जो बेटी बेटे में भेद करे, अरे वो कैसी महतारी है। जो कोख में बेटी को मारे, वो जननी नहीं हत्यारी है।।
पुत्र चाह में पड़कर जो कन्या—भ्रूण हत्या करती हैं। वे जीवन भर पछताती हैं, और घुट—घुट करके मरती हैं।।
भ्रूण हत्या जिस माता ने की, वह माता नहीं कुमाता है। पत्थर दिल जिसका हुआ, अरे उस पर कोई तरस न खाता है। ।
भ्रूण हत्या है महापाप, जो नारी ऐसा पाप करे। फिर लाख करे भक्ति पूजा, पर भवसागर से नहीं तरे।।
भ्रूण हत्या जो नारी करे, वह पापिन है हत्यारिन है। जो खाती अपने बच्चों को ऐसी जहरीली नागिन है।।
जिसने की कन्या भ्रूण हत्या, जिसके दिल दया व प्यार नहीं। ईश्वर की पूजा भक्ति का, उसको कोई अधिकार नहीं।।
भ्रूण हत्या कन्याओं की करने को मजबूर। जब तक मौजूद है यहाँ, दहेज दानवी क्रूर।।
कर्म जो हमने हैं किये, फल भुगते संसार। खूब सताई बेटियाँ, दर्इं कोख में मार।।
गर्भ से बेटी करे पुकार, मुझ पर मत कर अत्याचार। जन्म से पहले मुझे न मार, मुझको जीने का अधिकार।।
वे डॉक्टर नहीं कसाई हैं, जिनके दिल में कुछ दया नहीं। रुपयों के लालच में करते कन्या भ्रूण हत्या, हया नहीं।।
जब तक कड़े दण्ड नहीं देता, शासन और समाज। कन्या भ्रूण हत्या से तब तक, लोग ना आयें बाज।।
मानव पर हैं कलंक ये, कन्या की भ्रूण हत्यायें। सभ्य समाज के इन कृत्यों से दानव कसाई भी शरमायें।।
कन्या की भ्रूण हत्या हो, कारण जहाँ दहेज। से सभ्य समाज को, कुछ तो लानत भेज ।।
तथाकथित बड़े लोग जो, लाज शरम न आई। कन्या भ्रूण हत्या करें, डरते नहीं कसाई।।
दिन पर दिन कम हो रहीं, बेटियाँ सकल समाज। करो विचार उपाय सब मिलकर बैठो आज।।
हर अति का परिणाम भी, बुरा होय श्रीमान् । जिनने नेकी की सदा, वे ही बने महान् ।।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ, ये शासन की पुकार । बेटियाँ धरा का भूषण है और परिवार की हैं आधार।।
साधु—संत शासक करें, जनता से फरियाद। बेटियों को भी जनमने दो वे भी हैं औलाद।।
उस माता का जनम व्यर्थ है, उसको कोटि—कोटि धिक्कार। जिसने कन्या भ्रूण हत्या की है, कोख में बेटी दी है मार।।
काम नीच गति के करें, उच्च जाति के लोग। फल भी पड़ेगा भोगना जब दुर्दिन का योग।।
बेटी—बेटों से लगे, खुशियों भरा परिवार । लेकिन जहाँ बेटी नहीं, लगे काँटों का हार।।
ईश्वर ने नारी को सौंपा मानव—सजृन हेतु उपहार। उसी कोख को कत्लखाने में बदल दिया उसको धिक्कार।।
दया प्रेम करुणा कर मूरत, वात्सल्य का जो भण्डार। उस ममतामयी नारी का भी हृदय कठोर बना अंगार ।।
कन्या भ्रूण की हत्या करते क्यों नहीं काँपा जिया उदार। कितनी निर्मम हुई है ममता जो कहलाती थी सुकुमार।।
जन्म देने से पहले जिसने गला घोटकर किया है वार। उसने है मातृत्व लजाया, नहीं दया की पात्र वो नार।।
ईश्वर दण्ड अवश्य ही देगा, करनी खोटी करे न पार। तरसेगी औलाद को इक दिन, बाँझ बने ढोए जग भार।।
वे डाक्टर जिनने रुपयों के लोभ में आके किया ये काम। रूह कन्या की उनको धिक्कारेगी, निशदिन सुबह और शाम।।
कन्या भ्रूण हत्या जैसा ये जघन्य पाप जो करते हैं। डॉक्टर नहीं कसाई हैं वे ईश्वर से ना डरते हैं।।
लेकिन ये भर अटल सत्य है अपना असर दिखायेगा। कन्या भ्रूण हत्या कर डॉक्टर अंत समय पछतायेगा।।
रात को जब सपने में उसकी आत्मा उसे धिक्कारेगी। तरसेगा बेटी के जनम को, चोट हृदय पर मारेगी।।
बेटी का पिता कहलाने का अवसर नहीं वो पायेगा। तब होगा अहसास गलती का, रोयेगा, आँसू बहायेगा।।
ये तो अटल सत्य प्रकृति का फर्क नहीं इसमें होता। पाता है उसके ही फल वो बीज यहाँ जिसके बोता।।
भ्रूण हत्या का काम करके यदि पैसा अधिक कमा लेगा। पर मत भूल यही पैसा तेरा नाम—दाम गंवा देगा।।
डॉक्टर अब ये प्रण कर लें, तो यह संकट टल जायेगा। नहीं करें कन्या भ्रूण हत्या, नहिं अर्थ—लोभ छल पायेगा।।
कन्या भ्रूण हत्या से एक दिन मानव संस्कृति मिट जायेगी। घर, परिवार, समाज, राष्ट्र की वृद्धि भी रुक जायेगी।।
कन्या भ्रूण हत्या है महापाप, इस महापाप से दूर रहें। ‘नयन’ कन्या देवी स्वरूपा है, दें सम्मान हाथ जोड़ कहें।।
विराग वाणी— जून, २०१४