ग्वालियर नगर में अनेक जिन मन्दिर हैं किन्तु उनमें से डीडबाना ओली लश्कर (ग्वालियर) में स्थित दि. जैन पंचायती मन्दिर अपनी कलापूर्ण चित्रकारी हेतु दर्शनीय है। इस मन्दिर के भित्ति चित्रों की एक झलक इस आलेख में प्रस्तुत की गई है। पाश्र्वनाथ पंचायती मंदिर (पुरानी सहेली), लश्कर, डीडबाना ओली बाजार में स्थित है। इसका निर्माण सन् १७६८ में समाज के उत्साही एवं श्रद्धालु, र्धािमक कलाप्रिय वर्ग के द्वारा सम्पन्न हुआ। यहाँ पाषाण व धातु की ११७ प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। पीतल के भेरू व मानस्तम्भों की बनावट अत्यन्त आकर्षक एवं दर्शनीय है। मंदिर में सीढ़ियों के बाद प्रवेश द्वार पर पत्थर खुदाई के कलात्मक अलंकरण बने हैं। प्राँगण में स्तम्भों के बीच तोरण आकार दिया गया है। मुख्य पूजा गृह (गर्भगृह) के तीन अलंकृत द्वार हैं जो प्राँगण की ओर खुलते हैं। इनके द्वार (कपाट) धातु के बने हैं। इन पर मीनाकारी द्वारा अलंकरण बनाये गये हैं। मुख्य दर्शन स्थल में अष्टकोणीय तीन मंजिला समवसरण (जो एक के बाद एक ऊपर की ओर छोटा होता गया है) के ऊपर कमल पुष्प पीठिका पर पाश्र्वनाथ की काले संगमरमर की प्रतिमा विराजमान है। कक्ष की छत ऊपर की ओर अधिक गहरी उठी हुई बनी है। छत, दीवार, द्वार आदि भागों को बेल फूल—पत्तीदार अलंकरण से सुसज्जित किया गया है। स्वर्ण रंग से पच्चीकारी का कार्य विशेष दर्शनीय है। मन्दिर का यह कक्ष अधिक भव्य दिखाई देता हैं मंदिर की स्थापत्य कला की बनावट विशेष आर्किषत करती है। वीथिकाओं की छत पर काले रंग (वनस्पति रंग) से अलंकरण बनाये गये हैंं जिनवाणी आले के ऊपर शिखर आकार देकर शुभ चिन्हों का अंकन किया गया है। दोनों ओर से चारण बने हैं। यक्ष व चारणों को र्मूित रूप में थोड़ी—थोड़ी दूरी पर बनाया गया है। दीवार पर र्धािमक कथाओं का चित्रण किया हैं मंदिर में भित्ति चित्रों की संख्या कुल २६ है। कथा चित्रों के चारों ओर अलंकृत हांसिया बना है। कथा चित्रों को तोरण आकार, अर्धगोल वे चौकोर आकारों में चित्रित किया है। इनमें तैल रंगों के साथ स्वर्ण रंग का प्रयोग किया गया। भित्ति चित्रों के विषय इस प्रकार है।—णमोकार मंत्र, युगल मुनिका आहारदान, तीन लोक, द्रोणगिरि, पावापुरी, सोनागिरि, सम्मेदशिखर, सुकुमाल मुनि, कम्पिलातजी, गौतम स्वामी का नवादा, मुक्तागिरि, संसार वृक्ष, षट्लेश्या, राजगृही, मांगी—तुंगी, शुभ स्वप्र, सीता की अग्नि परीक्षा, पांच कल्याणक, आदिनाथ का पारणा, अशुभ स्वप्र, सिद्ध चक्र के पाठ की महिमा, बाहुबलि, बारह भावना, गिरनार आदि। यहाँ मैं कुछ चित्रों का वर्णन दे रही हूँ। विस्तृत विवरण मेरे शोध प्रबंध ‘‘ग्वालियर की जैन चित्रकला’’ में दिया गया है।
पंचायती मंदिर के भित्ति चित्र का वर्णन
तीन लोक मनुष्य आकार में तीन लोक का चित्रण किया गया है। इसमें तीन भाग, अधोलोक, मध्यलोक और ऊध्र्वलोक है। अधोलोक में नारकी जीवों के रहने के अति दु:खमय सात नरक धम्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मधवी, आदि है। इनके वर्ण रत्नप्रभा, शर्करा प्रभा, बालुका प्रभा, पंक प्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, महोतमप्रभा आदि है। सात अलग अलग खानों में कर्म व कर्मफल का अंकन किया गया है। इसमें बुरे कर्म का फल किस तरह मिलता है, दर्शाया गया है। ऊध्र्वलोक में सोलह स्वर्ग में कल्पवासी विमान है। इनमें लांतव, ब्रह्म, सनतकुमार, सौधर्म, कपिष्ट, ब्रह्मेत्तर, माहेन्द्र, ईशान, सिद्धशिला, पाँच पच्मोत्तर, नवअनुत्तर, नव ग्रेवेयिक हैं। मध्यलोक में वलयाकार रूप में असंख्य द्वीप व समुद्र है। इनके बीचों बीच जम्बूद्वीप है। जम्बूद्वीप के बीच सुमेरू पर्वत स्थित है। शास्त्रों के अनुसार जम्बूद्वीप का विस्तार १,००,००० योजन है।ग्वालियर जैन निर्देशिका, ग्वालियर, १९६९ सुमेरू पर्वत का विस्तार ८४,००० योजन ऊँचा और १६,००० योजन पृथ्वी में धँसा हुआ बताया है।भगवान महावीर और उनका तत्व दर्शन, आचार्य देशभूषण महाराज, देहली, १९७३, पृ. ३९ मनुष्याकार की बाहरी तीन रेखाओं के रंग अलग अलग है। मनुष्याकार तीन लोक के अन्दर के भाग को लोकाकाश कहते हैं जिसमें जीवन है और बाहारी भाग को आलोकाकाश जिसमें जीवन शून्य है। पृष्ठभूमि समतल है। इसका आकार लगभग ८ फुट १२ फुट है।
सुकुमाल मुनि
तोरण आकार में सुकुमाल मुनि के जीवन की घटनाओं का चित्रण किया गया है। महल के प्रांगण में सुकुमाल की माँ र्मूिछत अवस्था में लेटी है, आस पास बहुएँ सेवा कर रही है। सुकुमाल महल की खिड़की से रस्सी द्वारा नीचे उतरते हुये दिखाये हैं। सुकुमाल दिगम्बर मुनि वेश धारण कर वन की ओर जा रहे हैं। वन में मुनि दीक्षा लेते हुए, तपस्या करते हुए, विहार करते हुए, केशलोंचन करते हुए आदि घटनाओं को अलग अलग दर्शाया है। एक ओर तपस्या में लीन मुनि के शरीर को दो सियारनी खा रही हैं। आकाश में दो विमान इन्द्र सहित बने हैंं पृष्ठभूमि में एक ओर भव्य महल और दूसरी ओर जंगल का हरा भरा वातावरण चित्रित हैं इसका आकार लगभग ५ फुट र्६ फुट है। (देखें चित्र) इस चित्र की शैली पर राजस्थानी शैली का प्रभाव है। स्त्रियाँ लहंगा ओढनी और पुरुष अंगरखा व उत्तरीय वस्त्र पहने, सभी आभूषणों से सुसज्जित है। इसके ऊपरी भाग में अलंकरण बने हैं। सुकुमाल ने तीन दिन की तपस्या में अपने जीवन का कल्याण किया। उनकी आयु के तीन दिन शेष थे। तभी यशोभद्र मुनि ने उन्हें सम्बोधित किया और वे मुनि होकर वन में तपस्या करने चले गये।
मुक्तागिरि
इसी प्रकार जैन तीर्थ क्षेत्र का भी चित्रण किया गया है। मुनियों की निर्वाण भूमि मुक्तागिरि तीर्थ का चित्रण किया है। इसमें विशाल पहाड़ों के दोनों ओर मंदिर तथा बीच में छोटी—छोटी छत्रियाँ बनी हैं। पहाड़ पर आने—जाने का मार्ग दर्शाया है। नीचे की ओर मंदिर, धर्मशालाएँ वृक्ष, जानवर तथा यात्रीगण चित्रित हैं। आकाश में त्रिभुजाकार बादलों के बीच दो विमान इन्द्र सहित बने हैं। वृक्षों पर फूलों का अंकन किया है। पृष्ठभूमि में हरियाली का वातावरण दर्शाया है। इसका आकार लगभग ३ फुट १.२५ फुट है। मुक्तागिरि पावन सिद्ध क्षेत्र है। यहाँ पर साढ़े तीन करोड़ मुनियों ने मुक्ति प्राप्त की। इसी कारण इसका नाम मुक्तागिरि पड़ा। वर्तमान में यह स्थान मध्यप्रदेश में बैतूल से १०० किलो मीटर दूरी पर स्थित है।खनन भारती पत्रिका, राजेन्द्र पटोरिया, १९९०, पृ २१. ==टिप्पणी==
मीरा जैन
प्रकाश आयरन स्टोर्स, लोहिया बाजार, ग्वालियर ४७४००९