गुलाबी नगरी जयपुर के निकट बसा माधोराजपुरा कस्बा एक धार्मिक स्थल है। लगभग २०० वर्ष पुराने विशाल और भव्य तीन जैन मंदिर तथा पास ही एक किलोमीटर दूर झराना में स्थित अतिशययुक्त एक पद्मप्रभु जिनालय है शांत और रमणीक उपासना स्थल माधोराजपुरा की एक नशिया के रूप में है। इसके अतिरिक्त विशाल शिवमंदिर और वैष्णव मंदिर इस बात को प्रमाणित करते हैं कि पूर्व में जैन धर्मावलम्बी और वैष्णव धर्मावलम्बी एक साथ मिलजुल कर रहते थे। कहा जाता है कि लगभग दो सदी पूर्व, पास ही के एक छोटे से गाँव में एक राजसिंह नाम के व्यक्ति रहते थे। यह क्षत्रिय एक बहादुर व्यक्ति था। किन्तु आजीविका के उपयुक्त साधन न होने के कारण डाके डालता था। इनकी इस करतूत से जयपुर राज्य के तत्कालीन शासक महाराजा माधोसिंह बहुत चिंतित थे। अवसर देखकर एक बार उन्होंने अपने दरबार में जयसिंह को बुलाया और ऐसा निन्दित कर्म न करने के लिए समझाया। फलस्वरूप जयसिंह ने भी ऐसे घृणित कार्य को न करना स्वीकार किया, किन्तु अपनी आजीविका की मजबूरी जाहिर की, अत: महाराज माधोसिंह ने ग्राम झिराना की रियासत से काटकर एक गाँव उसे जागीर में दिया, जिसका नाम दोनों शासकों के नाम के आधार पर माधोराजपुरा रखा गया। यहाँ पर बसने के लिए आसपास के कुशल व्यापारियों, कृषकों, कारीगरों, पंडितों आदि को आमंत्रित किया गया और उन्हें भूमि व अन्य सहयोग देकर यहाँ बसाया गया। इन लोगों ने सुविधा का लाभ उठाकर यहाँ पर अपने आवास व बाजार बनाये। व्यापारियों में कुशल व्यापारी, कुशल पंडित, कुशल कारीगरों के समूह आज भी इस कस्बे में निवास करते हैं और क्षेत्र में अपना रुतबा रखते हैं। एक और विशेषता इस कस्बे की बसावट में लाई गई, वह है इसे प्रसिद्ध गुलाबी नगरी जयपुर की तर्ज पर बसाना। यह कस्बा एक निर्धारित प्लान के अनुसार बसा हुआ है। जिसमें राजकीय आवास के रूप में एक विशाल किले का निर्माण किया गया है, जिसके चारों ओर मुख्य परकोटे के नीचे गहरी खाई है। किले के सामने सीधा चौड़ा बाजार बनाया गया है और बाजार को २ भागों में विभक्त करते हुए बीच में चोपड़नुमा कटला का निर्माण किया गया है, जिसके बीच में एक विशाल चौक और दो विशाल मंदिर हैं, जो पूर्व स्थापत्य कला के अनुसार मनोहर हैं। मुख्य बाजारों से पूरे कस्बे के चारों ओर के छोरों पर सीधे और चौड़े रास्ते बनाये गये हैं, जो बाजारों से आकर मिलते हैं। ठीक जयपुर की तरह इस कस्बे का निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त यहाँ हर जाति समूहों के लिए भिन्न-भिन्न ब्लाक काटे गये हैं, जहाँ पर सम्पूर्ण पक्के मकानों और विशाल हवेलियों में विभिन्न जाति के लोग बसे हुए हैं। गाँव के चारों ओर चार कच्चे दरवाजों के साथ-साथ चारों ओर विशाल परकोटे हैं, जिसके नीचे भी गहरी खाई है। किन्तु अब ये काफी जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं, फिर भी अच्छी तरह देखे जा सकते हैं।