सारांश
राजस्थान एवं गुजरात राज्यों के कई दिगम्बर जैन मंदिरों में विराजित प्रतिमाओं एवं दीवार में लगे शिलापट्ट पर उत्कीर्ण लेखों से काष्ठासंघ—नंदीतट गच्छ की भट्टारक परंपरा के इतिहास इत्यादि की जानकारी प्राप्त होती है। बेदला नामक स्थान के एक दिगम्बर जैन मंदिर के अप्रकाशित प्रशस्ति लेख, उसके हिन्दी अनुवाद एवं प्रतिमा लेख को कुछ आवश्यक टिप्पणियों के साथ यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
राजस्थान के उदयपुर शहर स्थित बेदला में श्री सुमतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर है। बेदला पूर्व में एक अलग गांव था परन्तु प्रशासन द्वारा अब इसे उदयपुर नगर में सम्मिलित करने की घोषणा कर दी गई है। मुख्य शहर से बेदला की दूरी ७ कि. मी. है। यहाँ के इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिलापट्ट पर मंदिर का प्रशस्ति लेख उत्कीर्ण है। इससे ज्ञात होता है कि इस मंदिर में विराजित मूलनायक श्री सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा संवत् १७२६ में संपन्न हुई थी। उस समय मेवाड़ (उदयपुर) रियासत के शासक महाराणा श्री राजिंसह तथा बेदला गांव के जागीरदार चौहानवंशी सबलिंसह थे। बेदला के दिगम्बर जैन मंदिर के गर्भगृह में जो मूलनायक प्रतिमा है वह प्रतिमा अन्य मंदिरों की प्रतिमाओं से कुछ भिन्न है। सामान्यत: दिगम्बर जैन मंदिरों में मूलनायक के रूप में किसी एक तीर्थकर की अथवा चौबीस तीर्थंकर (चौबीसी) प्रतिमा होती है। परन्तु बेदला के इस मंदिर की मूलनायक प्रतिमा पंच तीर्थंकर प्रतिमा के रूप में है। दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़ एवं बागड़ क्षेत्र के कुछ अन्य दिगम्बर जैन मंदिरों में भी पंच तीर्थंकर प्रतिमाएँ विराजित हैं। दिगम्बर जैन परम्परा में पंचबालयति तीर्थंकरों की मान्यता होने से कहीं—कहीं मंदिरों में पंचतीर्थंकर प्रतिमाएँ भी विराजित है। बेदला के इस मंदिर में विराजित श्याम पाषाण की मूलनायक पंच तीर्थंकर प्रतिमा, जिसे श्री सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा का नाम दिया गया है, उस पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार इसकी प्रतिष्ठा यहां संवत् १७२६ में हुई। ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा इस प्रतिष्ठा से बहुत पहले की है। प्राचीन प्रतिमा के भूगर्भ से प्रकट होने से अथवा अन्य कारणों से संवत् १७२६ में इस प्रतिमा की पुन: प्रतिष्ठा होना ज्ञात होता है। इस मंदिर के गर्भगृह में सामने से बायीं ओर की दीवार में एक १८ इंर्च के १० इंच के शिलापट्ट पर मंदिर का प्रशस्ति लेख उत्कीर्ण है। संस्कृत भाषा में लिखित इस प्रशस्ति लेख को पढ़ने एवं इसके हिन्दी अनुवाद के लिए संस्कृत के कुछ विद्वानों का सहयोग लिया गया है। इसके विवरणों को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।