पूज्य माताजी की संघस्थ ब्रह्मचारिणी बहनों का परिचय
लेखिका-श्रीमती त्रिशला जैन, लखनऊ
ब्र. कु. बीना जैन
कु. बीना का जन्म कानपुर (उ.प्र.) में १५ दिसम्बर १९६९ में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती कूमुदनी देवी और पिता का नाम स्व. श्री प्रकाशचंद जैन है। यह आपका सौभाग्य ही है कि आपको विरासत में ही धर्म के संस्कार प्राप्त हुए हैं और परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की गृहस्थावस्था की भानजी होने का गौरव प्राप्त है। इनका गोत्र गर्ग है तथा इनके २ भाई व २ बहनें हैं। आपको १३ वर्ष की बाल्यावस्था में ही पूज्य माताजी के संघ का संपर्क प्राप्त हुआ। प्रारंभ में ५ वर्ष का ब्रह्मचर्यव्रत लेकर संघ में रहने के पश्चात् ३१ मई सन् १९८९ को पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया, पुन: १५ अक्टूबर १९८९ को दो प्रतिमा एवं सन् १९९४ में सप्तम प्रतिमा ग्रहण की। लौकिक शिक्षा हाईस्कूल तक प्राप्त की एवं धर्म में शास्त्री एवं आचार्य प्रथम खण्ड की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं। धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ गुरु सेवा-वैयावृत्ति-संघ व्यवस्था आदि में निरन्तर सजग रहते हुए वर्तमान में पूज्य माताजी की छत्रछाया में साधनारत हैं।
ब्र. कु. सारिका जैन
कु. सारिका का जन्म सन् १९७८ में वैशाख शु. पूर्णिमा को अवध प्रान्त के दरियाबाद ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम श्री जयप्रकाश जैन एवं माता सौ. कामिनी देवी हैं। सन् १९९१ में इन्होंने पूज्य माताजी से आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत लिया तथा १९९५ में अयोध्या तीर्थ पर २ प्रतिमा एवं १९९६ में धूलिया (महा.) में सप्तम प्रतिमा ग्रहण की। इनका गोत्र मुद्गल है। आपके २ भाई एवं २ बहनें हैं। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की भानजी होने का सौभाग्य इन्हें भी प्राप्त हुआ है। लौकिक शिक्षा इण्टरमीडिएट तथा धार्मिक शिक्षा शास्त्री प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। धार्मिक अध्ययन के साथ गुरु सेवा-वैयावृत्ति में मग्न रहते हुए माताजी के सानिध्य में अध्ययनरत हैं।
ब्र. कु. इन्दू जैन
ब्र. कु. इन्दु का जन्म अवध प्रान्त की धर्मपरायण नगरी टिकैतनगर (बाराबंकी) में १२ अक्टूबर १९७३ को हुआ। आपके पिता का नाम स्व. श्री प्रकाशचंद जैन एवं माता का नाम श्रीमती ज्ञानादेवी है। यह आपका सौभाग्य है कि आपको अपनी दादी-पिता आदि से विरासत में ही धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए। पश्चात् परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के गृहस्थावस्था की भतीजी होने का गौरव भी आपको भी प्राप्त हुआ। इनका गोत्र गोयल है तथा इनके ४ भाई व २ बहनें हैं। पूज्य माताजी ससंघ के ४१ वर्ष पश्चात् जन्मभूमि में हुए चातुर्मास के मध्य सन् १९९४ की शरदपूर्णिमा (आ.शु. पूर्णिमा) को पूज्य माताजी एवं संघस्थ प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी की वात्सल्यपूर्ण प्रेरणा से पूज्य माताजी से आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत लिया तथा ३ फरवरी १९९५ में शाश्वत तीर्थ अयोध्या में २ प्रतिमा व मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के मध्य मई १९९६ में ७ प्रतिमा ग्रहण की। लौकिक शिक्षा एम.ए. (संस्कृत साहित्य) अवध युनिवर्सिटी से की तथा धार्मिक शिक्षा शास्त्री प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ गुरु सेवा-वैयावृत्ति में निरन्तर सजग रहते हुए वर्तमान में आप पूज्य माताजी की छत्रछाया में साधनारत हैं।
ब्र. कु. अलका जैन
कु. अलका का जन्म भी अवध प्रान्त के टिकैतनगर ग्राम में १० नवम्बर १९७७ को हुआ। आपके पिता का नाम श्री कोमलचंद जैन एवं माता का नाम श्रीमती शशि जैन है। आपका गोत्र गर्ग है एवं आपके १ भाई व ३ बहनें हैं। पूज्य माताजी के सन् १९९४ में टिकैतनगर चातुर्मास के मध्य आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया। ३ फरवरी १९९५ को अयोध्या तीर्थक्षेत्र पर २ प्रतिमा एवं मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के मध्य मई १९९६ में ७ प्रतिमा ग्रहण की। लौकिक शिक्षा इण्टरमीडिएट एवं धार्मिक शिक्षा विशारद तक की है। गुरु के चरण सानिध्य में धर्माराधनापूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए गुरु सेवा-वैयावृत्ति में सतत संलग्न हैं।