्कों के साथ वैशाली को सिंधु देश की बजाय बिहार में बताकर उसे महिमा मंडित करने का प्रयास चल रहा है तो दूसरी तरफ महावीर का जन्मस्थान वैशाली बताकर कुण्डलपुर को नकारने की नाकाम कोशिश की जा रही है। प्रश्न कुण्डलपुर को नकारने का ही नहीं है यहाँ तो महावीर को वैशाली के ग्राम, मुहल्ले के एक भाग में जन्मा बताकर उनके पिता, दादा या पूरी वंश परम्परा को एक सामान्य क्षत्रिय परिवार बताने का प्रयास हो रहा है। महावीर को वैशाली के एक मोहल्ले में जन्मे बताने या स्वीकारने पर क्या उनके तीर्थंकरत्व, सर्वज्ञता और अर्हंतता पर प्रश्न नहीं खड़े होंगे? क्योंकि अगर महाराज सिद्धार्थ वैशाली के किसी मोहल्ले या उपनगर के निवासी थे तो वह एक स्वतंत्र और सार्वभौम शासक तो हो ही नहीं सकते। जैनागम में तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म आदि सभी क्रियाओं को किसी सामान्य घटना में नहीं, काल की विशेष घटनाओं के रूप में दर्शाया गया है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। कुण्डलपुर को नकारने का ही एक प्रयास है-भगवान महावीर स्मारक समिति पटना से प्रकाशित ‘‘भगवान महावीर स्मृति तीर्थ स्मारिका-वैशाली’’ इस स्मारिका के लेखक हिन्दी साहित्य, पुरातत्व आदि विद्याओं के विद्वान् तो हैं किन्तु वह दिगम्बर जैनागम, उनकी मान्यताओं आदि के मर्मज्ञ विद्वान भी हैं, ऐसा आभास उनके आलेखों से नहीं मिलता। हालांकि उन्होंने दिगम्बर जैन आचार्यों के कथनों का अवलम्बन अपने आलेखों में लिया है किन्तु दिगम्बर जैन आचार्यों ने कहीं वैशाली को महावीर की जन्मस्थली नहीं बताया। ग्रंथराज षट्खंडागम, तिलोयपण्णत्ती, वर्धमानचरित, उत्तरपुराण आदि सभी ग्रंथों में भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ को विदेह देश की राजधानी कुण्डलपुर तथा उनके नाना चेटक को सिंधु देश की राजधानी वैशाली का अधिपति बताया गया है। नई खोज का मूल बिंदु यही होना चाहिए था। ये जैनेतर व विदेशी विद्वान् डॉक्टर, प्रोपेसर, इतिहासज्ञ, भूगोलज्ञ और पुरातत्ववेत्ता ही हमारे जैन शासन के प्राचीन मनीषी आचार्यों को चुनौती देकर नये-नये मत स्थापित कर रहे हैं। डॉ. रंजन सूरि देव द्वारा लिखित आलेख में महावीर की माता त्रिशला को लिच्छविराज चेटक की बहन लिखा है। इसी प्रकार आचार्यश्री विजयेन्द्र सूरि ने भी माता त्रिशला को राजा चेटक की बहिन व भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ को वैशाली के कोल्लाग नामक मोहल्ले में बसने वाली नाथ जाति के क्षत्रियों का सरदार माना है। बहुचर्चित विद्वान् डॉ. योगेन्द्र मिश्र ने हर्मन जैकोबी, हार्नले और विसेंट स्मिथ आदि विदेशी विद्वानों के मत को पुष्ट करने में अपने द्वारा लिखित ‘एन अर्ली हिस्ट्री आफ वैशाली’ को ही आधार बनाते हुए कुण्डलपुर नाम को तोड़-मरोड़ कर वैशाली के कुण्डग्राम को महावीर का जन्मस्थान बताया है। जबकि स्वयं जैकोबी कुण्डलपुर (नालंदा) को १९११ के अपने पत्र में महावीर जन्मभूमि स्वीकार करते हैं। इन कथनों में उन्होंने श्वेताम्बर व बौद्ध ग्रंथों का सहारा लिया है। इस प्रकार भ्रम की स्थितियाँ निर्मित कर दिगम्बर समुदाय को दो धड़ों में विभक्त करने का कार्य किया है। मेरी मान्यता है कि यदि ये सभी प्राचीन आचार्यों की वाणी श्रद्धापूर्वक पढ़ते तो प्राचीन काल से चली आ रही भक्तों की श्रद्धा की कभी अवहेलना नहीं कर पाते और भगवान महावीर की असली जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) विहार को ही मानते जो कि उनके जन्म के बाद से ही सम्पूर्ण समाज की श्रद्धा का केन्द्र रही है और सदैव श्रद्धा का केन्द्र रहेगी। यह एक अकाट्य सत्य है कि कुण्डलपुर एक सार्वभौम शक्ति सम्पन्न राज्य की राजधानी थी। वह किसी नगर का मोहल्ला या उपनगर नहीं थी। बिहार सरकार के गजेटियर में कुण्डलपुर-नालंदा को भगवान महावीर की जन्मस्थली के रूप में मान्यता प्राप्त रही है। साथ ही जनमानस की श्रद्धा भी वहाँ सदियों से नत होती रही है, उसे कुछ लोगों द्वारा बदला जा नहीं जा सकता और न बदला जाना चाहिए। व्यक्तियों के व्यक्तिगत स्वार्थवश या मान-सम्मान का प्रश्न बनाकर श्रद्धाओं और मान्यताओं से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए तथा सभी की श्रद्धा के केन्द्र कुण्डलपुर (नालंदा) को ही भगवान महावीर की जन्मस्थली स्वीकार करना चाहिए।