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Tag: Gyanamrat Part-3

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38. चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थंकरों के नाम १. अयोध्या (पैâजाबाद-उ.प्र.) - श्री ऋषभदेव भगवान, श्री अजितनाथ भगवान,श्री अभिनंदननाथ भगवान, श्री सुमतिनाथ भगवान, श्री अनंतनाथ भगवान २. श्रावस्ती (बहराइच-उ.प्र.) - श्री संभवनाथ भगवान ३. कौशाम्बी (उ.प्र.) - श्री पद्मप्रभु भगवान ४. वाराणसी (उ.प्र.) - श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान ५....

36. ध्यान सूत्राणि

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
ध्यान सूत्राणि (श्री माघनंदि आचार्यविरचित) १. रागद्वेषमोहरहितोहम्। २. क्रोधमानमायालोभरहितोहम्। ३. पञ्चेन्द्रियविषयव्यापारशून्योहम्। ४. मनोवचनकायक्रियारहितोहम्। ५. द्रव्यकर्मभावकर्मनोकर्मरहितोहम्। ६. ख्यातिपूजालाभादिविभावभावरहितोहम्। ७. दृष्टश्रुतानुभूतभोगाकाङक्षारहितोहम्। ८. शल्यत्रयरहितोहम्। ९. गारवत्रयरहितोहम्। १०. दण्डत्रयरहितोहम्। ११. विभावपरिणामशून्योहम्। १२. निजनिरञ्जनस्वरूपोहम्। १३. स्वशुद्धात्मसम्यग्श्रद्धानपरिणतोहम्। १४. भेदज्ञानानुष्ठानपरिणतोहम्। १५. अभेदरत्नत्रयरूपोहम्। १६. निर्विकल्पसमाधिसंजातोहम्। १७. वीतरागसहजानंदस्वरूपोहम्। १८. अत्यानंदरूपोहम्। १९. स्वसंवेदनज्ञानामृतभरितोहम्। २०. ज्ञायवैâकस्वभावोहम्। २१. सहजशुद्धपरिणामिकस्वभावरूपोहम्। २२. सहजशुद्धज्ञानानंदैकस्वभावोहम्। २३. महाचलननिर्भरानंदरूपोहम्। २४. चिन्मात्रमूर्तिस्वरूपोहम्। २५. चैतन्यरत्नाकरस्वरूपोहम्।...

28. क्या जीव की रक्षा के भाव मिथ्यात्वरूप हैं ?

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
क्या जीव की रक्षा के भाव मिथ्यात्वरूप हैं ? जो पुरुष१ ऐसा मानता है कि मैं परजीव को मारता हॅूं और परजीवों द्वारा मैं मारा जाता हूँ वह पुरुष मूढ़ है, अज्ञानी है और जो इससे विपरीत है वह ज्ञानी है क्योंकि जीवों का मरण तो आयु के क्षय से होता है ऐसा जिनेन्द्रदेव ने...

17. षट्खण्डागम की सिद्धान्तचिंतामणि टीका से सरलतापूर्वक सिद्धान्त ज्ञान प्राप्त करें

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
षट्खण्डागम की सिद्धान्तचिंतामणि टीका से सरलतापूर्वक सिद्धान्त ज्ञान प्राप्त करें सिद्धान् सिद्ध्यर्थमानम्य, सर्वांस्त्रैलोक्यमूर्धगान् ।इष्ट: सर्वक्रियान्तेऽसौ, शान्तीशो हृदि धार्यते।।१।। संपूर्ण अंग और पूर्वों के एकदेश ज्ञाता, श्रुतज्ञान को अविच्छिन्न बनाने की इच्छा रखने वाले, महाकारुणिक भगवान श्रीधरसेनाचार्य हुए हैं। उनके मुखकमल से पढ़कर सिद्धान्तज्ञानी श्री पुष्पदंत और श्रीभूतबलि आचार्य हुए हैं। उन्होंने ‘अग्रायणीय पूर्व’ नामक द्वितीय...

16. जैनागम में वर्णित गणधर प्रमुख दिगम्बर जैनाचार्य

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3

जैनागम में वर्णित गणधर प्रमुख दिगम्बर जैनाचार्य गणधरदेव श्री गौतमस्वामी मगध देश में एक ब्राह्मण नाम का नगर था। वहाँ एक शांडिल्य नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी भार्या का नाम स्थंडिला था, वह ब्राह्मणी बहुत ही सुन्दर और सर्व गुणों की खान थी। इस दम्पति के बड़े पुत्र के जन्म के समय ही ज्योतिषी…

09. अष्टसहस्री सार

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
अष्टसहस्री सार (प्रथम परिच्छेद का सार) श्रोतव्याष्टसहस्री श्रुतै: किमन्यै: सहस्रसंख्यानै:।विज्ञायेत ययैव स्वसमयपरसमयसद्भाव:।। श्री विद्यानंद स्वामी का यह कहना है कि एक अष्टसहस्री को ही सुनना चाहिए। अन्य हजारों ग्रन्थों को सुनने से क्या प्रयोजन है ? क्योंकि इस एक अष्टसहस्री ग्रंथ के द्वारा ही स्वसमय और परसमय का स्वरूप जान लिया जाता है। महान् आचार्य...

04. अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर पंचकल्याणक वैभव-जब अच्युतेन्द्र की आयु छह मास बाकी रह गई तब इस भरत क्षेत्र के विदेह नामक देश में कुंडलपुर नगर के राजा सिद्धार्थ के भवन के आँगन में प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ प्रमाण रत्नों की धारा बरसने लगी। आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन रात्रि के पिछले प्रहर में रानी प्रियकारिणी...

02. अनादि तीर्थ-अयोध्या

May 24, 2023Harsh JainGyanamrat Part-3
अनादि तीर्थ-अयोध्या इस मध्यलोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। उनमें सर्वप्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। इसमें दक्षिण दिशा में भरतक्षेत्र के छह खण्डों में एक आर्य खण्ड है। इसमें अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के द्वारा छह काल तक परिवर्तन होते रहते हैं। सुषमा, सुषमा, सुषमा और सुषमा-दु:षमा इन तीन कालों में उत्तम, मध्यम और जघन्य...

10. नंदीश्वर द्वीप

June 9, 2018jambudweepGyanamrat Part-3

नंदीश्वर द्वीप जम्बूद्वीप से आठवाँ द्वीप नंदीश्वर द्वीप है। यह नंदीश्वर द्वीप समुद्र से वेष्टित है। इस द्वीप का मण्डलाकार से विस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख योजन है। इस द्वीप में पूर्व दिशा में ठीक बीचों-बीच अंजनगिरि नाम का एक पर्वत है। यह ८४००० योजन विस्तृत और इतना ही ऊँचा समवृत-गोल है तथा…

15. जैनधर्म एवं भगवान ऋषभदेव

February 14, 2018Harsh JainGyanamrat Part-3

जैनधर्म एवं भगवान ऋषभदेव द्वारा-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी नम: ऋषभदेवाय, धर्मतीर्थप्रवर्तिने। सर्वा विद्या-कला, यस्मा-दाविर्भूता महीतले।।१।। जहाँ यह जीव संसरण करता है, चतुर्गति में परिभ्रमण करता है, उसका नाम ‘‘संसार’’ है। यह संसार ‘‘लोक’’ नाम से भी कहा जाता है- ‘‘लोक्यन्ते’’ अवलोक्यन्ते जीवादिषड्द्रव्याणि अस्मिन्निति लोक:’’ जहाँ पर जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छहों…

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