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अयोध्या
35. शास्त्रसार समुच्चय:
July 8, 2017
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शास्त्रसार समुच्चय
(श्रीमाघनन्दियोगीन्द्र-विरचित:)
श्रीमन्नम्रामरस्तोमं प्राप्तानन्तचतुष्टयम्। नत्वा जिनाधिपं वक्ष्ये शास्त्रसारसमुच्चयम्।।१।।
सूत्रद्वयं कर्णाटवृत्तावेव।। अथ त्रिविध: कालो द्विविध: षड्विधो वा।।१।।
दशविधा: कल्पद्रुमा:।।२।। चतुर्दश कुलज्र्रा इति।।३।। षोडशभावना:।।४।। चतुर्विंशतितीर्थंकरा:।।५।। चतुिंस्त्रशदतिशया:।।६।। पंच महाकल्याणानि।।७।। घातिचतुष्टयम्।।८।। अष्टादश दोषा:।।९।। समवसरणैकादशभूमय:।।१०।। द्वादशगणा:।।११।। अष्टमहाप्रातिहार्याणि।।१२।। अनन्तचतुष्टयमिति।।१३।। द्वादशचक्रवर्तिन:।।१४।। सप्ताङ्गानि।।१५।। चतुर्दशरत्नानि।।१६।। नवनिधय:।।१७।। दशाङ्गभोगा इति।।१८।। नवबलदेववासुदेवनारदाश्चेति।।१९।। एकादशरुद्रा:।।२०।।
।।इति शास्त्रसारसमुच्चये प्रथमोऽध्याय:।।१।।
अथ त्रिविधो लोक:।।१।। सप्तनरका:।।२।। एकोनपंचाशत्पटलानि।।३।। इन्द्रकाणि च।।४।। चतुरुत्तर-षट्च्छतनवसहस्रं श्रेणिबद्धानि।।५।। सप्तचत्वारिंशदुत्तरत्रिंशताधिकनवतिसहस्रालं-कृतत्र्यशीतिलक्षं विलानि प्रकीर्णकानि।।६।। एवं चतुरशीतिलक्षविलानि।।७।। चतुर्विधं दु:खमिति।।८।। जम्बूद्वीपलवणसमुद्रा-दयोऽसंख्यातद्वीपसमुद्रा:।।९।। तत्रार्धतृतीयद्वीपसमुद्रो मनुष्यक्षेत्रम्।।१०।। षण्णवतिकुभोगभूमय:।।११।। पंचमन्दरगिरय:।।१२।। जम्बूवृक्षा:।।१३।। शाल्मलयश्च।।१४।। विंशतिर्यमकगिरयश्च।।१५।। शतं सरांसि।।१६।। सहस्रं कनकाचला:।।१७।। चत्वारिंशद्दिग्गजनगा:।।१८।। शतं वक्षारक्ष्माधरा:।।१९।। षष्ठिर्विभंगनद्य:।।२०।। षष्ट्युत्तरशतं विदेहजनपदा:।।२१।। पंचदशकर्मभूमय:।।२२।। त्रिंशद्भोगभूमय:।।२३।। सूत्रद्वयं कर्णाटवृत्तावेव।। चतुस्त्रिंशद्वर्षधर-पर्वता:।।२४।। त्रिंशत्सरोवरा:।।२५।। सप्ततिर्महानद्य:।।२६।। विंशतिर्नाभिभूधरा:।।२७।। सप्तत्यधिकशतं विजयार्धपर्वता:।।२८।। वृषभगिरयश्चेति।।२९।। देवाश्चतुर्णिकाया:।।३०।। भवनवासिनो दशविधा:।।३१।। अष्टविधा व्यन्तरा:।।३२।। पंचविधा ज्योतिष्का:।।३३।। द्वादशविधा वैमानिका:।।३४।। षोडशस्वर्गा:।।३५।। नवग्रैवेयका:।।३६।। नवानुदिशा:।।३७।। पंचानुत्तरा:।।३८।। त्रिषष्टिपटलानि।।३९।। इन्द्रकाणि च।।४०।। षोडशोत्तराष्टशतान्वितसप्तसहस्रं श्रेणिबद्धानि।।४१।। षट्चत्वारिंशदुत्तरैकशतानीतिनवत्य-शीतिसहस्रालज्र्ृत-चतुरशीतिलक्षं प्रकीर्णकानि (चतुश्चत्वारिंशदुत्तरैक-शतानि नवाशीतिसहस्रालंकृतचतुरशीतिलक्षं प्रकीर्णकानि)।।४२।। त्रयोविंशत्युत्तरसप्तनवतिसहस्रान्वित-चतुरशीतिलक्षमेवं विमानानि।।४३।। ब्रह्मलोकालयाश्चतुर्विंशति-लौकान्तिका:।।४४।। अणिमाद्यष्टगुणा:।।४५।।
।।इतिशास्त्रसारसमुच्चये द्वितीयोऽध्याय:।।२।।
अथ पंचलब्धय:।।१।। करणं त्रिविधं।।२।। सम्यक्त्वं द्विविधम्।।३।। त्रिविधम्।।४।। दशविधं वा।।५।। तत्र वेदकसम्यक्त्वस्य पंचविशतिर्मलानि।।६।। अष्टाङ्गानि।।७।। अष्टगुणा:।।८।। पंचातिचारा इति।।९।। एकादशनिलया:।।१०।। त्रिविधो निर्वेग:।।११।। सप्त व्यसनानि।।१२।। शल्यत्रयम्।।१३।। अष्टौ मूलगुणा:।।१४।। पंचाणुव्रतानि।।१५।। त्रीणि गुणव्रतानि।।१६।। शिक्षाव्रतानि चत्वारि।।१७।। व्रतशीलेषु पंच पंचातीचारा:।।१८।। मौन३समया: सप्त।।१९।। इमौ शब्दौ कर्णाटटीकायां न स्त:।। अन्तरायाणि च।।२०।। श्रावकधर्मश्चतुर्विध:।।२१।। जैनाश्रमश्च।।२२।। तत्र ब्रह्मचारिण: पंचविधा:।।२३।। आर्यकर्माणि षट्।।२४।। इज्या दशविधा:।।२५।। अर्थोपार्जनकर्माणि षट्।।२६।। दत्तिश्च-तुर्विधा।।२७।। क्षत्रियो द्विविध:१।।२८।। भिक्षुश्चतुर्विध:।।२९।। मुनयस्त्रिविधा:।।३०।। ऋषयश्चतुर्विधा:।।३१।। राजर्षयो द्विविधा:।।३२।। ब्रह्मर्षयश्च।।३३।। मरणं द्वित्रिचतु:पंचविधं वा।।३४।। तस्य३ पंचातिचारा इति इमौ शब्दौ कर्णाटटीकायां न स्त:।। ।।३५।। द्वादशानुपे्रेक्षा:।।३६।। यतिधर्मो दशविध:।।३७।। अष्टाविंशतिर्मूलगुणा:।।३८।। पंचमहाव्रतस्थैर्यार्थं भावना: पंच पंच।।३९।। तिस्रोगुप्तित्रयमितिसूत्रं टीकायां।। गुप्तय:।।४०।। अष्टौ प्रवचनमातृका:।।४१।। द्वाविंशतिपरीषहा:।।४२।। द्वादशविधं तप:।।४३।। दशविधानि प्रायश्चित्तानि।।४४।। आलोचनं सूत्रद्वयं टीकायामेव। च।।४५।। चतुर्विधो सूत्रद्वयं टीकायामेव। विनय:।।४६।। दशविधानि वैयावृत्यानि।।४७।। पंचविध: स्वाध्याय:।।४८।। द्विविधो व्युत्सर्ग:।।४९।। ध्यानं चतुर्विधम्।।५०।। आत्र्तरौद्र८धर्मशुक्लं च।।५१।। धम्र्यं ९दशविधं वा।।४२।। अष्टद्र्धय:।।५३।। बुद्धिरष्टादशविधा।।५४।। क्रिया द्विविधा।।५५।। विक्रियैका-दशविधा।।५६।। तप: सप्तविधम्।।५७।। बलं त्रिविधं।।५८।। भेषजमष्टविधं।।५९।। रस: १०षड्विध:।।६०।। अक्षीणद्र्धिद्र्विविधश्चेति।।६१।। चतुस्त्रिंशदुत्तरगुणा:।।६२।। पंचविधा निर्ग्रन्था:।।६३।। आचारश्च।।६४।। ११सामाचारं दशविधं।।६५।। सप्त परमस्थानानि।।६६।।
।।इति शास्त्रसारसमुच्चये तृतीयोऽध्याय:।।३।।
षड्द्रव्याणि।।१।। पंचास्तिकाया:।।२।। सप्त तत्वानि।।३।। नवपदार्था:।।४।। चतुर्विधो न्यास:।।५।। द्विविधं प्रमाणं।।६।। पंच संज्ञानानि।।७।। १२त्रीण्यज्ञानानि।।८।। मतिज्ञानं षट्त्रिंशदुत्तरत्रिशतभेदम्।।९।। द्विविधं श्रुतज्ञानम्।।१०।। द्वादशाङ्गानि।।११।। चतुर्दशप्रकीर्णकानि।।१२।। त्रिविधमवधिज्ञानम्।।१३।। द्विविधं मन: पर्ययज्ञानम्।।१४।। केवलमेकमसूत्रमिदं टीकायां नास्ति। सहायम्।।१५।। नव नया:।।१६।। सप्त भङ्गा इति।।१७।। पंच भावा:।।१८।। औपशमिको द्विविध:।।१९।। क्षायिको नवविध:।।२०।। अष्टादशविध: क्षायोपशमिक:।।२१।। औदयिकमेक-विंशतिविधम्।।२२।। पारिणामिकं त्रिविधम्।।२३।। गुणजीवमार्गणास्थानानि प्रत्येकं चतुर्दश।।२४।। षट् १५पर्याप्तय:।।२५।। दश सूत्रत्रयं ३० सूत्रतोऽग्रे वर्तते टीकायां। एतिच्चिन्हमध्यगत: पाठ: टीकायामधिकस्तेन मूले एव भवितव्यम्।प्राणा:।।२६।। चतस्र: सूत्रत्रयं ३० सूत्रतोऽग्रे वर्तते टीकायां। िएतच्चिन्हमध्यगत: पाठ: टीकायामधिकस्तेन मूले एव भवितव्यम्।संज्ञो:।।२७।। द्विविधमेकेन्द्रियम्।।२८।। त्रीणि विकलेन्द्रि-याणि।।२९।। पंचेन्द्रियं द्विविधम्।।३०।। गतिश्चतुर्विधा।।३१।। पंचेन्द्रियाणि।।३२। षड्जीवनिकाया:।।३३।। त्रिविधो योग:।।३४।। पंचदशविधो वा।।३५।। नवविधो वा।।३६।। चत्वार: कषाया:।।३७।। अष्टौ ज्ञानानि।।३८।। सप्त संयमा:।।३९।। चत्वारि दर्शनानि।।४०।। षड्लेश्या:।।४१।। द्विविधं भव्यत्वं।।४२।। षड्विधा सम्यक्त्वमार्गणा।।४३।। द्विविधं संज्ञित्वम्।।४४।। आहार्युपयोगश्चेति।।४५।। पुद्गलाकाशकालास्रवाश्च प्रत्येवंâ द्विविधम्।।४६।। बन्धहेतव: पंचविधा:।।४७।। बन्धश्चतुर्विध:।।४८।। अष्टौ कर्माणि।।४९।। ज्ञानावरणीयं पंचविधम्।।५०।। िदर्शनावरणीयं नवविधम्।।५१।। वेदनीयं द्विविधम्।।५२।। मोहनीयमष्टाविंशतिविधम्।।५३।। आयुश्चतुर्विधम्।।५४।। द्विचत्वारिंशद्विधं नाम।।५५।। द्विविधं गोत्रम्।।५६।। पंचविधमंतरायम्।।५७।। पुण्यं द्विविधं।।५८।। िपापं च।।५९।। संवरश्च।।६०।। एकादश निर्जरा:।।६१।। त्रिविधो मोक्षहेतु:।।६२।। द्विविधो मोक्ष:।।६३।। १८द्वादश-सिद्धस्थानद्वाराणि।।६४।। अष्टौ सिद्धगुणा:।।६५।। ।।इति शास्त्रसारसमुच्चये चतुर्थोऽध्याय:।।४।। इयं प्रशस्तिका दौर्बलिजिनदासशास्त्रिण: पुस्तके।श्रीमाघनन्दियोगीन्द्र: सिद्धान्ताम्बोधिचन्द्रमा:। अचीकरद्विचित्रार्थं शास्त्रसारसमुच्चयम्।।१।।
।।इति शास्त्रसारसमुच्चय:।।
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