क्या अण्डें को अहिंसक या शाकाहार शाकाहारी कह सकते हैं ?
दिनांक २६-५-८३ का गुजराती अखबार संदेश पढ़ रहा था, अचानक मेरी नजर एक विज्ञापन की ओर गई और मेरा अंत:करण अत्यंत उद्विग्न हो गया। वह विज्ञापन था— शाकाहारी (?)
अंडों का उस विज्ञापन के अन्तर्गत अंडों की भरपेट प्रशंसा की गई थी और अंत में उन्हें निर्जीव और शाकाहारी बताया गया था। इसके विज्ञापन दाता है— गुजरात राज्य पोल्टी फार्म्स सहकारी फेडरेशन लिमिटेड।
विज्ञापन पढ़ते ही मैं भौचक्का रह गया। अहो! इस महान् संस्कृति के ध्वंस के लिए यह कैसा षड्यंत्र ? अंडा और शाकाहारी । अंडा और निर्जीव। क्या यह संभव है ?
अंडों की उत्पादन वृद्धि के लिए बेचारी मुर्गी पर कितने जुल्म किये जाते हैं ? और उस मुर्गी को कितनी मांसाहार”मांसाहारी खुराक दी जाती है? क्या इस बात से विज्ञापनदाता अनभिज्ञ हैं? गुजरात के इस फेडरेशन के अधीन लगभग ३६ सरकारी मंडलियां हैं, जो अनेक स्थलों पर मुर्गी पालन केन्द्र खोल रखे हैं । गुजरात में प्रतिदिन बारह लाख अंडों का उत्पादन होता है और एक मात्र अहमदाबाद में प्रति सप्ताह सवा लाख अंडों की बिक्री होती है।
मुर्गियों पर अत्याचार
१.इन मुर्गीपालन केन्द्रों में (इन्हें मुर्गी पालन केन्द्र कहें या मुर्गी कत्ल केन्द्र ? एक सांकड़ें पिंजरें में हजारों मुर्गियां रखी जाती है १५’’ से १०’’ अर्थात दो स्क्वायर फीट की छोटी सी जगह में चार मुर्गियां रखी जाती हैं । इस प्रकार स्थान संकोच के कारण उनकी स्वतंत्रता लुप्त हो जाती है।
२. प्राकृतिक प्रकाश से ये मुर्गियां वंचित ही रहती हैं ?
३. स्थान संकोच के कारण वे परस्पर लड़ती ही रहती हैं ।
४.छह मास की उम्र में मुर्गी अंडे देना प्रारम्भ कर देती है। प्रथम वर्ष में वह लगभग ३०० अंडे देती है और इस प्रकार सतत गर्भवती रहने के कारण उसकी एडरीनल ग्रंथि चौड़ी हो जाती है और वह अत्यंत कतजोर बन जाती है।
५. मुर्गियां परस्पर न लड़ें, इसके लिए मशीन द्वारा उनकी चोंचें काट दी जाती हैं और उनके पंख भी काट दिए जाते हैं।
६.प्रोपेटीबल पोल्ट्री इन इंडिया पुस्तक के अंतर्गत ए.सी. रोजेर्स ने लिखा है कि जब तक मुर्गियों को प्राणीजन्य प्रोटीन नहीं देते हैं, जब तक वह अंडे नहीं देती हैं इस नियमानुसार सभी मुर्गी पालन केन्द्रों में मछलियों का चूरा, मांस आदि दिया जाता है। माँसाहारी का भोजन कर अंडा देने वाली मुर्गी का अंडा क्या शाकाहारी कहला सकता है?
अंडे के अधिक उत्पादन के लिए मुर्गी को सतत कृत्रिम प्रकाश दिया जाता है। इस तीव्र प्रकाश के फलस्वरूप मुर्गी की पीचुटरी ग्रंथि उत्तेजित बनती है और एक विशेष हार्मोन का स्राव करती है, जिसका असर अण्डाशय पर होने से हजारों स्त्री—बीज में से एक बीज अलग होता है और विविध प्रक्रियाओं में से प्रसारित होकर अंडे के रूप में बाहर आता है। इस प्रकार क्या मुर्गी के गर्भाशय में तैयार हुए अंडे को शाकाहारी कह सकते हैं?
७.गुजरात में दो प्रकार के मुर्गीपालन केन्द्र हैं।
(१) जहां मुर्गे व मुर्गी पालन केन्द्र हैं।
(२) जहां एकमात्र मुर्गियां ही रखी जाती हैं। प्रथम प्रकार के केन्द्र में, अंडों में से जो मुर्गियां पैदा होती हैं, वे दूसरे केन्द्रों में भेज दी जाती हैं, जिनसे अंडों का उत्पादन बढ़ाते हैं और यदि उन अंडा में से मुर्गा पैदा हो जाए तब तो आवश्यक मुर्गों को रखकर शेष सभी मुर्गों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। इस प्रकार भयंकर हिंसा से युक्त इन अंडों को शाकाहारी अथवा निर्जीव कहना कितनी शर्मनाक बात हैं।
अंडे का भक्षण मांसाहार है। अंडा तामसी पदार्थ है । मुर्गी एक पंचेन्द्रीय जीव है। वह अपनी संतति वृद्धि के लिए अंडा देती है और उस अंडे में से १५—२० दिन के बाद एक बच्चा निकलता है। इस प्रकार अंडा भी पंचेन्द्रिय प्राणी की ही पूर्वावस्था होने से वह भी पंचेन्द्रिय प्राणी की ही पूर्वावस्था होने से वह भी पंचेन्द्रिय प्राणी कहलाता है।
इस प्रकार अंडे का भक्षण स्पष्टतया मांसाहारी है। मांसाहार से बचने के लिए अंडे का त्याग अनिवार्य है। अंडे के तीव्रतम प्रचार के लिए इस प्रकार के झूठे विज्ञापन दिये जाते हैं कि अंडे में प्रोटिन, विटामिन और चर्बी इत्यादि हैं। परन्तु इस प्रकार के भ्रामक प्रचारों से हमें सावधान रहना होगा। अंडा स्पष्ट रूप से तामसी पदार्थ है।
आरोग्य की दृष्टि से श्रीमद्भागवद्गीता में आहार की तीन विभाग किए गए हैं— (१) सात्विक आहार, (२) राजसी आहार और (३) तामसी आहार।
सात्विक आहार
जिस भोजन में त्रस प्राणियों की हिंसा न हो और जिससे विचारों की शुद्धि और पवित्रता बनी रहती है, वह सात्विक आहार कहलाता है। आहार का मन पर अत्यधिक असर होता है। कहावत भी है— जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन । दूध, दही आदि तथा सभी अनाज सात्विक आहार कहलाता हैं।
राजसी आहार
जो आहार कामोत्तेजक तथा प्रमाद पैदा करता है, उसे राजसी भोजन कहते हैं । अत्यंत खट्टे , बहुत गर्म, अति ठंडे, अति तीखे तथा दाहकारक पदार्थों का समावेश राजसी आहार में होता है। राजसी भोजन करने से कामवासना उदीप्त होती है। व्यक्ति अनेक रोगों से ग्रस्त बनता है।
तामसी आहार
जिस भोजन में अनेक जीवों की हिंसा होती है, उसे तामसी आहार करते हैं। मांसाहार , अंडा, शराब, अनन्तकाय, बासी एवं सड़ा गला भोजन आदि तामसी आहार हैं। तामसी आहर के भक्षण से मनुष्य की मनोवृत्ति अत्यंत हिंसक, क्रूर और निर्दयी बन जाती है। जो अपनी जीभ के रसास्वादन के लिए निरपराध जीवों की हिंसा करता है, उसके हृदय में दया भाव कैसे टिक सकता है ?
हिंसा से प्राप्त भोजन से जिसका हृदय कठोर और निर्दय बन चुका है ? अंडे का भोजन भी तामसी आहार होने से, उसके भक्षण से हृदय बनता है। तामसी भोजन से तामसी प्रकृति बनती है। अर्थात् तमोगुण की वृद्धि होती है। तमोगुण से व्यक्ति के विचार, अधम , नीच होते हैं, जीवन में भौतिकता और नास्तिक”नास्तिकता बढ़ती है।
तामसी प्रकृति से मनुष्य अंतरंग शत्रुओं का गुलाम बनता है। काम—क्रोध आदि का गुलाम व्यक्ति, समाज के लिए भी अनर्थकारी होता है।