आठ अनुयोग द्वार के नाम- १. सत्प्ररूपणा २. द्रव्य प्रमाणानुगम ३. क्षेत्रानुगम ४. स्पर्शानुगम ५. कालानुगम ६. अन्तरानुगम ७. भावानुगम ८. अल्पबहुत्वानुगम है। षट्खण्डागम की इस प्रथम खण्ड की प्रथम पुस्तक में सत्प्ररूपणा के एक सौ सतहत्तर (१७७) सूत्र छपे हैं, वे श्री पुष्पदन्ताचार्य द्वारा विरचित हैं। इन १७७ सूत्र पर संस्कृत टीका पूज्य माताजी ने सरल भाषा मेंं की है और इसका हिन्दी अनुवाद पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने किया है। इस प्रथम पुस्तक की टीका को पूज्य माताजी ने पिड़ावा (राज.) में फाल्गुन शुक्ला सप्तमी वीर सं. २५२२, २५ फरवरी १९९६ को लिखकर पूर्ण किया। प्रथम संस्करण-वीर सं. २५२४, आश्विन शुक्ला १५, शरदपूर्णिमा ५ अक्टूबर १९९८। पृष्ठ संख्या ५१२ है। =